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मूलप्रकृति श्रीराधा का सम्पूर्ण परिचय

व्रज में कौन-से चार स्थानों पर ‘राधे-राधे’ ही बोला जाता है?

श्रीराधा के चरणचिह्न और उनका भाव

श्रीकृष्ण-स्वामिनी श्रीराधा ने अपने चरणकमलों में सुख देने वाले 19 चिन्हों को धारण किया है।

श्रीकृष्ण का चतुर्भुजरूप और श्रीराधा

श्रीराधा और गोपांगनाएं नन्दनन्दन श्रीकृष्ण की मधुर कान्ताभाव से सेवा-आराधना करती हैं। न वे श्रीकृष्ण के ऐश्वर्य को जानती हैं, न मानती हैं, न उसे देखने की कभी उनमें इच्छा ही जागती है। वरन् श्रीकृष्ण के चतुर्भुजरूप को देखकर वे डरकर संकोच में पड़ जाती हैं। उन्हें जहां जरा भी श्रीकृष्ण का ऐश्वर्यरूप दिखायी दिया, वहीं वे अपने ही प्रियतम श्यामसुन्दर को श्यामसुन्दर न मानकर कुछ अन्य मानने लगती हैं। व्रज में श्रीकृष्ण की भगवत्ता या उनके परमेश्वररूप की कोई पूछ नहीं है।

भगवान श्रीकृष्ण की मनमोहिनी दानलीला

एक तरफ तो सकुचाता-लजाता, गोरस की मटकियों को सिर पर रखे कुछ ठगा-सा, कुछ भयभीत पर कान्हा की रूपराशि पर मोहित व्रजवनिताओं का झुण्ड और दूसरी ओर चंदन और गेरु से मुख पर तरह-तरह की पत्रावलियां बनाए, कानों में रंग-बिरंगे पुष्पों के गुच्छे लटकाए, गले में गुंजा की माला पहने, हरे-गुलाबी अगरखा पर कमर में रंग-बिरंगे सितारों से झिलमिलाते फेंटा कसे, मोरपंखों से सजी लकुटिया (बेंत) लिये ग्वालबालों सहित श्रीकृष्ण का टोल (दल)।

श्रीराधा महिमा

जैसे कुम्हार मिट्टी के बिना घड़ा नहीं बना सकता तथा जैसे सुनार सोने के बिना आभूषण तैयार नहीं कर सकता, उसी प्रकार मैं तुम्हारे बिना सृष्टिरचना में समर्थ नहीं हो सकता। तुम सृष्टि की आधारभूता हो और मैं बीजरूप हूँ। जब मैं तुमसे अलग रहता हूँ, तब लोग मुझे ‘कृष्ण’ (काला-कलूटा) कहते हैं और जब तुम साथ हो जाती हो तब वे ही लोग मुझे ‘श्रीकृष्ण’ (शोभाशाली कृष्ण) कहते हैं।

श्रीराधा कृष्ण के साक्षात् दर्शन कराने वाला ‘श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तवराज’

श्रीराधा कृपाकटाक्ष स्तोत्र के भक्तिपूर्वक पाठ से श्रीराधाजी प्रकट होकर प्रसन्नतापूर्वक वरदान देती हैं अथवा अपने चरणों का महावर (जावक) भक्त के मस्तक पर लगा देती हैं। वरदान में केवल ‘अपनी प्रिय वस्तु दो’ यही मांगना चाहिए। तब भगवान श्रीकृष्ण प्रकट होकर दर्शन देते है और प्रसन्न होकर श्रीव्रजराजकुमार नित्य लीलाओं में प्रवेश प्रदान करते हैं। इससे बढ़कर वैष्णवों के लिए कोई भी वस्तु नहीं है।

परब्रह्म परमात्मा श्रीकृष्ण से सृष्टि का आरम्भ

यह अनंत ब्रह्माण्ड परब्रह्म परमात्मा का खेल है। जैसे बालक मिट्टी के घरोंदे बनाता है, कुछ समय उसमें रहने का अभिनय करता है और अंत मे उसे ध्वस्त कर चल देता है। उसी प्रकार परब्रह्म भी इस अनन्त सृष्टि की रचना करता है, उसका पालन करता है और अंत में उसका संहारकर अपने स्वरूप में स्थित हो जाता है। यही उसकी क्रीडा है, यही उसका अभिनय है, यही उसका मनोविनोद है, यही उसकी निर्गुण-लीला है जिसमें हम उसकी लीला को तो देखते हैं, परन्तु उस लीलाकर्ता को नहीं देख पाते।

श्रीराधा का गोलोकधाम से व्रज में अवतरण : कुछ अनछुए पहलू

भगवान श्रीकृष्ण ने गोपों और गोपियों को बुलाकर कहा--’गोपों और गोपियो ! तुम सब-के-सब नन्दरायजी का जो उत्कृष्ट व्रज है, वहां गोपों के घर-घर में जन्म लो। राधिके ! तुम भी वृषभानु के घर अवतार लो। वृषभानु की पत्नी का नाम कलावती है। वे सुबल की पुत्री हैं और लक्ष्मी के अंश से प्रकट हुई हैं। वास्तव में वे पितरों की मानसी कन्या हैं। पूर्वकाल में दुर्वासा के शाप से उनका व्रजमण्डल में गोप के घर में जन्म हुआ है। तुम उन्हीं कलावती की पुत्री होकर जन्म ग्रहण करो।

aaradhika.com के 50वें ब्लॉग के सम्बन्ध मे दो शब्द

मैं अपना 50वां ब्लॉग ‘श्रीकृष्णप्राणेश्वरी श्रीराधा’ रासेश्वर एवं रासेश्वरी श्रीराधाकृष्ण के युगल चरणकमलों में निवेदित करती हूँ। श्रीराधाकृष्ण के चरणों मैं मेरा शुरु से लगाव रहा है। इसीलिए मैंने अपनी वेबसाइट का नाम ‘श्रीकृष्ण की आराधिका--श्रीराधा’ से प्रेरित होकर ‘आराधिका’ (Aaradhika.com) रखा।