Tag: पौराणिक कथा
भगवान का आशीर्वाद है चरणामृत
शालग्राम शिला या भगवान की प्रतिमा के चरणों से स्पर्श किए व उनके स्नान के जल को ‘चरणामृत’ या ‘चरणोदक’ कहते हैं; इसलिए चरणामृत को भगवान का आशीर्वाद माना जाता है । हिन्दू धर्म में चरणामृत को अमृत के समान और अत्यंत पवित्र माना गया है ।
भगवान शिव की कमल-पुष्पों से आराधना का फल
महर्षि लोमश बड़े-बड़े रोम होने के कारण ‘लोमश’ कहलाते हैं । भगवान शिव के वरदान से दिव्य शरीर प्राप्त होने पर लोमशजी को कहीं भी इच्छानुसार जाने की शक्ति, पूर्वजन्मों का ज्ञान और काल का ज्ञान प्राप्त हो गया । जब कल्प का अंत होता है, अर्थात् ब्रह्माजी का एक दिन व्यतीत होता है, तब लोमशजी के बाएं घुटने के ऊपर का एक रोम गिर पड़ता है । ऐसा माना जाता है कि अभी उनके बाएं घुटने के बीच का भाग ही रोम-रहित हुआ है ।
श्रीगणेश को मोदक क्यों सबसे अधिक प्रिय है ?
गणेशजी की मोदक-प्रियता ने मानव जीवन में माधुर्य का संचार कर दिया है । घर में कोई शुभ अवसर हो, चाहें बच्चे का जन्म-उत्सव हो, मुण्डन संस्कार हो, बेटी या बेटे की सगाई, शादी या गौना हो, परीक्षा में सफलता हो, प्रमोशन हो, चुनाव में जीत बो या अन्य कोई खुशी का अवसर हो; सभी में बेसन की बूंदी से बने ‘मोतीचूर के लड्डुओं के बिना हृदय के आह्लाद-खुशी का प्रकटीकरण नहीं होता है ।
प्रेम की आंख और द्वेष की आंख
जितना ही मनुष्य दूसरों से प्रेम करेगा, उनसे जुड़ता जाएगा; उतना ही वह सुखी रहेगा । जितना ही दूसरों को द्वेष-दृष्टि से देखोगे, उनसे कटते जाओगे उतने ही दु:खी होओगे । जुड़ना ही आनन्द है और कटना ही दु:ख है
मित्रता या प्रेम की आंख से पृथ्वी स्वर्ग बनती है और द्वेष की आंख से नरक का जन्म होता है ।
सूर्य और चन्द्र ग्रहण : क्या करें, क्या न करें
ग्रहणकाल में जो अशुद्ध परमाणु होते हैं, कुशा डालने से डाली हुई वस्तु पर उनका कोई प्रभाव नहीं होता है । इसलिए ग्रहण में जल और खाद्य-पदार्थों पर कुशा डालने से वे दूषित नहीं होते हैं । शास्त्रों में कुशा के आसन पर बैठकर भजन व योगसाधना का विधान है ।