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गुरु-भक्ति से युगल स्वरूप के दर्शन : भक्ति कथा

युगलस्वरूप के साक्षात् दर्शन करने से श्रीविट्ठलविपुलदेव के नेत्र स्तब्ध और देह जड़ हो गई, नेत्रों से प्रेमाश्रु बहने लगे । मुख से बोल निकले—‘हे रासेश्वरी ! आप करुणा करके मुझे अपनी नित्यलीला में स्थान दो । अब मेरे प्राण संसार में नहीं रहना चाहते हैं ।’

बापू के बंदर-गुरु

भगवान की तीन नियामतें हैं—आंख, कान और वाणी । इन नियामतों का हम चाहे सदुपयोग करें, चाहे दुरुपयोग, यह हमारे हाथ की बात है और यही उपदेश है बापू के इन तीन बंदरों का ।

हनुमानजी के गुरु कौन थे ?

ऐसा अद्भुत और आश्चर्यमय अध्ययन-अध्यापन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र आदि देवताओं और लोकपालों ने कभी देखा नहीं था । इस दृश्य को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और उनकी आंखें चौंधिया गयीं । वे सोचने लगे कि यह तो शौर्य, वीररस, धैर्य आदि सद्गुणों का साक्षात् स्वरूप आकाश में उपस्थित हो गया है ।

ज्ञान के आदर व पूजन का पर्व गुरुपूर्णिमा

गुरुपूजा का अर्थ किसी व्यक्ति का पूजन या आदर नहीं है; वरन् उस गुरु की देह में स्थित ज्ञान का आदर है, ब्रह्मज्ञान का पूजन है।