देवमुनिप्रवरार्चितलिंगं कामदहं करुणाकरलिंगम्।
रावणदर्पविनाशनलिंगं तत्प्रणमामि सदाशिवलिंगम्।। (लिंगाष्टक २)
अर्थात्–जो शिवलिंग देवगण व मुनियों द्वारा पूजित, कामदेव को नष्ट करने वाला, करुणा की खान, रावण के घमण्ड को नष्ट करने वाला है, उस सदाशिव-लिंग को मैं प्रणाम करता हूँ।
नर्मदा नदी के शिवलिंग को नर्मदेश्वर या बाणलिंग क्यों कहते हैं?
नर्मदेश्वर शिवलिंग इस धरती पर केवल नर्मदा नदी में ही पाए जाते हैं। यह स्वयंभू शिवलिंग हैं। इसमें निर्गुण, निराकार ब्रह्म भगवान शिव स्वयं प्रतिष्ठित हैं। नर्मदेश्वर लिंग शालग्रामशिला की तरह स्वप्रतिष्ठित माने जाते हैं, इनमें प्राण-प्रतिष्ठा की आवश्यकता नहीं रहती है। नर्मदेश्वर शिवलिंग को वाणलिंग इसलिए कहते है क्योंकि बाणासुर ने तपस्या करके महादेवजी से वर पाया था कि वे अमरकंटक पर्वत पर सदा लिंगरूप में प्रकट रहें। इसी पर्वत से नर्मदा नदी निकलती है जिसके साथ पर्वत से पत्थर बहकर आते हैं इसलिए वे पत्थर शिवस्वरूप माने जाते हैं और उन्हें ‘बाणलिंग’ व ‘नर्मदेश्वर’ कहते हैं।
नर्मदेश्वर शिवलिंग की महिमा
सहस्त्रों धातुलिंगों के पूजन का जो फल होता है उससे सौगुना अधिक मिट्टी के लिंग के पूजन से होता है। हजारों मिट्टी के लिंगों के पूजन का जो फल होता है उससे सौ गुना अधिक फल बाणलिंग (नर्मदेश्वर) के पूजन से होता है। अत: गृहस्थ लोगों को परिवार के कल्याण के लिए, लक्ष्मी व ज्ञान की प्राप्ति व रोगों के नाश के लिए नर्मदेश्वर शिवलिंग की प्रतिदिन पूजा करनी चाहिए।
घर में नर्मदेश्वर शिवलिंग स्थापित करते समय रखें इन बातों का ध्यान
सच्चे मन से देवाधिदेव महादेव का ध्यान और प्रार्थना करके नर्मदा नदी में गोता लगाने पर हाथ में जो शिवलिंग आता है, उसी को घर पर प्रतिष्ठित कर सकते हैं, और वही आपका भाग्य बदल सकता है। परन्तु नदी से वाणलिंग निकालकर या बाजार से खरीदते समय पहले परीक्षा करके ही शिवलिंग को घर पर स्थापित करें–खुरदरा, अत्यन्त पतला, अत्यन्त मोटा, चपटा, छेददार, तिकोना लिंग गृहस्थों के लिए वर्जित है।
नर्मदेश्वर शिवलिंग कर्कश (खुरदरा) होने से पुत्र और पत्नी को कष्ट होता है।
चपटा होने से परिवार में अशान्ति रहती है।
छेददार होने से प्रवास (दूसरी जगह जाकर रहना) होता है।
शिवलिंग एक तरफ से दबा हुआ होने पर पत्नी–पुत्र और धन की हानि होती है।
सिर की तरफ से स्फुटित (फूटा) होने से रोग होते हैं।
घर में अंगूठे की लम्बाई के बराबर का शिवलिंग स्थापित करना सर्वश्रेष्ठ माना जाता है। शिवलिंग सुन्दर वर्तुलाकार (गोलाकार)–पकी जामुन या मुर्गी के अंडे या कमलगट्टे की शक्ल के अनुरुप होना चाहिए। यह सफेद, नीला और शहद के रंग का होता है। नर्मदेश्वर शिवलिंग को वेदी (जलहरी) पर स्थापित कर पूजा करते हैं। वेदी तांबा, स्फटिक, सोना, चांदी, पत्थर या रुपये की बनाते हैं।
कैसे करें नर्मदेश्वर शिवलिंग की नित्य पूजा
शिवलिंग को घर के मन्दिर में उत्तर की ओर मुख करके स्थापित करें। शिवपूजा में पवित्रता का अत्यन्त महत्त्व है, अत: स्नान करके रुद्राक्ष व भस्म लगाकर शिवपूजा करने से उमामहेश्वर की प्रसन्नता प्राप्त होती है। शास्त्रों में लिखा है कि जिस इष्टदेवता की उपासना करनी हो उस देवता के स्वरूप में स्थित होना चाहिए।
पूजन के लिए पूर्व दिशा की ओर मुख करके, आसन पर बैठकर शिवलिंग की पूजा करें। शिवलिंग को एक बड़े कटोरे या थाली में रखकर प्रतिदिन ‘नम: शिवाय’ या प्रणव का जप करते हुए जल, कच्चा दूध या गंगाजल से स्नान कराएं। नर्मदेश्वर शिवलिंग को विशेष दिनों में (श्रावणमास, सोमवार, प्रदोष, मासिक शिवरात्रि, पुष्य नक्षत्र या त्योहारों पर) पंचामृत से स्नान कराना चाहिए। फिर चंदन, अक्षत, इत्र, सुगन्धित फूल या श्वेत फूल (सफेद आक) चढ़ाएं। शिवपूजा में बेलपत्र सबसे महत्वपूर्ण हैं। बेलपत्र इस मन्त्र से चढ़ाएं–
त्रिदलं त्रिगुणाकारं त्रिनेत्रं च त्रिधायुतम्।
त्रिजन्म पापसंहारं बिल्वपत्रं शिवार्पणम्।।
अर्थात्–तीन दल वाला, सत्त्व, रज एवं तमरूप, सूर्य, चन्द्र व अग्नि–इन तीन नेत्ररूप, तीन आयुधरूप, तथा तीनों जन्मों के पापों को नष्ट करने वाला यह बिल्वपत्र मैं भगवान शिव को अर्पण करता हूँ।
धूप, दीप से आरती कर क्षमा-प्रार्थना करें। प्रतिदिन नियमपूर्वक शिवलिंग का दर्शन कर नमस्कार करने से भी मनुष्य का कल्याण होता है। क्षमा-प्रार्थना इस मन्त्र से करें–
पापोऽहं पापकर्माहं पापात्मा पापसम्भव:।
त्राहि मां पार्वतीनाथ सर्वपापहरो भव।।
शिव के निर्माल्य को पेड़ पौधों पर चढ़ा दें, उससे पैर नहीं लगने चाहिए। बाणलिंग या नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा में आवाहन और विसर्जन नहीं होता है। नर्मदेश्वर शिवलिंग का प्रसाद ग्रहण कर सकते हैं।
नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा के शुभफल
–नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से धन-ऐश्वर्य, भोग और मोक्ष प्राप्त होता है।
–गन्ने के रस से नर्मदेश्वर शिवलिंग का अभिषेक करने से जन्म-जन्मान्तर की दरिद्रता दूर हो जाती है।
–भगवान शंकर ज्ञान के देवता हैं। लिंगाष्टक में कहा गया है–’बुद्धिविवर्धनकारण लिंगम्’, अत: शिवलिंग पूजा बुद्धि का वर्धन करती है, तथा साधक को अक्षय विद्या प्राप्त हो जाती है।
–नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा से अनेक जन्मों के संचित पाप नष्ट हो जाते हैं।
–नर्मदेश्वर शिवलिंग की पूजा सभी मनोरथों को पूर्ण करने वाली व अपार सुख देने वाली है।
–नर्मदेश्वर शिवलिंग पर यदि रोजाना ‘त्र्यम्बकं मन्त्र’ बोलते हुए जल की धारा चढ़ाई जाए तो रोगों से छुटकारा मिल जाता है।
स्कन्दपुराण में कहा गया है कि चातुर्मास्य में जो पंचामृत से नर्मदेश्वर शिवलिंग को स्नान कराता है, उसका पुनर्जन्म नहीं होता। जो नर्मदेश्वर शिवलिंग पर शहद से अभिषेक करता है उसके सभी दु:ख दूर हो जाते हैं, और जो चातुर्मास्य में शिवजी के आगे दीपदान करता है, वह शिवलोक को प्राप्त होता है।
महाभारत के अनुशासनपर्व (१५।११) में कहा गया है–
नास्ति शर्वसमो देवो नास्ति शर्वसमा गति:।
नास्ति शर्वसमो दाने नास्ति शर्वसमो रणे।।
अर्थात्–’शिव के समान देव नहीं है, शिव के समान गति नहीं है, शिव के समान दाता नहीं है, शिव के समान योद्धा (वीर) नहीं है।’
अत: कल्याण की कामना रखने वाले मनुष्य को शिवलिंग का पूजन अवश्य करना चाहिए।