एक बार ‘कृष्ण’ नाम ही हर लेता है जितने पाप।
नहीं जीव की शक्ति, कर सके वह जीवन में उतने पाप।।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं—‘जो भजता है मुझको और मांगता है सांसारिक-सुख; वह व्यक्ति अमृत छोड़कर विष मांगता है; वह बड़ा मूर्ख है। पर मैं तो समझदार हूँ; मैं उस मूर्ख को विष (सांसारिक-सुख) क्यों दूंगा? मैं उसे अपने चरणों की भक्ति देकर सांसारिक-सुखों को विस्मृत करा (भुला) देता हूँ।’
इसी तथ्य को दर्शाती एक सुन्दर कथा है—
गौड़ देश में एक ब्राह्मण निर्धनता के कारण बहुत दु:खी था। जहां कहीं भी वह सहायता मांगने जाता, सब जगह उसे तिरस्कार मिलता। वह ब्राह्मण शास्त्रों को जानने वाला व स्वाभिमानी था। उसने संकल्प किया कि जिस थोड़े से धन व स्वर्ण के कारण धनी लोग उसका तिरस्कार करते हैं, वह उस स्वर्ण को मूल्यहीन कर देगा। वह अपने तप से पारस प्राप्त करेगा और सोने की ढेरियां लगा देगा।
लेकिन उसने सोचा कि ‘पारस मिलेगा कहां? ढूँढ़ने से तो वह मिलने से रहा। कौन देगा उसे पारस? देवता तो स्वयं लक्ष्मी के दास हैं, वे उसे क्या पारस देगें?’ ब्राह्मण ने भगवान औघड़दानी शिव की शरण में जाने का निश्चय किया—‘जो विश्व को विभूति देकर स्वयं भस्मांगराग लगाते हैं; वे कपाली ही कृपा करें तो पारस प्राप्त हो सकता है।’
घर नहीं, धन नहीं, अन्न और भूषण नहीं,
फिर भी शिव महादानी कहलाते हैं।
देखत भयंकर, पर नाम शिवशंकर,
नाश करते हैं तो भी नाथ कहलाते हैं।।
ब्राह्मण ने निरन्तर भगवान शिव का रुद्रार्चन, पंचाक्षर-मन्त्र का जप और कठिन व्रत करना शुरु कर दिया। आखिर भगवान आशुतोष कब तक संतुष्ट नहीं होते! ब्राह्मण की बारह वर्ष की तपस्या सफल हुई। भगवान शिव ने स्वप्न में दर्शन देकर कहा—‘तुम वृन्दावन में श्रीसनातन गोस्वामी के पास जाओ। उनके पास पारस है और वे तुम्हें दे देंगे।’
‘श्रीसनातन गोस्वामी के पास पारस है, और वे उस महान रत्न को मुझे दे देंगे। भगवान शंकर ने कहा है तो वे अवश्य दे देंगें’—ऐसा सोचते हुए ब्राह्मण वृन्दावन की ओर चला जा रहा था। खुशी के मारे यात्रा की थकान व नींद उससे कोसों दूर चली गयी थी।
वृन्दावन पहुंचने पर उसने लोगों से श्रीसनातन गोस्वामी का पता पूछा। लोगों ने वृक्ष के नीचे बैठे अत्यन्त कृशकाय (दुर्बल), कौपीनधारी, गुदड़ी रखने वाले वृद्ध को श्रीसनातन गोस्वामी बतलाया।
(चैतन्य महाप्रभुजी के शिष्य सनातन गोस्वामी वृन्दावन में वृक्ष के नीचे रहते थे, भीख मांगकर रूखी-सूखी खाते, फटी लंगोटी पहनते और गुदड़ी व करवा साथ में रखते थे। आठ प्रहर में केवल चार घड़ी सोते और शेष समय श्रीकृष्णनाम का कीर्तन करते थे। एक समय वे विद्या, पद, ऐश्वर्य और मान में लिप्त थे, बंगाल के कर्ता-धर्ता थे, किन्तु श्रीकृष्णकृपा से श्रीकृष्णप्रेम की मादकता से ऐसे दीन बन गये कि परम वैरागी बनकर वृन्दावन से ही गोलोक पधार गए।)
ब्राह्मण ने मन में कहा—‘यह कंगाल सनातन गोस्वामी है, ऐसे व्यक्ति के पास पारस होने की आशा कैसे की जा सकती है; लेकिन इतनी दूर आया हूँ तो पूछ ही लेता हूँ, पूछने में क्या जाता है?’
ब्राह्मण ने जब श्रीसनातन गोस्वामी से पारस के बारे में पूछा तो उन्होंने कहा—‘इस समय तो मेरे पास नहीं है, मैं उसका क्या करता? क्योंकि—
गावैं स्यामा-स्याम को, ध्यावैं स्यामा-स्याम।
निरखैं स्यामा-स्याम को, यही हमारो काम।।
श्रीसनातन गोस्वामी ने बताया कि एक दिन मैं यमुनास्नान को जा रहा था तो रास्ते में पारस पत्थर पैर से टकरा गया। मैंने उसे वहीं यमुनाजी की रेत में गाड़ दिया जिससे किसी दिन यमुनास्नान से लौटते समय वह मुझे छू न जाए; क्योंकि उसे छूकर तो पुन: स्नान करना पड़ता है। तुम्हें चाहिए तो तुम उसे वहां से निकाल लो।’
(कंचन, कामिनी (सोना, स्त्री आदि) भगवान की विस्मृति कराने वाले हैं इसलिए सच्चे संत पारस के छू जाने भर को अपवित्र मानते हैं)
श्रीसनातन गोस्वामी ने जहां पारस गड़ा हुआ था, उस स्थान का पता ब्राह्मण को बतला दिया। रेत हटाने पर ब्राह्मण को पारस मिल गया। पारस की परीक्षा करने के लिए ब्राह्मण लोहे का एक टुकड़ा अपने साथ लाया था। जैसे ही ब्राह्मण ने लोहे को पारस से स्पर्श किया वह स्वर्ण हो गया। पारस सही मिला है, इससे अत्यन्त प्रसन्न होकर ब्राह्मण अपने गांव की ओर लौट दिया।
तभी ब्राह्मण के मन में एक प्रश्न कौंधा—‘उस संत के पास तो यह पारस था फिर भी उसने इसे अपने पास नहीं रखा; बल्कि यह कहा कि अगर यह छू भी जाए तो उन्हें स्नान करना पड़ता है। अवश्य ही उनके पास पारस से भी अधिक कोई मूल्यवान वस्तु है।’
‘श्रीकृष्णनाम’ है कल्पतरु
ब्राह्मण लौटकर श्रीसनातन गोस्वामी के पास आया और बोला—‘अवश्य ही आपके पास पारस से भी अधिक मूल्यवान वस्तु है जिसके कारण आपने उसे त्याग दिया।’ ब्राह्मण को देखकर हंसते हुए श्रीसनातन गोस्वामी ने कहा—‘पारस से बढ़कर श्रीकृष्णनाम रूपी कल्पवृक्ष मेरे पास है।’
कल्पवृक्ष सम है सदा करुणामय हरिनाम।
चाह किये देता मुकति, प्रेम किए ब्रजधाम।।
पारस से तो केवल सोना ही मिलता है किन्तु श्रीकृष्णनाम सब कुछ देने वाला कल्पवृक्ष है, उससे आप जो चाहेंगे, वह प्राप्त होगा। ऐसा कोई कार्य नहीं जो भगवान के नाम के आश्रय लेने पर न हो। मुक्ति चाहोगे, मुक्ति मिलेगी; परमानन्द चाहोगे, परमानन्द मिलेगा; व्रजरस चाहोगे व्रजरस मिलेगा। श्रीकृष्ण का एक नाम सब पापों का नाश करता है, भक्ति का उदय करता है, भवसागर से पार करता है और अंत में श्रीकृष्ण की प्राप्ति करा देता है। एक ‘कृष्ण’ नाम से इतना धन मिलता है।’
‘कृष्ण’ नाम ही स्वयं कृष्ण हैं भजो सहित निष्ठा अविराम।
सदा नाम के सहित विराजित रहते हैं हरि स्वयं ललाम।।
यह सुनकर ब्राह्मण ने सनातन गोस्वामीजी से विनती की—‘मुझे आप वही श्रीकृष्णनाम रूपी पारस प्रदान करने की कृपा करें।’
श्रीसनातन गोस्वामी ने कहा—‘उसकी प्राप्ति से पहले आपको इस पारस को यमुना में फेंकना पड़ेगा।’
ब्राह्मण ने ‘यह गया पारस’ कहते हुए पूरी शक्ति से पारस को यमुना में दूर फेंक दिया। भगवान शिव की दीर्घकालीन तपस्या व संत के दर्शन से ब्राह्मण के मन व चित्त निर्मल हो गए थे। उसका धन का मोह समाप्त हो गया और वह भगवान की कृपा का पात्र बन गया। श्रीसनातन गोस्वामी ने उसे ‘श्रीकृष्णनाम’ की दीक्षा दी—वह ‘श्रीकृष्णनाम’ जिसकी कृपा के एक कण से करोड़ों पारस बन जाते हैं। नाम रूपी पारस से तो सारा शरीर ही कंचन का हो जाता है—
सभी रसायन हम करीं नहीं नाम सम कोय।
रंचक घट मैं संचरै, सब तन कंचन होय।।
‘जो मेरे नामों का गान करके मेरे समीप प्रेम से रो उठते हैं, उनका मैं खरीदा हुआ गुलाम हूँ; यह जनार्दन दूसरे किसी के हाथ नहीं बिका है।’
जिसने एक बार श्रीकृष्णनाम का स्वाद ले लिया उसे फिर अन्य सारे स्वाद रसहीन लगने लगते हैं। भवसागर से डूबते हुए प्राणी के लिए वह नौका है। मोक्ष चाहने वाले के लिए वह सच्चा मित्र है, मनुष्य को परमात्मा से मिलाने वाला सच्चा गुरु है, अंत:करण की मलिन वासनाओं के नाश के लिए दिव्य औषधि है। यह मनुष्य को ‘शुक’ से ‘शुकदेव’ बना देता है।
हैं ना सचमुच श्रीकृष्णनाम पारस से बढ़कर⭐️⭐️⭐️
Hari bol.Please let me know the meaning of gudri and karwa.
Apko dhanyawad kahne k liye apna shabd kosh rikt pate h isliye pranam sweekar kijiye hare krishna jai shri radhe
नमस्कार बोसजी! गुदड़ी का अर्थ फटे-पुराने कपड़ों को सीकर बना गया ओढ़ना है और करवा मिट्टी या लोहे का टोंटीदार पात्र कहलाता है जो पानी पीने के काम आता है।
Radhey Radhey….bahaut sunder katha….thakurji ke or santo ke darshan ho jaye yahi prayer h mere thakurji se..🙏🙏