Home Tags श्रीकृष्ण

Tag: श्रीकृष्ण

करुणामयी, कृष्णमयी, त्यागमयी श्रीराधा

श्रीकृष्ण की आत्मा श्रीराधा का चरित्र अथाह समुद्र के समान है जिसकी गहराई को नापना असंभव है; अर्थात् श्रीराधा-चरित्र के विभिन्न पहलुओं का पूर्णत: वर्णन करना असम्भव है । फिर भी पाठकों की सुविधा के लिए उस समुद्र में डुबकी लगा कर कुछ मोती ढूंढ़ ही लेते हैं ।

रामावतार की यज्ञ-सीताओं और गोपियों का क्या है सम्बन्ध ?

गोपियों का एक यूथ ‘रामावतार में यज्ञ में स्थापित सीताजी की प्रतिमाओं’ का था । कैसे यज्ञ-सीताएं गोपी रूप में अवतरित हुईं—वहीं प्रसंग इस ब्लॉग में दिया जा रहा है ।

भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला

भक्तों को दिए वरदानों और उनके मनोरथों को पूरा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण ने व्रज में अनेक लीलाएं कीं । उनमें से एक अत्यंत रोचक लीला है ‘भगवान श्रीकृष्ण की योगी लीला’ ।

पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान श्रीकृष्ण

ब्रह्मा से लेकर तृणपर्यन्त समस्त चराचर जगत--जो प्राकृतिक सृष्टि है, वह सब नश्वर है । तीनों लोकों के ऊपर जो गोलोकधाम है, वह नित्य है । गोलोकपति परमात्मा श्रीकृष्ण ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्डों के एकमात्र ईश्वर और पूर्ण ब्रह्म हैं, जो प्रकृति से परे हैं । ब्रह्मा, शंकर, महाविराट् और क्षुद्रविराट्--सभी उन परमब्रह्म परमात्मा का अंश हैं ।

भगवान श्रीकृष्ण की दावाग्नि-पान लीला

भगवान श्रीकृष्ण की एक अद्भुत रहस्यमयी लीला है—‘दावाग्नि-पान लीला’ । भगवान श्रीकृष्ण ने यह लीला क्यों की और क्या है इसका रहस्य ? इस लीला का वर्णन श्रीमद्भागवत के दशम स्कन्ध के सत्रहवें अध्याय में किया गया है ।

कुब्जा प्रसंग द्वारा श्रीकृष्ण का संसार को संदेश

संसार में स्त्रियां कुंकुम-चंदनादि अंगराग लगाकर स्वयं को सज्जित करती हैं; किन्तु हजारों में कोई एक ही होती है जो भगवान को अंगराग लगाने की सोचती होगी और वह मनोभिलाषित अंगराग लगाने की सेवा भगवान तक पहुंच भी जाती है क्योंकि उसमें भक्ति-युक्त मन समाहित था । कुब्जा की सेवा ग्रहण करके भगवान प्रसन्न हुए और उस पर कृपा की ।

नन्दबाबा जिनके आंगन में खेलते हैं परमात्मा

जो सभी को आनन्द देते हैं, वह हैं नन्द । नन्दबाबा सभी को चाहते हैं; इसीलिए उनको सभी का आशीर्वाद मिलता है और परमात्मा श्रीकृष्ण उनके घर पधारते हैं । गोलोक में नन्दबाबा भगवान श्रीकृष्ण के नित्य पिता हैं और भगवान के साथ ही निवास करते हैं । जब भगवान ने व्रजमण्डल को अपनी लीला भूमि बनाया तब गोप, गोपियां, गौएं और पूरा व्रजमण्डल नन्दबाबा के साथ पहले ही पृथ्वी पर प्रकट हो गया ।

प्रेम की आंख और द्वेष की आंख

जितना ही मनुष्य दूसरों से प्रेम करेगा, उनसे जुड़ता जाएगा; उतना ही वह सुखी रहेगा । जितना ही दूसरों को द्वेष-दृष्टि से देखोगे, उनसे कटते जाओगे उतने ही दु:खी होओगे । जुड़ना ही आनन्द है और कटना ही दु:ख है मित्रता या प्रेम की आंख से पृथ्वी स्वर्ग बनती है और द्वेष की आंख से नरक का जन्म होता है ।

साग विदुर घर खायो

विदुरजी बड़ी सावधानी से भगवान को केले का गूदा खिलाने लगे तो भगवान ने कहा—‘आपने केले तो मुझे बड़े प्यार से खिलाए, पर न मालूम क्यों इनमें छिलके जैसा स्वाद नहीं आया ।’ इसी से कहा गया है—‘सबसे ऊंची प्रेम सगाई ।’

भगवान का रूप इतना सुन्दर क्यों होता है ?

ऐसा माना जाता है कि सभी दिव्य गुणों और भूषणों—मुकुट, किरीट, कुण्डल आदि ने युग-युगान्तर, कल्प-कल्पान्तर तक तपस्या कर भगवान को प्रसन्न किया । भगवान बोले—‘वर मांगो ।’ गुणों और आभूषणों ने कहा—‘प्रभो ! आप हमें अंगीकार करें और हमें धारण कर लें । यदि आप हमें स्वीकार नहीं करेंगे तो हम ‘गुण’ कहने लायक कहां रह जाएंगे ? आभूषणों ने कहा—‘यदि आप हमें नहीं अपनाएगें तो हम ‘भूषण’ नहीं ‘दूषण’ ही बने रहेंगे ।’ भगवान ने उन सबको अपने विग्रह में धारण कर लिया ।