श्रीमद्भगवद्गीता के १०वें अध्याय के २१वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण अपनी विभूतियों का वर्णन करते हुए कहते है कि—
‘नक्षत्राणामहं शशी’ अर्थात् ‘नक्षत्रों में मैं चंद्रमा हूँ ।’
सबसे पहले यह जानते हैं कि ‘विभूति’ किसे कहते हैं ?
जगत के कुछ पदार्थों या प्राणियों में विशेष देवत्व स्थित रहता है । भगवान ने अपने तेज, शक्ति, बुद्धि, बल, ऐश्वर्य आदि को किसी विशेष पुरुष या जड़ वस्तु में प्रतिष्ठित कर जगत के कल्याण के लिए संसार में प्रकट कर दिया है । अतः संसार में जो भी ऐश्वर्ययुक्त, कांतियुक्त और शक्तियुक्त वस्तु या प्राणी हैं, वह सब भगवान के तेज का अंश होने से उनकी विभूति हैं ।
इस प्रकार विभूति का अर्थ अतिमानव और दिव्य शक्तियों से है ।
वायुपुराण के अनुसार महर्षि कश्यप के द्वारा जब प्रजा की सृष्टि हो गई, तब प्रजापति ने विभिन्न जातीय प्रजाओं में से जो सबसे श्रेष्ठ और तेजस्वी थे, उनको चुन कर उन-उन जातियों की प्रजा का नियंत्रण करने के लिए उन्हें उनका राजा बना दिया ।
चंद्रमा को ग्रह-नक्षत्रों का राजा, दक्ष को प्रजापतियों का, शंकर को रुद्रों का, शूलपाणि को भूत-पिशाचों का, सागर को नदियों का, हिमवान को पर्वतों का, वैवस्वत मनु को मनुष्यों का राजा बनाया गया । इन्हीं सब अधिकारियों द्वारा सारे जगत का संचालन और पालन हो रहा है । राजा में भगवान की शक्ति अन्य मनुष्यों की अपेक्षा अधिक रहती है; इसीलिए भगवान ने राजा को अपना स्वरूप (विभूति) कहा है ।
चंद्रमा के किस देवत्व की वजह से भगवान ने उसे अपनी विभूति कहा है ?
अश्विनी, भरणी, कृत्तिका, पुष्य आदि जो सत्ताईस नक्षत्र हैं, उन सबके और समस्त तारामंडल के राजा होने से चंद्रमा को भगवान ने अपनी विभूति कहा है । दक्ष प्रजापति ने अश्विनी, भरणी आदि नाम वाली सत्ताईस कन्याएं चंद्रदेव को ब्याह दीं, जो सत्ताईस नक्षत्र के रूप में जानी जाती हैं । इन नक्षत्रों के साथ चंद्रमा परिक्रमा करते हुए सब प्राणियों का पोषण करते हैं ।
संसार में अग्नि सूर्य रूप में व्याप्त है और सोम (अमृत) चंद्रमा के रूप में । चंद्रमा अमृतमय भगवान हैं । इनका शरीर अमृतमय है । ये अपनी अमृतमयी किरणों से तीनों लोकों को सींचते हैं । शरद पूर्णिमा को चंद्रमा अपनी सोलह कलाओं से संपूर्ण होता है और पृथ्वी के सबसे ज्यादा निकट भी । चंद्रमा की किरणों से इस पूर्णिमा को अमृत बरसता है ।
कहते हैं शरद पूर्णिमा को जब वृन्दावन में भगवान कृष्ण महारास रचा रहे थे तो चंद्रमा आसमान से सब देख रहा था और वह इतना भाव-विभोर हुआ कि उसने अपनी शीतलता के साथ पृथ्वी पर अमृत की वर्षा आरंभ कर दी ।
शास्त्रों में चंद्रमा को ‘औषधीश’ यानी औषधियों का स्वामी माना गया है । चंद्रमा से जो सुधामय तेज पृथ्वी पर गिरता है, उसी से औषधियों की उत्पत्ति हुई ।
गीता के १५वे अध्याय के १३वे श्लोक में भगवान ने चंद्रमा को अपनी विभूति बताते हुए कहा है—
‘पुष्णामि चौषधी: सर्वा: सोमो भूत्वा रसात्मक: ।’
अर्थात् ‘मैं ही रसस्वरूप अर्थात् अमृतमय चंद्रमा होकर संपूर्ण औषधियों-वनस्पतियों को पुष्ट करता हूँ ।’
इस श्लोक में भगवान ने स्पष्ट किया है कि जिस प्रकार चंद्रमा में प्रकाशन शक्ति मेरे ही प्रकाश का अंश है, उसी प्रकार उसमें जो पोषण-शक्ति है, वह भी मेरी ही शक्ति का एक अंश है । अत: चंद्रमा के रूप में प्रकट होकर मैं सबका पोषण करता हूँ ।
सूर्य दिन के अंधकार को दूर करते हैं और चंद्रमा रात्रि के अंधकार को । चंद्रमा की यह प्रकाशन शक्ति भी श्रीकृष्ण के तेज का अंश है ।
चंद्रमा अन्नमय भगवान हैं । चंद्रमा अपने तत्त्वों से सभी देवता, पितर, मनुष्य, भूत, पशु, पक्षी, सरीसृप और वृक्ष आदि प्राणियों के प्राण का आप्यायन (वर्धन) करते हैं, पोषण करते हैं । अत: चंद्रमा को ‘सर्वमय’ कहा जाता है ।
चंद्रमा मनोमय (मन के देवता) हैं । वेद में चंद्र (सोम) को परमेश्वर के मन से उत्पन्न हुआ माना गया है । इसलिए चंद्र सभी जीवों के मनों के अधिष्ठातृ देवता हैं । चंद्रमा को वेद पुराणों में मन के समान माना गया है—‘चंद्रमा मनसो जात: ।’
साथ ही चंद्रमा ही विभिन्न पर्व, संधियों व मासों का विभाग करते हैं ।
चंद्रमा के इसी देवत्व के कारण भगवान ने उसे अपनी विभूति कहा है ।