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लक्ष्मी-प्रेम या भगवान से प्रेम
एक दिन श्रीहरिप्रिया लक्ष्मी जी ने अपने पति वैकुण्ठपति भगवान विष्णु से व्यंग्य करते हुए कहा—‘नाथ !
यह संसार जितना मुझे चाहता है, उतना आपको नहीं चाहता है । इस संसार के लोग जितने मेरे भक्त हैं, उतने आपके नहीं हैं । यह बात आप भी जानते हैं । क्या आपको इससे जरा भी दु:ख नहीं होता है ?’
पाद-सेवन भक्ति की आचार्या लक्ष्मीजी
लक्ष्मीजी जिस पर कृपा करती हैं, तो उनका मद दूसरों को हो जाता है, लेकिन स्वयं लक्ष्मीजी को अपने गुणों, ऐश्वर्य, श्री का मद नहीं होता है क्योंकि भगवान नारायण सदैव लक्ष्मी से विरत रहते हैं । जानें, इसकी सुन्दर व्याख्या ।
श्रीमद् आदि शंकराचार्य द्वारा स्वर्ण की वर्षा
‘कनकधारा’ शब्द दो शब्दों कनक + धारा से मिलकर बना है । ‘कनक’ का अर्थ है स्वर्ण (सोना) और ‘धारा’ का अर्थ है ‘निरन्तर गिरना या धारा रूप में वर्षा होना । इसलिए ‘कनकधारा स्तोत्र’ का अर्थ हुआ वह स्तोत्र जिसके पाठ से लगातार स्वर्ण की वर्षा हुई ।