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हर प्रकार के शुभ फल देने वाली है बाणासुर कृत शिव-स्तुति
राजा बलि के सबसे बड़े पुत्र बाणासुर हुए जो महान शिवभक्त थे । उनकी राजधानी केदारनाथ के पास स्थित शोणितपुर थी । बाणासुक के हजार हाथ थे । जब ताण्डव नृत्य के समय शंकरजी लय पर नाचते, तब बाणासुर हजार हाथों से बाजे बजाते थे । बाणासुर के ताण्डव से रीझ कर भगवान शंकर उसके नगररक्षक बन गए ।
‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र
माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।
भगवान शिव की मानस पूजा
मानस पूजा का प्रचलन उतना ही प्राचीन है जितना कि भगवान । मानस पूजा में मन के घोड़े दौड़ाने और कल्पनाओं की उड़ान भरने की पूरी छूट होती है । इसमें मनुष्य स्वर्गलोक की मन्दाकिनी के जल से अपने आराध्य को स्नान करा सकता है, कामधेनु के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण कर सकता है । ऐसी मानस पूजा से भक्त और भगवान को कितना संतोष मिलता होगा, यह शब्दों में बयान नहीं किया जा सकता ।
शिव-स्तुतियों में विशेष शिव ताण्डव स्तोत्र की कथा, अर्थ व लाभ
भगवान शिव ने अपने पैर के अंगूठे से कैलास पर्वत को दबा दिया । दशानन का कंधा और हाथ पर्वत के नीचे दब गए तो वह जोर-जोर से रुदन करने लगा । पार्वतीजी के कहने पर भगवान ने अपने पैर का अंगूठा पर्वत से उठा लिया । दीर्घकाल तक रुदन करते-करते उसने भगवान शंकर की स्तुति की, जो ‘ताण्डव स्तुति’ के नाम से प्रसिद्ध है ।
दु:ख, दुर्भाग्य व दरिद्रता नाशक भगवान शिव का प्रदोष स्तोत्र
दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । स्कन्दपुराण के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और उनकी हर प्रकार की उन्नति होती है ।
भगवान शंकर का सिद्ध स्तोत्र शिव महिम्न:-स्तोत्र
परम शिवभक्त गन्धर्वराज पुष्पदंत द्वारा रतित शिव महिम्न:-स्तोत्र उपासक को अवश्य फल देने वाला है।
दरिद्रता और दु:ख का नाश करने वाला दारिद्रयदहन शिव स्तोत्र
दारिद्रयदहन का अर्थ है दरिद्रता का नाश। दरिद्रता केवल भौतिक ही नहीं, मानसिक भी होती है। आज के कलिकाल में अधिकांश मनुष्य मानसिक दरिद्रता जैसी नकारात्मक भावनाओं--काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद-अहंकार, स्वार्थ, ईर्ष्या-द्वेष, भय आदि से पीड़ित हैं। भगवान शिव की उपासना मनुष्य को भौतिक सुख-समृद्धि के साथ ज्ञान प्रदानकर मन से भी अमीर बना देती है अर्थात् स्वस्थ मन प्रदान करती है क्योंकि भगवान शिव के मस्तक पर चन्द्रमा है और चन्द्रमा मन का कारक है। ‘स्वस्थ मन तो स्वस्थ तन’--यही समस्त सुखों का आधार और दुखों के नाश का उपाय है।