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‘अन्न-धन’ देने वाली मां अन्नपूर्णा : स्तोत्र
माता अन्नपूर्णा की आराधना करने से मनुष्य को कभी अन्न का दु:ख नहीं होता है; क्योंकि वे नित्य अन्न-दान करती हैं । यदि माता अन्नपूर्णा अपनी कृपादृष्टि हटा लें तो मनुष्य दर-दर अन्न-जल के लिए भटकता फिरे लेकिन उसे चार दाने चने के भी प्राप्त नहीं होते हैं । मां अन्नपूर्णा की प्रसन्नता के लिए भगवान आदि शंकराचार्य कृत एक सुन्दर स्तोत्र ।
भगवान के हरिहर स्वरूप का क्या है रहस्य ?
इतने में देवर्षि नारद वीणा बजाते, हरिगुण गाते वहां पधारे । तब पार्वतीजी ने नारदजी से इस समस्या का हल निकालने के लिए कहा । नारदजी ने हाथ जोड़कर कहा–‘मैं इसका क्या हल निकाल सकता हूँ । मुझे तो हरि और हर एक ही लगते हैं; जो वैकुण्ठ है वही कैलाश है ।’
काशी को ‘आनन्दवन’ क्यों कहते हैं ?
जीव का मृत्युकाल निकट आने पर जब भगवान शंकर उस मरणासन्न प्राणी को अपनी गोद में रखकर उसे तारक मन्त्र का उपदेश करने लगते हैं; उस समय अत्यंत करुणामयी देवी अन्नपूर्णा उस मरणासन्न प्राणी की व्याकुलता को देखकर अत्यंत द्रवित हो जाती हैं और कस्तूरी की गंध वाले अपने आंचल से उस प्राणी की हवा करने लगती हैं और उसकी समस्त व्याकुलता दूर कर देती हैं ।
भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले है शिव
भोले-भण्डारी भगवान शिव भक्तों के लिए भोले और दुष्टों के लिए भाले के समान हैं । भगवान शंकर इतने दयालु हैं कि अपने भक्तों के कल्याण के लिए लिए कभी नौकर बन जाते हैं तो कभी भिखारी का वेश धारण करने में भी जरा-सा संकोच नहीं करते हैं । भगवान शिव की भक्त की लाज बचाने की भक्ति कथा ।
भगवान शिव मस्तक पर चन्द्रमा और गले में मुण्डमाला क्यों धारण...
भगवान शिव के चन्द्रकला व मुण्डमाला धारण करने का गूढ़ रहस्य है । चन्द्रकला धारण करने का कारण है कि उनके ललाट की ऊष्मा, जो त्रिलोकी को भस्म करने में सक्षम हैं, उन्हें पीड़ित न करे । शिव का मुण्डमाल मरणशील प्राणी को सदैव मृत्यु का स्मरण कराता है जिससे वह दुष्कर्मों से दूर रहे।
इक्यावन शक्तिपीठ जहां सती के अंग गिरे
सती का शरीर यद्यपि मृत हो गया था, किन्तु वह महाशक्ति का निवासस्थान था। अर्धनारीश्वर भगवान शंकर उसी के द्वारा उस महाशक्ति में रत थे। अत: मोहित होने के कारण उस शवशरीर को छोड़ न सके। भगवान शंकर छायासती के शवशरीर को कभी सिर पर, कभी दांये हाथ में, कभी बांये हाथ में तो कभी कन्धे पर और कभी प्रेम से हृदय से लगाकर अपने चरणों के प्रहार से पृथ्वी को कम्पित करते हुए नृत्य करने लगे। शिव के चरणप्रहारों से पीड़ित होकर कच्छप और शेषनाग धरती छोड़ने लगे। ब्रह्माजी की आज्ञा से ऋषिगण स्वस्तिवाचन करने लगे। देवताओं को चिन्ता हुई कि यह कैसी विपत्ति आ गयी। ये जगत्संहारक रुद्र कैसे शान्त होंगे?
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part-II)
मंगलमूर्ति महादेव अद्भुत, अक्षत, अविनाशी, अप्रमेय, अजन्मा, निर्मल, मायारहित, मंगल के निकेतन हैं। भगवान शिव के अनन्त नाम और उनकी महिमा कहां तक कही जाय? अनन्त का अंत कैसे जाना जाए?
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part I)
शिव ही समस्त प्राणियों के अन्तिम विश्राम के स्थान हैं। संसार के क्लेशों, पाप-तापों से व्याकुल जीव के विश्राम के लिए भगवान सर्वसंहार करके प्रलय करते हैं। यह संहार भी भगवान की कृपा है। महाप्रलय में भगवान सबको अपने स्वरूप में लीनकर परम शान्ति प्रदान करते हैं। इसीलिए भगवान का नाम केवल ‘शिव’ ही नहीं ‘सदाशिव’ है।
अलबेले भगवान शिव और उनका अनोखा घर-संसार
जिनका ऐसा अद्भुत वेष हो और गृह पालन की सामग्री--बूढ़ा बैल, खटिये का पाया, फरसा, चर्म, भस्म, सर्प, कपाल--इतनी कम हो, तो भभूतिया बाबा शंकर के घर बड़ी मुसीबत रहती है जगज्जननी को। गृहस्वामी के पांच मुख, बच्चे गजानन और षडानन, सवारी के लिए बुड्ढा बैल, खाने के लिए भांग-धतूरा, रहने के लिए सूनी दिशाएं, खेलने के लिए श्मशान और आभूषणों के लिए फुफकारते सर्प। ऐसी स्थिति में यदि मां अन्नपूर्णा न होतीं तो भोलेबाबा की गृहस्थी चलती कैसे?
व्यासनन्दन श्रीशुकदेवजी
शुकदेवजी की कथाएँ : श्रीशुकदेवजी के जन्म की कथा, परमहंस शुकदेवजी के स्वरूप का वर्णन एवं श्रीशुकदेवजी का अनुपम दान--श्रीमद्भागवत ।