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श्रीकृष्ण की आराधिका श्रीराधा

भगवान प्रेम के भूखे हैं । उनकी एक से दो होने की इच्छा हुई इसलिए भगवान प्रेम-लीला के लिए श्रीराधा और श्रीकृष्ण के रूप में दो हो जाते हैं । वास्तव में श्रीराधा श्रीकृष्ण से अलग नहीं होतीं, श्रीकृष्ण ही प्रेम की वृद्धि के लिए श्रीराधा को अलग करते हैं । दोनों में कोई-छोटा-बड़ा नहीं है । दोनों ही एक-दूसरे के इष्ट और एक-दूसरे के भक्त हैं ।

श्रीराधा ने अपने प्रिय भक्त के लिए जब खीर बनाई

जब भगवान श्रीकृष्ण के प्रेम की लालसा सभी भोगों और वासनाओं को समाप्त कर प्रबल हो जाती है, तभी साधक का व्रज में प्रवेश होता है । यह व्रज भौतिक व्रज नहीं वरन् इसका निर्माण भगवान के दिव्य प्रेम से होता है ।

श्रीराधा : एक साधारण गोपी या अलौकिक चरित्र

श्रीकृष्ण ने नंदबाबा ले कहा—कहा--’जैसे दूध में धवलता होती है, दूध और धवलता में कभी भेद नहीं होता; जैसे जल में शीतलता, अग्नि में दाहिका शक्ति, आकाश में शब्द, भूमि में गन्ध, चन्द्रमा में शोभा, सूर्य में प्रभा और जीव में आत्मा है; उसी प्रकार राधा के साथ मुझको अभिन्न समझो । तुम राधा को साधारण गोपी और मुझे अपना पुत्र न जानो । मैं सबका उत्पादक परमेश्वर हूँ और राधा ईश्वरी प्रकृति है ।

श्रीराधा-कृष्ण की अलौकिक लीला का साक्षी : श्रीराधाकुण्ड

श्रीराधाकृष्ण की लीला के महत्वपूर्ण स्थल हैं—श्रीराधाकुण्ड व श्रीकृष्णकुण्ड । श्रीरूपगोस्वामी ने कहा है—‘ठाकुर के सभी धाम पवित्र हैं पर उनमें भी वैकुण्ठ से मथुरा श्रेष्ठ है, मथुरा से रासस्थली वृन्दावन श्रेष्ठ है, उससे भी श्रेष्ठ गोवर्धन है लेकिन उसमें भी श्रीराधाकुण्ड अपने माधुर्य के कारण सर्वश्रेष्ठ है ।’

भगवान श्रीकृष्ण की वंशी का अवतार श्रीहित हरिवंशजी गोस्वामी

श्रीहित हरिवंशजी की उपासना पद्धति में श्रीराधाजी की प्रधानता है और ये श्रीराधाकृष्ण की निकुंज लीला में अपने को एक सखी मान कर उनकी सेवा करते थे । श्रीराधा ने इन्हें दर्शन देकर अपनी सेवा-पद्धति और मन्त्र का उपदेश दिया और अपना शिष्य बना लिया ।

भगवान श्रीकृष्ण का मुक्ताचरित्र

श्रीकृष्ण की भगवत्ता का परीक्षण, खेतों में मोती उपजना और श्रीकृष्ण द्वारा मोतियों का ढेर वृषभानुजी के यहां भेजना

श्रीराधा कृष्ण की युगल उपासना स्तोत्र : युगलकिशोराष्टक

हिन्दी अर्थ सहित -- नवजलधर विद्युद्धौतवर्णौ प्रसन्नौ, वदननयन पद्मौ चारूचन्द्रावतंसौ । अलकतिलक भालौ केशवेशप्रफुल्लौ, भज भजतु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ।।१।।

जिन नैनन श्रीकृष्ण बसे, वहां कोई कैसे समाय

श्रीराधा की पायल सूरदासजी के हाथ में आ गई । श्रीराधा के पायल मांगने पर सूरदासजी ने कहा पहले मैं तुम्हें देख लूं, फिर पायल दूंगा । दृष्टि मिलने पर सूरदासजी ने श्रीराधाकृष्ण के दर्शन किए । जब उन्होंने कुछ मांगने को कहा को सूरदासजी ने कहा—‘जिन आंखों से मैंने आपको देखा, उनसे मैं संसार को नहीं देखना चाहता । मेरी आंखें पुन: फूट जायँ ।’

व्रज के निराले ठाकुर श्रीबांकेबिहारीजी

श्रीबांकेबिहारीजी के दर्शन में बार-बार क्यों लगाया जाता है पर्दा ?

व्रज में श्रीराधा का जन्मोत्सव

व्रजराज नन्द के घर यदि श्रीकृष्ण प्रकट हुए हैं तो गोपराज वृषभानु के घर श्रीराधारानी का प्राकट्य निश्चित है क्योंकि आह्लादिनी के बिना आह्लाद आता ही नहीं है।