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बालकृष्ण का अन्नप्राशन महोत्सव

माघमास के शुक्लपक्ष की चतुर्दशी तिथी की प्रभात वेला है। आज बालकृष्ण पाँच महीने और इक्कीस दिन के हो गये हैं। माँ यशोदा तो आज सारी रात जागी हुयी हैं। वह बालकृष्ण के अन्नप्राशन महोत्सव की सुखमय कल्पना में सारी रात विभोर थीं। सूर्योदय में अभी बिलम्व है, किन्तु गोपसुन्दरियों के दल-के-दल नँद-भवन में एकत्रित होने लगे हैं। छोटे शिशुओं को गोद में लेकर, थोड़े बड़े पुत्रों की अँगुली पकड़े, मंगलगीत गाते हुए गोपसुन्दरियाँ अपनी किंकणी के नूपुरों से सारे वातावरण को झंकारित करती हुयी नँद-भवन की ओर चली जा रही हैं। मन में उमंग लिये कि हम ही सबसे पहले बालकृष्ण के दर्शन कर लें। गोपमण्डली भी विविध वेशभूषा व अलंकारों से सज्जित होकर नँद-भवन की ओर चल पड़े। उसी समय माँ यशोदा अपने पुत्र को लेकर आँगन में आती हैं गोपियों की अपार भीड़ उन्हें चारों ओर से घेर लेती है।