भगवान शेषनाग पृथ्वी को क्यों धारण करते हैं ?

हजार फणों वाले शेषनाग भगवान श्रीहरि के परम भक्त हैं । वे अपने एक हजार मुखों और दो हजार जिह्वाओं (सांप के मुख में दो जीभ होती हैं) से सदा भगवान श्रीहरि का नाम जप करते रहते हैं । भगवान शेष सेवा-भक्ति के आदर्श उदाहरण हैं । वे भगवान का पलंग, छत्र, पंखा बन कर श्रीहरि की सेवा करते हैं ।

प्रभु श्रीनाथजी की अत्यंत प्रिय स्तुति

परमात्मा प्रेम चाहते हैं । प्रेम में पागल बने बिना वे मिल नहीं सकते । जिन भक्तों का जीवन प्रभुमय हो, रोम-रोम में भगवान का प्रेम बहता हो, वे भक्त प्रेममय प्रभु की करुणामयी और कृपामयी गोद में बैठने और उनके सखा बनने के अधिकारी बनते हैं ।

भक्त-चरित्र का गुणगान करने वाला अनमोल ग्रंथ : ‘भक्तमाल’

भक्तमाल’ महाभागवत नाभादास जी महाराज की रचना है । यह कोई सामान्य ग्रंथ नहीं है बल्कि एक आशीर्वादात्मक ग्रंथ है जो एक सिद्ध और महान संत की कृपा और आशीर्वाद से प्रकट हुआ; इसलिए यह भक्ति साहित्य का अनूठा अनमोल रत्न है । इसमें भक्तों का गुणगान है, यशोगान है । इसके श्रवण-पठन से मनुष्य का शुष्क हृदय भी भक्ति की लहरों से सरस हो जाता है ।

भगवान श्रीकृष्ण की विश्वरूप-दर्शन लीला

भगवान श्रीकृष्ण ने अपना विश्वरूप-दर्शन कराकर अर्जुन को यह शिक्षा दी कि मैं ही सब कुछ हूँ, संसार में सब मेरा ही स्वरूप है । मेरे अतिरिक्त जो भी दिखाई देता है, वास्तव में वह भ्रम ही है । अनन्य भक्ति द्वारा ही मैं प्राप्य हूँ; इसलिए जो मेरे लिए कर्म करने वाला, मेरे परायण, मेरा भक्त, अनासक्त तथा सब प्राणियों में वैर रहित होता है; वह ही मुझे प्राप्त होता है ।

पुष्टिमार्गीय वैष्णवों के कर्तव्य

नित्य कृष्ण सेवा को छोड़कर पुष्टिमार्गीय वैष्णवों का न कोई और धर्म है और न ही कर्तव्य । अपनी देह के सुख को त्याग करके, ठाकुर जी को सुख मिले—इस भाव से भगवान की सेवा करनी चाहिए । यंत्र के समान या कर्मकाण्ड के रूप में या बोझ मान कर केवल खानापूर्ति के लिए भगवान की सेवा नहीं करनी चाहिए ।

विभिन्न वस्तुओं द्वारा श्रीकृष्ण पूजन का फल

इस घोर कलिकाल में श्रीकृष्ण की पूजा-सेवा मनुष्य का बेड़ा पार लगाने वाली है; लेकिन शर्त यह है कि इस पूजा में भाव होना चाहिए । क्योंकि पत्थर की ही सीढ़ी और पत्थर की ही देव-प्रतिमा होती है; परन्तु एक पर हम पैर रखते हैं और दूसरे की पूजा करते हैं । अत: भाव ही भगवान हैं अन्यथा सब बेकार है ।

श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन

प्रभु श्रीरामचंद्रजी की यह आरती सबके संकटों और पीड़ाओं को हर लेने वाली है । इसके गायन से मनुष्य के दु:ख और पाप जल जाते हैं । यह आरती भक्तों के मन में स्थित अज्ञान के अंधकार को मिटा कर ज्ञान का सुंदर प्रकाश फैला देती है ।

भगवान वेंकटेश्वर और देवी पद्मावती का कल्याणोत्सव

अंत:पुर में वृद्ध सुवासिनी स्त्रियों ने पद्मावती को रेशमी साड़ी पहनाकर हीरों के गहने से सज्जित किया । फिर कस्तूरी तिलक व काजल आदि लगा कर उनसे गौरी पूजा करवाई । सहेलियां हाथ पकड़ कर पद्मावतीजी को कल्याण मण्डप में लाईं और श्रीनिवास जी के सामने बिठा दिया । भगवान श्रीनिवास ने अपने कंठ में पड़ी हुई माला हाथ में लेकर पद्मावती जी के गले में पहना दी और पद्मावती जी ने बेला के फूलों की माला भगवान के कण्ठ में पहना दी ।

दुर्वासा ऋषि द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की माया का दर्शन

भगवान की लीला बड़ी विचित्र है । वे कब कौन-सा काम किस हेतु करेंगे, इसे कोई नहीं जानता । भगवान की प्रत्येक लीला ऐसे ही रहस्यों से भरी होती है । उनकी लीला और महिमा का कोई पार नहीं पा सकता । उनका मूल उद्देश्य अपने भक्तों को आनन्द देना और भवबन्धन से मुक्त करना है ।

नित्य-नियम के पालन से भी परमात्मा की प्राप्ति संभव

भगवान ने जोगा को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया । भगवान का स्पर्श होते ही जोगा की समस्त पीड़ा, सारे घाव हवा हो गए । नित्य-नियम का इतना कठोर पालन करने वाले जोगा को भगवान श्यामसुन्दर श्रीकृष्ण ने सदा के लिए अपना बना लिया और वे उनमें एकाकार हो गए ।