भारतीय संस्कृति में श्रावनमास में झूला झूलने का रिवाज अनादिकाल से चला आ रहा है क्योंकि उस समय प्रकृति भी अपनी सुन्दरता की चरम सीमा पर होती है। इसी संदर्भ में श्रीराधा कृष्ण की झूलन लीला का एक मनोहर प्रसंग प्रस्तुत है–
झूलत सघन कुंज पिय प्यारी।
घन गरजत, मृदु दामिनी दमकत, रिमझिम बरसत बारी।भींजत अम्बर पीत, अलौकिक नील सुरंगी सारी।
मद भर मोर-मोरनी निरतत, कूजत कोकिल सारी।।गावत मधुरे सुर मल्हार मिलि सखिजन अरू पिय-प्यारी।
झौंटे देय झुलावत सखि ललितादिक बारी-बारी।। (पद रत्नाकर)
श्रावण का प्रिय मास है। आकाश में काली घटाएँ छायी हुयी हैं। बिजली कड़क रही है। बादल भी जोर-जोर से गर्जना कर रहे हैं। रिमझिम फुहारों की शीतलता शरीर को आनन्दित कर रही हैं। चम्पा, चमेली, मोगरा, मालती आदि पुष्पों की सुगन्ध हवा में फैली हुयी है। कोयल कुहू कुहू की मीठी तान छेड़ रही हैं। सरोवरों में हंस अठखेलियाँ कर रहे है। दादुर, मोर, पपीहे की आवाजों से सारा ब्रज क्षेत्र आनन्दित हो रहा है।
ऐसे सुखद वातावरण में ललिता सखी ने अपनी अन्य सखियों–विशाखा, चित्रा, इन्दुलेखा, सुदेवी, चम्पकलता, रंगदेवी और तुंगविद्या आदि को बुला लिया। आज के सुहावने मौसम को और भी अधिक मधुर बनाने के लिये ये सखियाँ अपने वाद्य-यन्त्र भी साथ लायी हैं। वन में जाकर जब सखियों ने देखा कि कृष्ण अकेले ही कदम्ब वृक्ष के नीचे वंशी वादन कर रहे हैं तो वे तुरन्त ही बृषभानु भवन जा पहुँची और श्रीराधाजी को वन में ले जाने के लिये कहने लगीं। सखियों ने श्रीराधाजी को कुसुंभी रंग की साड़ी पहनायी और नख से सिर तक उनका फूलों से श्रृंगार किया और चल पड़ी अपने प्रियतम स्याम सुंदर से मिलने। जैसे कोई नदी सागर में मिलने को आतुर होती है उसी प्रकार श्रीराधा अपने प्रियतम स्याम सुंदर के अंक में समा जाने को आतर हो रही थीं।
रिमझिम बरसती फुहारों के बीच इन सखियों ने यमुना तट के पास के कुँज में एक दिव्य झूले का निर्माण किया। सखियों के आमन्त्रण पर श्रीराधा कृष्ण उस झूले पर विराजमान हो गये। ढोल, मृदंग आदि की थाप पर सखियाँ श्रीराधा कृष्ण को झूला झुलाने लगीं।
इसी लीला का वर्णन भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार ने इस प्रकार किया है–
हिंडोरे झूलत स्यामा-स्याम।
नव नट-नागर, नवल नागरी, सुंदर सुषमा-धाम।।सावन मास घटा घन छाई, रिमझिम बरसत मेह।
दामिनी दमकत, चमकत गोरी बढ़त नित्य नव नेह।हँसत-हँसावत रस बरसावत सखी-सहचरी-बृंद।
उमग्यौ आनँद-सिंन्धु, मगन भए दोऊ आनँद-कंद।।
श्रीराधा माधव की इस माधुरी लीला से सारा वन क्षेत्र जीवन्त हो उठा। कोयल कूकने लगीं, मयूर नृत्य करने लगे, हिरन कुलाँचे मारने लगे। जिसने भी इस दिव्य आनन्द का दर्शन किया उसका जीवन धन्य हो गया।
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क्षमा करें अब आवश्यकता नहीं है एक महात्मा कि कृपा से सभी ग्रंथों की सूची मिल गई।
धन्यवाद