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नयनाभिराम भगवान श्रीबालकराम

क्या दिव्य स्वरूप है, लगता है भगवान अभी कुछ बोल देंगे । भगवान श्रीबालकराम का दूर्वादल के समान श्यामल स्वरूप नैनों को अपार सुख देने वाला है । निहारते ही आंखें झर-झर झरने लगती हैं । रात्रि में सोते समय भी वे बार-बार मन में दस्तक देते हुए आंखों के सामने उपस्थित हो जाते हैं । लगता है मन उस नयनाभिराम छवि पर ही अटक गया है ।

आसुंओं का महत्व

लीला-पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण की प्रत्येक लीला संसार को किसी-न-किसी ज्ञान से अवगत कराती है । ऐसी एक लीला है जिसमें भगवान ने अपनी प्राप्ति के दो साधनों से संसार को अवगत कराया है—१. भगवान के विरह में बहाए गए आंसू और २. शरणागति ।

भगवान की पूजा या सेवा

सामान्य भाषा में भगवान की ‘सेवा’ और ‘पूजा’ दोनों का समान अर्थ माना जाता है; लेकिन वैष्णव आचार्यों ने भाव के अनुसार इनमें बहुत बड़ा अंतर माना है । जानते हैं, भगवान की सेवा और पूजा में अंतर क्या अंतर है ?

भगवान श्रीकृष्ण का चतुर्भुज रूप

भगवान ने अपने चतुर्भुज दिव्य रूप के दर्शन की दुर्लभता और उसकी महत्ता बताते हुए अर्जुन से कहा—‘मेरे इस रूप के दर्शन बड़े दुर्लभ हैं; मेरे इस रूप के दर्शन की इच्छा देवता भी करते हैं । मेरा यह चतुर्भुजरूप न वेद के अध्ययन से, न यज्ञ से, न दान से, न क्रिया से और न ही उग्र तपस्या से देखा जा सकता है । इस रूप के दर्शन उसी को हो सकते हैं जो मेरा अनन्य भक्त है और जिस पर मेरी पूर्ण कृपा है ।

भगवान के स्वरूप का ध्यान क्यों करना चाहिए ?

विषयों की ओर आसक्त मन को भगवान के चरणकमलों की ओर घुमाने का एक सहज उपाय है--उनके स्वरूप-सौन्दर्य की उपासना । मनुष्य स्वाभाविक ही सौन्दर्य की ओर खिंचता है । अत: मनुष्य नित्य भगवान के सुंदर स्वरूप की सौन्दर्योपासना से सहज ही उनकी ओर खिंच सकता है और असीम शांति प्राप्त कर सकता है ।

जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम

परमात्मा के सभी अवतारों की अपनी अलग विशेषता होती है । किसी अवतार में धर्म ही विशेंष रूप से प्रधान रहता है तो किसी में प्रेम और आनंद । कोई परमात्मा का मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार है तो कोई लीला पुरुषोत्तम अवतार कहलाता है ।

काशी तो काशी है, काशी अविनाशी है

‘काशी’ इस शब्द का अर्थ है—जहां शिवस्वरूप ब्रह्मज्योति प्रकाशित होती है । माना जाता है कि यहां देह-त्याग के समय भगवान शंकर मरणोन्मुख प्राणी के कान में तारक-मंत्र सुनाते हैं, उससे जीव को तत्त्वज्ञान हो जाता है और उसके सामने शिवस्वरूप ब्रह्म प्रकाशित हो जाता है । ब्रह्म में लीन होना ही अमृत पद प्राप्त कर लेना या मोक्ष है ।

देवों के देव भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनके अर्थ

भगवान से ज्यादा उनके नाम में शक्ति होती है । आज की आपाधापी भरी जिंदगी में यदि पूजा-पाठ के लिए समय न भी मिले; तो यदि केवल भगवान के नामों का पाठ कर मनुष्य अपना कल्याण कर सकता है । यह सम्पूर्ण संसार भगवान शिव और उनकी शक्ति शिवा का ही लीला विलास है । पुराणों में भगवान शिव के अनेक नाम प्राप्त होते हैं ।