जै राधे रासेश्वरी, रसिक राय घनश्याम।
जै श्री कीरति लाड़ली, जै जसुमति सुखधाम।।
राचै तो रंग राधिका, बांचै तो तेहि नाम।
याचै तो कीरति कुंवरि, कहा और सों काम।।
चारि वैद कौ सार है, सामवेद कौ गीत।
मिश्री राधा नाम है, यही नाम नवनीत।।
उनके दिव्य प्रेम का, दिव्य भावों का, उनके महान त्याग का और उनके स्वरूप-तत्त्व का स्मरण कर मनुष्य अपने क्षुद्रजीवन को धन्य बना सकता है और साधना के उच्च स्तर पर पहुंच सकता है।
त्यागमूर्ति श्रीराधा आयीं जग को त्याग सिखाने आज।
दिव्य प्रेम का मर्म बताने प्रगट हुईं लेकर सब साज।।
भगवान श्रीकृष्ण का आनन्दस्वरूप या ह्लादिनी शक्ति ही श्रीराधा के रूप में प्रकट हुई हैं। श्रीराधा के चित्त, इन्द्रिय, शरीर, बुद्धि और अहंकार–सभी आह्लाद के साररूप श्रीकृष्णप्रेम द्वारा बने हैं। इसलिए श्रीकृष्णसुखजीवना श्रीराधा का एकमात्र कार्य है श्रीकृष्ण का आनन्दविधान। वे भगवान श्रीकृष्ण के वक्ष:स्थल पर इस प्रकार विराजती हैं, जैसे आकाश में नवीन नील मेघों में बिजली चमक रही हो। परमआह्लादरूपिणी श्रीराधा का विग्रह संतोष व हर्ष से भरा है। ये निर्गुण (त्रिगुणों से रहित दिव्य चिन्मयगुणों वाली), निराकारा (पांचभौतिक शरीर से रहित दिव्य स्वरूपा), निर्लिप्ता (लौकिक विषय-राग से रहित) और आत्मस्वरूपिणी (श्रीकृष्ण की आत्मा) हैं।
परमाह्लादरूपा च संतोषहर्षरूपिणी।
निर्गुणा च निराकारा निर्लिप्ताऽऽत्मस्वरूपिणी।।
श्रीराधा : प्रेमप्रतिमा
श्रीराधा सर्वोत्कृष्ट प्रेम की प्रतीक हैं। प्राणीमात्र को भगवत्प्रेम का पाठ पढ़ाने के लिए ही उनका अवतार हुआ है। महाभावरूपा श्रीराधा श्रीकृष्ण-प्रेम में अपने को सदा भूली रहती हैं। वे अपने को प्रियतम ‘श्रीकृष्ण-धन’ का धनी मानती हैं।
‘श्रीराधे! तुम्हारी प्रेमडोर में बंधे भगवान श्रीकृष्ण पतंग की भांति सदा तुम्हारे आस-पास ही चक्कर लगाते रहते हैं, तुमने अपने महान प्रेमसिन्धु की बाढ़ से उन्हें वश में कर लिया। श्रीकृष्ण की आराधना के ही कारण तुम राधा-नाम से विख्यात हुईं। अपना यह नामकरण स्वयं तुमने किया है।’
मनुष्य की कामना जब शरीर में केन्द्रित होती है, तब उसका नाम होता है ‘काम’ और जब श्रीकृष्ण में केन्द्रित होती है, तब वही ‘प्रेम’ बन जाती है। आज के इस अशांत और स्वार्थमय विश्व में श्रीराधाके दिव्य प्रेम का एक कण भी मनुष्य को महामानव बनाने में समर्थ है।
श्रीराधा का रूप-माधुर्य
राधा अतीव सुन्दरी हैं। बिजली, स्वर्ण व चम्पापुष्प के समान सुनहरी कान्ति वाला उनका गोरा श्रीअंग है। उनकी मुखकान्ति के आगे करोड़ों शरच्चन्द्रों की आभा फीकी है। क्षण-क्षण में चंचल नेत्रों से विचित्र छटा दिखाने वाले चकोर के बच्चे के सदृश उनके लोचन हैं। ऐसी राधारानी क्या कभी मुझे अपने कृपाकटाक्ष का अधिकारी बनायेंगी?
तडित्सुवर्णचम्पक प्रदीप्तगौरविग्रहे,
मुखप्रभापरास्तकोटि शारदेन्दुमण्डले।
विचित्रचित्र संचरच्चकोरशावलोचने,
कदाकरिष्यसीह मां कृपाकटाक्ष भाजनम्।। (श्रीराधाकृपाकटाक्ष स्तोत्र)
दिव्य पुष्पों के गुच्छों से गूंथे गये काले घुंघराले लहराते केश हैं, जल की लहरों से हिलते हुए कमल के नवीन नाल के समान जिनकी कोमल भुजाएं हैं, गजेन्द्र की सूंड के समान जिनकी जंघाएं हैं, चलते समय अंगों की छवि ऐसी लगती है मानो मनोहर स्वर्णलता लहरा रही हो, चरणकमलों में स्वर्णमय नूपुर ऐसे लगते हैं मानों वेदमन्त्रों की मधुर झनकार कर रहे हों।
रूप-लावण्य की प्रतिमा श्रीराधा के सौन्दर्य का चित्रण सूरदासजी ने अपने पद में किया है–
राधे तेरौ बदन बिराजत नीकौ।
जब तू इत-उत बंक बिलोकति, होत निसापति फीकौ।।
भृकुटी धनुष, नैन सर, साँधे, सिर केसरि कौ टीकौ।
मनु घूँघट-पट मैं दुरि बैठ्यौ, पारधि रति-पतिही कौ।।
गति मैमंत नाग ज्यों नागरि, करे कहति ही लीकौ।
सूरदास-प्रभु बिबिध भाँति करि, मन रिझयौ हरि पीकौ।।
उनका रूप लावण्य केवल कृष्ण को ही विमोहित नहीं करता, वरन् यशोदाजी भी राधा-कृष्ण की जोड़ी की कल्पना करने लगती हैं। इसी अनुकम्पा से वे सूर्य से प्रार्थना करती हैं–
नैन विशाल, बदन अति सुंदर, देखत नीकी, छोटी।
सूर महरि सबिता सौं, बिनवति, भली स्याम की जोटी।।
एक सुन्दर कथा–भगवान श्रीकृष्ण के अन्तर्ध्यान हो जाने पर विरहकातुर होकर सभी रानियां यमुनाजी के तट पर आतीं हैं और यमुनाजी को प्रफुल्लित देखकर उनसे पूछती हैं–’जैसे हम श्रीकृष्ण की धर्मपत्नियां हैं, वैसे ही तुम भी हो; हम विरहाग्नि में जली जा रही हैं पर तुम प्रसन्न दिख रही हो। बताओ इसका क्या कारण है?’ रानियों की बात सुनकर यमुनाजी हंस पड़ीं और बोली–’‘आत्मा में ही रमण करने वाले भगवान श्रीकृष्ण ‘आत्माराम’ हैं और उनकी आत्मा हैं–श्रीराधाजी। मैं दासी की तरह श्रीराधा की सेवा करती हूँ। उनकी सेवा के प्रभाव से ही भगवान का विरह मुझे स्पर्श नहीं करता।’ भगवान की जितनी भी रानियां हैं, सब श्रीराधा के अंश का ही विस्तार हैं। श्रीराधा और श्रीकृष्ण का नित्य संयोग है अत: श्रीराधा के अंशरूप विद्यमान अन्य रानियों को भी भगवान का संयोग प्राप्त है।
Jai Shri Radhey………
Jay shree Radhe Rani Sarwar
He shri radhe there bhakto me charan sewa mile