कलियुग में पवनपुत्र हनुमान ग्राम-ग्राम में, घर-घर में पूजे जाते हैं । सच्चे, श्रद्धावान मनुष्य के कष्टों का निवारण करने वाला उनके समान उपकारी व दयालु कोई दूसरा देव नहीं है ।
सात चिरंजीवियों में से एक है हनुमानजी
सीताजी द्वारा दिए गए वरदान ‘अजर अमर गुननिधि सुत होहू’ और आयुर्वेद के जानकार होने से हनुमानजी ने अपने को चिरंजीवी बना लिया है । वायुदेव के मानस औरस पुत्र होने के कारण हनुमानजी का वायु से गहरा सम्बन्ध है । वे वायुनन्दन, पवनतनय, पवनपुत्र, वातात्मज और मारुति नाम से जाने जाते हैं, इसलिए हनुमानजी की आराधना से वातरोगों (वायुरोगों) का नाश होता है ।
महर्षि चरक ने कफ, पित्त और वायु दोषों में वायु को ही बलवान और प्रधान दोष माना है । पित्त, कफ, मल और धातु ये सब पंगु (परतन्त्र) हैं । इनको वायु जहां ले जाता है, वहीं ये बादल के समान चले जाते हैं । अधिकांश रोग वायु कुपित होने से ही उत्पन्न होते हैं ।
प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान, नाग, कूर्म, कृकर, देवदत्त, और धनंजय—ये दस प्रकार के प्राणवायु हैं । शास्त्रों में आत्मा सहित इन दस वायु को एकादश रूद्र कहा गया है । इन वायुओं पर जो विजय प्राप्त कर लेता है, उसे ही अष्टसिद्धियां प्राप्त होती हैं । हनुमानजी अष्टसिद्धियों के दाता हैं ।
वायुरोगों के नाश के लिए हनुमानजी की पूजाविधि और मन्त्र
—सबसे पहले किसी शुद्ध स्थान पर हनुमानजी की तस्वीर के सामने पूर्व की ओर मुख करके आसन पर बैठ जाएं ।
—चंदन, चावल, फूल, धूप-दीप व नैवेद्य से हनुमानजी का पूजन करें । हनुमानजी को शुद्ध घी में घर पर बनाया हुआ चूरमा प्रसाद चढ़ाना चाहिए । यदि रोज चूरमा का भोग न लगा सकें तो मंगलवार को अवश्य भोग लगाना चाहिए ।
—हनुमानजी के चित्र के सामने शुद्ध घी का ही दीप जलाना चाहिए ।
वायुरोग नाशक मन्त्र
वायुरोग के नाश के लिए जो मन्त्र बताए जा रहे हैं उनमें से अपनी सुविधानुसार जो आसान लगे, वह मन्त्र जाप कर सकते हैं —
पहला मन्त्र है—
नासै रोग हरै सब पीरा ।
जपत निरंतर हनुमत बीरा ।।
इस मन्त्र का ज्यादा-से-ज्यादा जप करने का प्रयत्न करना चाहिए । रात-दिन मानसिक जप भी कर सकते हैं । या प्रतिदिन केवल रात में भोजन का नियम लेकर एक सौ आठ बार जप करें तो मनुष्य छोटे-मोटे रोगों से छूट जाता है ।
दूसरा मन्त्र है—
हनूमान अंजनीसूनो वायुपुत्र महाबल ।
अकस्मादागतोत्पातं नाशयाशु नमोऽस्तु ते ।।
इस मन्त्र का जप दो प्रकार से कर सकते हैं । पहला, अनुष्ठान विधि से जप कर सकते हैं—इसमें ११ दिनों तक रोजाना ३ हजार माला का जप होना चाहिए । उसके बाद दशांश जप या हवन करके ब्राह्मण भोजन कराना चाहिए, इससे शीघ्र ही रोग नष्ट हो जाता है ।
दूसरी विधि है कि सभी अवस्थाओं में चलते-फिरते, काम करते हुए, जब भी अवसर प्राप्त हो, इस मन्त्र का तब तक मानसिक जप करना चाहिए, जब तक की रोग शान्त न हो जाए ।
‘हनुमानबाहुक’ के तीन पाठ मिटा देते हैं वातरोग
तुलसीदासजी की बाहुओं में वायु-प्रकोप से भयंकर पीड़ा थी । उसी समय उन्होंने ‘हनुमानबाहुक’ की रचना की जिसके फलस्वरूप उन्हें वायु-प्रकोप से मुक्ति मिल गयी । ऐसी मान्यता है कि औषधि सेवन से जो वात कष्ट दूर नहीं हो पाता, उसे हनुमानबाहुक के केवल तीन पाठ पूरी तरह से दूर कर देते हैं । इतना ही नहीं ‘हनुमानबाहुक’ के ग्यारह हजार एक सौ आठ (११,१०८) पाठ करने से असम्भव कार्य भी सम्भव हो जाता है ।
समस्त मनोरथों को पूर्ण कर अभीष्ट फलदाता होने से ‘हनुमानबाहुक’ का पाठ नित्य किया जा सकता है । स्नान करके शुद्ध आसन पर बैठकर हनुमानजी की प्रतिमा या चित्रपट पर गुग्गुल का धूप निवेदन करें । बेसन के पांच लड्डू या पांच फल या पंचमेवा का नैवेद्य (भोग) अर्पणकर एकाग्रमन से हनुमानजी का ध्यान करते हुए ‘हनुमानबाहुक’ का नित्य पाठ करने पर वायु सम्बन्धी सभी रोगों का शमन हो जाता है।
दै गूगुल की धूप हमेशा।
करै पाठ तन मिटै कलेषा।।
इन उपायों को करते समय रखें इन बातों का ध्यान
—किसी भी मंगलवार से मन्त्रजाप शुरु किया जा सकता है ।
—जननाशौच (बच्चे के जन्म का सूतक) और मरणाशौच (मृत्यु के सूतक) में इसका प्रारम्भ नहीं करना चाहिए ।
—मन्त्रकर्ता को सात्विक आहार ही लेना चाहिए ।
—ब्रह्मचर्य पालन, क्रोध नहीं करना और सत्य बोलना एवं सदाचार से हनुमानजी विशेष प्रसन्न होते हैं । अत: यदि ये सद्गुण अपना लिए जाएं तो रोग का नाश शीघ्र हो जाता है ।
‘पवन-तनय संतन हितकारी’ हनुमानजी उपमारहित हैं, उनकी कहीं तुलना है ही नहीं । उनके उपकारों का गुणगान करना सूर्य को दीपक दिखाने के समान है । वे हृदय से चाहते हैं कि प्राणियों के दु:ख दारिद्रय, आधि-व्याधि सदा के लिए मिट जाएं ।