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उत्तम भक्ति किसे कहते हैं ?
एक ही भगवान कई रूपों में हमारे सामने आते हैं। भूख लगने पर अन्नरूप में, प्यास लगने पर जलरूप में, रोग में औषधिरूप से, गर्मी में छायारूप में तो सर्दी में वस्त्ररूप में परमात्मा ही हमें प्राप्त होते हैं । परमात्मा ने जहां श्रीराम, कृष्ण आदि सुन्दर रूप धारण किए तो वहीं वराह (सूअर), कच्छप, मीन आदि रूप धारण कर भी लीला की । भगवान कभी पुष्प या सुन्दरता के रूप में आते हैं तो कहीं मांस-हड्डियां पड़ी हों, दुर्गन्ध आ रही हो, वह भी भगवान का ही रूप है । मृत्यु के रूप में भी भगवान ही आते है ।
भक्ति हो तो भक्त सुधन्वा जैसी
सुधन्वा का कटा मस्तक ‘गोविन्द ! मुकुन्द ! हरि !’ पुकारता हुआ श्रीकृष्ण के चरणों पर जा गिरा । श्रीकृष्ण ने झट से उस सिर को दोनों हाथों में उठा लिया । उसी समय उस मुख से एक ज्योति निकली और सबके देखते श्रीकृष्ण के श्रीमुख में लीन हो गई ।
भगवत्सेवा से बढ़कर है संत-सेवा
गृहस्थ में रहकर यदि मनुष्य अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीविका उपार्जन करता हुआ भगवान के भजन के साथ संत-सेवा और दान-पुण्य आदि कर्म करता रहे तो इससे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं ।
परमात्मा की प्राप्ति में भाव ही प्रधान है
बालगोपाल बोले—‘तुमने मेरा अर्चन किया ही कब ? तुम तो जड़ मूर्ति का पूजन करते रहे । तुमने मूर्ति की प्राण-प्रतिष्ठा तो की पर उसमें मेरी उपस्थिति का भाव तुम्हें कभी नहीं आया । आज जब तुम्हें उस जड़ मूर्ति में मेरी उपस्थिति का आभास हुआ कि मैं मां को अर्पित किए गए हवन और भोग की गन्ध ग्रहण कर रहा हूँ तो मैं तुम्हारे सामने साक्षात् प्रत्यक्ष हो गया ।’
एक यशोदा कलियुग की
मां लीलावती और उसके बालकृष्ण दोनों ही लाड़ लड़ाते हुए एक-दूसरे की इच्छा पूरी करने लगे । लीलावती ने सदा-सदा के लिए अपने बालकृष्ण को पा लिया और बालकृष्ण ने भी उसका दुग्धपान कर उसे कलियुग में दूसरी यशोदा मां का दर्जा दे दिया ।
श्रीराधा कृष्ण की युगल उपासना स्तोत्र : युगलकिशोराष्टक
हिन्दी अर्थ सहित --
नवजलधर विद्युद्धौतवर्णौ प्रसन्नौ,
वदननयन पद्मौ चारूचन्द्रावतंसौ ।
अलकतिलक भालौ केशवेशप्रफुल्लौ,
भज भजतु मनो रे राधिकाकृष्णचन्द्रौ ।।१।।