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सप्तर्षियों के पूजन का पर्व है ऋषि पंचमी
श्रीमद्भागवत के अनुसार सप्तर्षि भगवान श्रीहरि के अंशावतार अथवा कलावतार हैं; इसलिए ब्रह्मतेज और करोड़ों सूर्य की आभा से संपन्न हैं । गृहस्थ होते हुए भी ये मुनि-वृत्ति से रहते हैं । आकाश में सप्तर्षिमण्डल समस्त लोकों की मंगलकामना करते हुए भगवान विष्णु के परम पद ध्रुव लोक की प्रदक्षिणा किया करता है ।
‘गीत गोविन्द’ जिसका अंतिम पद स्वयं श्रीकृष्ण ने पूरा किया
भगवान जगन्नाथ जी का ही स्वरूप माने जाने वाले महाकवि जयदेव द्वारा रचित महाकाव्य ‘गीत गोविन्द’ की महिमा का वर्णन कौन कर सकता है ? जिस पर रीझ कर स्वयं भगवान श्रीकृष्ण ने अपने हाथ से पद लिख कर उसे पूरा किया । जयदेव जी और उनकी पत्नी पद्मावती श्रीकृष्ण प्रेमरस में डूबे रहते थे । जयदेव जी को भगवान के दशावतारों के प्रत्यक्ष दर्शन हुए थे ।
मनुष्य के पतन का सबसे बड़ा कारण है अभिमान
अभिमान सबको दु:ख देता है । भगवान श्रीकृष्ण की आठ पटरानियों में सबसे सुन्दर जाम्बवती थीं । जाम्बवती के पुत्र साम्ब बलवान होने के साथ ही अत्यन्त रूपवान भी थे । इस कारण साम्ब बहुत अभिमानी हो गए । अपनी सुन्दरता का अभिमान ही उनके पतन का कारण बना ।
जग में सुंदर हैं दो नाम, चाहे कृष्ण कहो या राम
परमात्मा के सभी अवतारों की अपनी अलग विशेषता होती है । किसी अवतार में धर्म ही विशेंष रूप से प्रधान रहता है तो किसी में प्रेम और आनंद । कोई परमात्मा का मर्यादा पुरुषोत्तम अवतार है तो कोई लीला पुरुषोत्तम अवतार कहलाता है ।
मन का हो तो अच्छा, मन का ना हो तो और...
एकनाथ जी को अनुकूल पत्नी मिली तो उन्हें उसमें आनंद है और तुकाराम जी को प्रतिकूल पत्नी मिली तो वे उसमें खुश हैं और तीसरे नरसी जी की पत्नी संसार छोड़ कर चली गई; फिर भी तीनों संत अपनी-अपनी परिस्थिति से संतुष्ट हैं और वे इसके लिए भगवान का उपकार मानते हैं ।
ढाई अक्षर के ‘कृष्ण’ नाम के बड़े-बड़े अर्थ
‘कृष्ण’ नाम की कई व्याख्याएं मिलती हैं जो यह दर्शाती है कि श्रीकृष्ण में सब देवताओं का तेज समाया हुआ है, वे परब्रह्म परमात्मा है, आदिपुरुष हैं, भक्ति के दाता व महापातकों का नाश करने वाले हैं । श्रीकृष्ण का नाम चिन्तामणि, कल्पवृक्ष है--सब अभिलाषित फलों को देने वाला है ।
गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण
जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।
भगवान श्री राधाकृष्ण शरणागति स्तोत्र
जो मनुष्य भगवान श्री राधाकृष्ण की चरण-सेवा का अधिकार बहुत शीघ्र प्राप्त करना चाहते हैं, उनको इस स्तोत्र (प्रार्थनामय मंत्र) का नित्य जप करना चाहिए । इसके लिए साधक को जीवन भर ‘चातकी भाव’ से इस प्रार्थना का पाठ करना चाहिए ।
भगवान श्रीकृष्ण का पांचजन्य शंख
भगवान श्रीकृष्ण अपने चार हाथों में शंख, चक्र, गदा और पद्म धारण करते हैं । उनके शंख का नाम ‘पांचजन्य’ है, जिसे उन्होंने महाभारत युद्ध के आरम्भ में कुरुक्षेत्र के मैदान में बजाया था । श्रीकृष्ण और अर्जुन ने जब भीष्म पितामह सहित कौरव सेना के द्वारा बजाये हुए शंखों और रणवाद्यों की ध्वनि सुनी, तब इन्होंने भी युद्ध आरम्भ की घोषणा के लिए अपने-अपने शंख बजाए ।
गोलोक से ब्रज भूमि में गिरिराज गोवर्धन का अवतरण
गोलोक के मुकुट व परमब्रह्म परमात्मा के छत्ररूप श्रीगिरिराज गोवर्धन श्रीवृन्दावन के अंक में स्थित हैं । श्रीगिरिराज गोवर्धन व्रजमण्डल का हृदय व सबसे अधिक पवित्र स्थल है । श्रीगिरिराज गोवर्धन मात्र पर्वत ही नहीं है, बल्कि भगवान श्रीकृष्ण का एक स्वरूप है ।