Home Tags Devi

Tag: devi

मां बगलामुखी और उनकी उपासना विधि

मां पीताम्बरा की उपासना में सभी वस्तुएं पीली होनी चाहिए । जैसे साधना पीले वस्त्र पहनकर की जाती है । पूजा में हल्दी की माला व पीले आसन, पीले पुष्प (गेंदा, कनेर प्रियंगु) और पीले चावल का प्रयोग होता है ।

शरत्पूर्णिमा पर महालक्ष्मी को करें इन नामों से प्रसन्न

देवी कमला बहुत उदार, दयामयी, यश और त्रिलोकी का वैभव देने वाली हैं । नाम-स्मरण से ही प्रसन्न होकर वे साधक को कुबेर के समान धन-सम्पत्ति (धन-धान्य, गाय, घोड़े, पुत्र, बन्धु-बांधव, दास-दासी) प्रदान करती हैं ।

भोग और मोक्ष देने वाली है श्रीविद्या

श्रीविद्या को प्राप्त करने वाले शिवयोगी ब्रह्मानन्द का पान करके इतने मस्त हो जाते हैं कि स्वर्ग के अधिपति इन्द्र को भी अपने से कंगाल समझते है फिर उनके लिए पृथ्वी के राजाओं की तो कोई औकात ही नहीं रहती है । निर्धन रहने पर भी वह सदा संतुष्ट रहता है, असहाय होने पर भी महाबलशाली होता है, उपवासी होने पर भी सदैव तृप्त रहता है । ब्रह्मविद्या के प्रभाव से ऐसा जीवन्मुक्त होकर वह ब्रह्म को ही प्राप्त हो जाता है ।

दस महाविद्याओं की आराधना का पर्व है गुप्त नवरात्रि

गुप्त नवरात्रि में दस महाविद्या की साधना से साधक की आंतरिक शक्तियों का जागरण होता है । साथ ही हर कार्य में विजय, धन-धान्य, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति और पुत्र प्राप्ति के साथ ही मोक्ष की भी प्राप्ति होती है । इसके अतिरिक्त दस महाविद्या की कृपा से मारण, मोहन, उच्चाटन, वशीकरण, स्तम्भन आदि प्रयोग सिद्ध होते हैं ।

देवी मंगलचण्डिका का मन्त्र व स्तोत्रपाठ करता है सर्वमंगल

दुर्गा को चण्डी कहते हैं और पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है; अत: जो मंगलग्रह की आराध्या हैं, उन्हें मंगलचण्डिका कहते हैं ।

रात्रि में सोते समय करें यह उपाय, जाग्रत होंगी आन्तरिक शक्तियां

इस प्रयोग का विलक्षण प्रभाव यह होगा कि मां जगदम्बा तुमसे प्रेम करेंगी, तुम उन्हें भूल भी जाओ पर वे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगी; क्योंकि पुत्र चाहें कुपुत्र क्यों न हो, माता कभी कुमाता नहीं होती है।

कन्या-पूजन के बिना नहीं होता नवरात्र-व्रत पूरा

कन्या-पूजन करते समय नहीं चुनें इन कन्याओं को, कैसे करें कन्या-पूजन

करुणामयी मां शताक्षी (शाकम्भरी)

पुत्र कष्ट में हों तो मां कैसे सहन कर सकती है? फिर देवी तो जगन्माता हैं, उनके कारुण्य की क्या सीमा? त्रिलोकी की ऐसी व्याकुलता देखकर मां के अंत:स्तल में उठने वाला करुणा का आवेग अकुलाहट के साथ आंसू की धारा बनकर बह निकला। नीली-नीली कमल जैसी दिव्य आंखों में मां की ममता आंसू बनकर उमड़ आयी। दो आंखों से हृदय का दु:ख कैसे प्रकट होता? जगदम्बा ने कमल-सी कोमल सैंकड़ों आंखें बना लीं। सैंकड़ों आंखों से करुणा के आंसुओं की अजस्त्र धारा बह निकली।। इसी रूप में माता ने सबको अपने दर्शन कराए और जगत में ‘शताक्षी’ (शत अक्षी) कहलाईं। करुणार्द्र-हृदया मां व्याकुल होकर लगातार नौ दिन और नौ रात तक रोती रहीं।

इक्यावन शक्तिपीठ जहां सती के अंग गिरे

सती का शरीर यद्यपि मृत हो गया था, किन्तु वह महाशक्ति का निवासस्थान था। अर्धनारीश्वर भगवान शंकर उसी के द्वारा उस महाशक्ति में रत थे। अत: मोहित होने के कारण उस शवशरीर को छोड़ न सके। भगवान शंकर छायासती के शवशरीर को कभी सिर पर, कभी दांये हाथ में, कभी बांये हाथ में तो कभी कन्धे पर और कभी प्रेम से हृदय से लगाकर अपने चरणों के प्रहार से पृथ्वी को कम्पित करते हुए नृत्य करने लगे। शिव के चरणप्रहारों से पीड़ित होकर कच्छप और शेषनाग धरती छोड़ने लगे। ब्रह्माजी की आज्ञा से ऋषिगण स्वस्तिवाचन करने लगे। देवताओं को चिन्ता हुई कि यह कैसी विपत्ति आ गयी। ये जगत्संहारक रुद्र कैसे शान्त होंगे?

श्रीकृष्ण को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए गोपिकाओं का कात्यायनी...

कात्यायनीदेवी श्रीकृष्ण मन्त्राधिष्ठात्री देवी हैं। गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए केवल हविष्यान्न खाकर एक मास तक मां की आराधना की। श्रीकृष्ण पतिरूप में मिलें इसका अर्थ है मुझे परमात्मा से मिलना है, परमात्मा के साथ एकाकार होना है। मां कात्यायनी ब्रह्मविद्या का स्वरूप हैं जो परमात्मा से मिलन कराती हैं। गोपियां मूंगे की माला से उनके मन्त्र का एक सहस्त्र जप करतीं।