Ganesh, Ganeshji, Shree Ganeshai Namah

गाइये गनपति जगबंदन, संकर-सुवन भवानी-नंदन।
सिद्धि-सदन गज-बदन विनायक, कृपा-सिन्धु सुन्दर सब लायक।

मोदक प्रिय मुद-मंगल दाता, विद्या-बारिधि बुद्धि-बिधाता।।

धन्य धन्य गणेशजी! सारा संसार तुम्हारी वन्दना करता है। तुम शंकर और माँ भवानी के पुत्र हो। सिद्धियों के भण्डार हो, गजाकार हो और सब विघ्नों के नाशक हो। कृपा के सागर हो, सुन्दर हो और सर्व समर्थ हो। आपको मोदक प्रिय हैं, आनन्द और मंगल देने वाले हैं। आप विद्या के सागर और बुद्धि देने वाले हैं। इतने गुण हैं आपमें ।
यही कारण है कि तैंतीस करोड़ देवताओं में गनपति सबसे विलक्षण हैं और सबके परमाराध्य हैं।
कलिकाल में चण्डी और विनायक शीघ्र फल देने वाले देवता माने गये हैं। श्रीगणेश की पूजा अलग-अलग जगहों पर सुपारी, पत्थर, मिट्टी, हल्दी की बुकनी, गोमय, दूर्वा आदि में आवाहनादि के द्वारा होती है। भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी की पूजा में आज भी मिट्टी की बनी मूर्ति पूजा में रखते हैं।

भगवान गणेश की चार भुजाएँ हैं। इन भुजाओं में आपने भक्तों के कल्याण के लिए चार चीजें धारण कर रखी हैं–पाश, अंकुश, रद और वर। पाश आपने अपने भक्तों के मोहनाश के लिए ले रखा है। अंकुश का काम नियन्त्रण करना है अत: यह व्यापार के लिए अच्छा है। दन्त दुष्टनाशक है, यह शत्रुओं का विनाश करने वाला है। वर भक्तों के अभीष्ट पूरा करने वाला है।
गणेशजी मूषक वाहन हैं। मूषक का काम वस्तुओं को कुतर डालना है। गणेशजी बुद्धि के देवता हैं अत: मूषक विश्लेषणकारी बुद्धि का प्रतीक है।
शरीर के भीतर गुदास्थान में गणेश चक्र है, यह ‘मूलाधार चक्र’ कहलाता है। जो साधक इस मूलाधार चक्र को ध्यान से देखता है उसे विद्या तथा आरोग्य की प्राप्ति होती है।

Shree Ganesh ji
गणेशजी को दूर्वा, शमी के पत्ते, सफेद आक के फूल व मोदक बहुत प्रिय हैं। पूजा में दो दूर्वा चढ़ाने का विधान है। मनुष्य सुख दु:ख भोगने के लिए जन्म लेता है। इस सुख और दु:खरूप द्वन्द्व को दूर्वा युग्म (दो दूर्वा) से समर्पण किया जाता है। गणेश चतुर्थी के पूजन में इक्कीस दूर्वा युग्म से पूजन का विधान है। यह 21 दु:ख ध्वंस का प्रतीक है। शमी पत्र से पूजन करने से मनुष्य ब्रह्मभाव को प्राप्त करता है। श्वेतार्क के पुष्प से पूजन करने से मनोकामना पूरी होती है। मोदक अर्पित करने से मोद आनन्द की प्राप्ति होती है।
श्रीगणपति अथर्वशीर्ष में कहा है–

यो दूर्वांकुरैर्यजति स वैश्रवणोपमो भवति।
यो लाजैर्यजति स यशोवान् भवति। स मेधावान भवति।।

यो मोदकसहस्त्रेण यजति स वान्छित फलमवाप्नोति।
य: साज्यसमिद्भिर्यजति स सर्वं लभते स सर्वं लभते।।

श्रीगणपति अथर्वशीर्ष मन-मस्तिष्क को शांत रखने की एकमात्र विद्या है। अथर्वशीर्ष में ओंकार और गणपति दोनों एक ही तत्व हैं। यह उपनिषदों का सार है। इसके पठन और श्रवण से जीवन के कष्ट, विघ्न, शोक और मोह का नाश होकर साधक को परमार्थिक सुख की प्राप्ति होती है।
गणेश गायत्री–

एकदन्ताय विद्महे वक्रतुण्डाय धीमहि तन्नो दन्ती प्रचोदयात्।

अर्थात हम एकदन्त परमपुरुष गणपति को जानते हैं मानते हैं और उन वक्रतुण्ड भगवान का ध्यान करते हैं। वे हमारे विचारों को सत्कार्य के लिए प्रेरित करें।
गणपति की तिथियाँ–गणेशजी का आविर्भाव माता पार्वती के यहाँ माघमास के कृष्णपक्ष की चतुर्थी को हुआ। गणेशजी अपने भक्तों के समस्त संकट हर लेते हैं अत: उनके जन्म की तिथि संकष्टी चतुर्थी कहलाती है। प्रत्येक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी गणेश चतुर्थी और शुक्ल पक्ष की चतुर्थी वैनायकी चतुर्थी कहलाती है। जिस किसी माह में चतुर्थी तिथि रविवार या मंगलवार को होती है तो उसे ‘अंगारकी चतुर्थी’ कहते हैं। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी की विशेष महिमा है। उस दिन गणेशजी अपने भक्तों के सब कार्य सिद्ध करते हैं, अत: उनका नाम सिद्धिविनायक हो गया।
गणेश उपासना सहज और सरल
गणेशजी को प्रसन्न करना बहुत ही सरल है। इसमें ज्यादा खर्च की आवश्यकता नही है। एक पीली मिट्टी की ढली या सुपारी लो। उस पर कलावा (मौली) लपेट दो। बन गए गणेशजी। रोली का छींटा लगा दो। चावल के दाने डाल दो। लड्डू न हो तो केवल गुड़ या बताशे का भोग लगा दो।

एक छोटा सा श्लोक बोल दो–

गजाननं भूतगणादिसेवितं कपित्थजम्बूफलचारूभक्षणम्।
उमासुतं शोकविनाशकारकमं नमामि विघ्नेश्वरपादपंकजम्।।

हो गया मंत्र। कुछ न मिले तो दो दूब ही चढ़ा दो। इतने से ही गणेशजी प्रसन्न हो जाते हैं। अत: मनुष्य को ऋद्धि सिद्धि नवनिधि के दाता मंगलमूर्ति गणेशजी का पूजन सदैव करना चाहिए।

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