बालकृष्ण के अन्नप्राशन ( बच्चे को जन्म के बाद प्रथम बार अन्न खिलाना) महोत्सव का वर्णन ब्रह्मवैवर्तपुराण के कृष्णजन्म खण्ड में किया गया है। श्रीकृष्ण सारे संसार के ऐश्वर्य के स्वामी हैं तो उनका अन्नप्राशन महोत्सव भी दिव्य और अलौकिक है।
माघमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथी की प्रभात वेला है। आज बालकृष्ण पाँच महीने और इक्कीस दिन के हो गये हैं। माँ यशोदा तो आज सारी रात जागी हुयी हैं। वह बालकृष्ण के अन्नप्राशन महोत्सव की सुखमय कल्पना में सारी रात विभोर थीं। सूर्योदय में अभी बिलम्व है, किन्तु गोपसुन्दरियों के दल-के-दल नँद-भवन में एकत्रित होने लगे हैं। छोटे शिशुओं को गोद में लेकर, थोड़े बड़े पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगलगीत गाते हुए गोपसुन्दरियाँ अपनी किंकणी के नूपुरों से सारे वातावरण को झंकारित करती हुयी नँद-भवन की ओर चली जा रही हैं। मन में उमंग लिये कि हम ही सबसे पहले बालकृष्ण के दर्शन कर लें। गोपमण्डली भी विविध वेशभूषा व अलंकारों से सज्जित होकर नँद-भवन की ओर चल पड़े। उसी समय माँ यशोदा अपने पुत्र को लेकर आँगन में आती हैं गोपियों की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है।
आजु कान्ह कीजै अनप्रासन।
मनि-कंचन के थार भराए, भाँति-भाँति के बासन।।
नँदबाबा का उत्साह तो देखने योग्य है। उन्होंने नँद-भवन में एक नयी सृष्टि रच दी है। उन्होंने नँद-भवन के उद्यान में छोटी-छोटी भोज्य-रसों की नदियों का निर्माण करवाया है। पहली नदी दधि की, दूसरी गोदुग्ध की, तीसरी नदी घृत की और चौथी नदी गुड़ की है। पांचवी नदी में तैल व छठी नदी में मधु की धारा बह रही है। सातवीं नदी में नवनीत (मक्खन) खण्ड बर्फ की तरह जमे हुये हैं। शर्करा की व मीठे जल की भी नदियां बनवायी हैं। इसके अतिरिक्त चावलों व चिरवों के सैंकड़ों पर्वत, सात लवण के व सात लड्डू के पर्वत, मोदक के पर्वत व सोलह फलों के पर्वत रचे गये हैं। गेहूँ के आटे, जौ के आटे, पूरियों और कौड़ियों के भी पर्वत बनाये गये हैं। केसर, कस्तूरी, आदि से सुगन्धित ताम्बूलों का मन्दिर बनाया है।
सुवर्ण, मोतियों, प्रवालपुज्ज, सुन्दर वस्त्र, व आभूषणों के ढेर रखे हुये हैं–
दधिकुल्यां दुग्धकुल्यां घृतकुल्यां प्रपूरिताम्।।
गुडकुल्यां तैलकुल्यां मधुकुल्यां च विस्तृताम्।
नवनीतकुल्यां पूर्णां च तक्रकुल्यां यदृच्छया।।शर्करोदकुल्यां च परिपूर्णां च लीलया।
तण्डुलानां च शालीनामुच्चैश्च शतपर्वतान्।।पृथुकानां शैलशतं लवणानां च सप्त च।
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नानाविधानि चारूणि वासांसि भूषणानि च।
पुत्राप्राशने नन्द: कारयामास कौतुकात्।।
जिस आँगन में अन्नप्राशन होगा वहाँ चारों ओर चन्दन के जल से सुवासित करके केले के स्तम्भ लगाये गये हैं। जगह-जगह फल, फूल, पत्र आदि से सुसज्जित करके मंगल कलश सजाये गये हैं। ब्राह्मणों के लिए सुन्दर आसन और उनकी पूजा के लिए मधुपर्क के पात्र रखे हैं। दान देने के लिए सुवर्ण रखा है।
अब अन्नप्राशन का शुभ योग आ गया है। शास्त्रविधि के अनुसार नँदबाबा, माँ यशोदा व बालकृष्ण को स्नान कराया जाता है। ब्राह्मण आचमन, स्वस्तिवाचन, दीप प्रज्वालन, अर्घ्यस्थापन आदि कराते हैं। नँदबाबा नाँदीश्राद्ध करते हैं। शास्त्रीय कर्मकाण्ड पूरा होते ही एकसाथ नाना वाद्ययंत्र–दुन्दुभि, ढक्का, मृदंग, मुरन, वंशी आदि बजने लगते हैं। गोपियां मधुर कंठ से गाने लगती हैं तो आकाश में विद्याधरियाँ नृत्य करने लगती हैं। इसी आनन्द से प्रमुदित नँदबाबा अपने पुत्र के अधर से अन्न का स्पर्श कराते हैं।
कनक-थार भरि खीर धरि लै, तापर घृत-मधु नाइ।
नँद लै-लै हरि मुख जुठरावत, नारि उठीं सब गाइ।।षटरस के परकार जहाँ लगि, लै-लै अधर छुवावत।
बिस्वंभर जगदीस जगत-गुरु, परसत मुख करूवावत।।
जिस समय नँदबाबा तीखे, कटु, खट्टे व नमकीन रसों को बालकृष्ण के अधरों से स्पर्श कराते हैं, वे अपने होंठ सिकुड़ने की लीला करते हैं। आश्चर्य है जिन कृष्ण को प्रलय रूपी महाभोज को करने में जरा भी संकोच नहीं होता वही आज षटरस के स्पर्श से अपना मुँह सिकोड़ लेते हैं। नँदबाबा को लगा कि इतने कोमल बालक के अधरों पर इन रसों को रखना क्रूरता है अत: वे तुरन्त ही जल से बालकृष्ण के अधरों को स्वच्छ कर देते हैं।
ब्राह्मण भोजन के बाद उनको इतनी दक्षिणा दी जाती है कि वे उसको ले नहीं जा पा रहे। बालकृष्ण के जन्म पर ब्रजवासियों ने दूध दही की नदियां बहायीं थीं। आज नँदबाबा ने गोप-गोपियों के लिए दूध, दही की नदियां बहा दीं हैं।
तभी गोप बालकों ने सूचना दी कि उत्सव के समय गोकुल के आकाश से स्वर्ण वर्षा हुयी। कुबेर भी नँदनँदन का दर्शन करने आये और तीन प्रहर तक गोकुल पर स्वर्ण वर्षा करके अपने को धन्य किया। गोविन्द की वस्तु उन्हीं को लौटा दी। परन्तु ब्रजवासियों के लिए तो कुबेर का वैभव नगण्य था। वे तो श्रीकृष्ण को पाकर ही अपने मन-प्राण उन पर न्यौछावर किये दे रहे थे–
धन्य नँद, धनि धन्य गोपी, धन्य ब्रज कौ बास।
धन्य धरनी-करन-पावन-जन्म सूरजदास।।
हम भी चाहते है की आज के भाग दौड़ की ज़िन्दगी में किसी के पास आध्यत्मिक ज्ञान लेने का समय नहीं है।आज कल नाही कोई आपके जैसा आध्यत्मिक ज्ञान देंता है।मै आपके ज्ञान और लगन की प्रसंसा करते है।हम चाहते है की इसी तरह अपने ज्ञान से कृष्णा की भक्ति सभी के हृदय में भर दे।कृष्णा भक्त आपके अभारी रहेंगे।
कोटि कोटि धन्यवाद ! आपके इतने मधुर शब्दों से मुझे और प्रेरणा मिली है, और में आशा करती हूँ की बविश्य में भी आपको मेरा ब्लॉग पसंद आये.