भगवान श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणीजी का गर्व-हरण

भगवान का स्वभाव है कि वे भक्त में अभिमान नहीं रहने देते; क्योंकि अभिमान जन्म-मरण रूप संसार का मूल है और अनेक प्रकार के क्लेशों और शोक को देने वाला है । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं । उस समय थोड़ा कष्ट महसूस होता है; लेकिन बाद में उसमें भगवान की करुणा ही दिखाई देती है ।

निरोगी कौन ?

भगवान श्रीकृष्ण ने गीता में कहा है कि यदि मनुष्य युक्त आहार, युक्त विहार और युक्त चेष्टा करे; अपनी प्रकृति के अनुकूल, समय पर, सीमित मात्रा में भोजन करे तो फिर न किसी डॉक्टर की जरुरत रहेगी, न ही शरीर में कोई रोग आएगा और न ही अकाल मौत होगी; साथ ही मन में सदा शांति बनी रहेगी । यही दीर्घ और निरोगी जीवन का रहस्य है ।

वेदों में जब भाट बन कर की राजा राम की स्तुति

भगवान की कृपा प्राप्त करने के लिए भगवान की आराधना, स्तुति करना आवश्यक है । भगवत्कृपा केवल मनुष्यों के लिए ही नहीं वरन्, देवता, दानव, वेद, ऋषि-मुनि—त्रिलोकी के समस्त जीवों की चाह रही है; क्योंकि यही सुख-शान्ति व सफलता का साधन है ।

जो कुछ होता है भगवान की इच्छा से होता है

यह विराट् विश्व परमात्मा की लीला का रंगमंच है । विश्व रंगमंच पर हम सब कठपुतली की तरह अपना पात्र अदा कर रहे हैं । भगवान की इस लीला में कुछ भी अनहोनी बात नहीं होती । जो कुछ होता है, वही होता है जो होना है और वह सब भगवान की शक्ति ही करती है । और जो होता है मनुष्य के लिए वही मंगलकारी है ।

भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य विभूतियां

गीता के दसवें अध्याय में भगवान की विभूतियों का बड़ा ही रोचक वर्णन किया गया है; किन्तु श्रीकृष्ण स्वयं अर्जुन से कहते हैं--’मेरी विभूतियों का अन्त नहीं है, यह तो मैंने तेरे लिए संक्षेप में कहा है’ (गीता १०।१९)।

गौ महिमा

हरे हरे तिनकों पर अमृत-घट छलकाती गौ माता,जब-जब कृष्ण बजाते मुरली लाड़ लड़ाती गौ माता।तुम्ही धर्म हो, तुम्ही सत्य हो, पृथ्वी-सा सब...

भगवान श्रीकृष्ण की गो-सेवा

गोकुलेश गोविन्द प्रभु, त्रिभुवन के प्रतिपाल।गो-गोवर्धन-हेतु हरि, आपु बने गोपाल।।द्वापर में दुइ काज-हित, लियौ प्रभुहि अवतार।इक गो-सेवा, दूसरौ भूतल कौं उद्धार।। (श्रीराधाकृष्णजी...

भगवान श्रीकृष्ण द्वारा उद्धवजी को ज्ञानोपदेश

उद्धवजी ने भगवान से कहा—‘आपने थोड़े समय में मुझे अच्छा ज्ञान दिया है । मैं आपकी शरण में हूँ, मैं भी आपके साथ आपके धाम चलूंगा ।’ भगवान ने कहा—‘उद्धव ! तेरे हृदय में मैं चैतन्य रूप से स्थित हूँ । तू मेरा जहां ध्यान करेगा, वहीं मैं प्रकट हो जाऊंगा । तू यह भावना रखना कि श्रीकृष्ण मेरे साथ ही हैं ।’ भगवान अपनी चरण-पादुका उद्धवजी को देकर स्वधाम पधार गए ।

भगवान विष्णु के षोडशोपचार पूजन की विधि और मंत्र

हिन्दू धर्म में देवताओं का पूजन-कार्य 16 उपचार से किया जाता है । यद्यपि देवताओं को न तो पदार्थों की आवश्यकता होती है और न ही भूख । जब कोई सम्माननीय व्यक्ति हमारे घर पर आता है तो हम जो भी हमारे पास सर्वश्रेष्ठ वस्तुएं उपलब्ध होती हैं, उसके लिए प्रस्तुत करते हैं । फिर भगवान तो जगत्पिता, जगत के नियन्ता और जगत के पालक हैं; उनसे श्रेष्ठ, सम्माननीय और वन्दनीय और कौन हो सकता है ? इसलिए भगवान का पूजन षोडशोपचार विधि से किया जाता है ।

देवी तुलसी और शालग्राम : प्रादुर्भाव कथा

तुलसी के शरीर से गण्डकी नदी उत्पन्न हुई और भगवान श्रीहरि उसी के तट पर मनुष्यों के लिए पुण्यप्रद शालग्राम बन गए । तुलसी अपना वह शरीर त्याग कर और दिव्य रूप धारण करके श्रीहरि के वक्ष:स्थल पर लक्ष्मी की भांति सुशोभित होने लगीं ।