bhagwan Jagannath snan

पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी) में काष्ठ का शरीर धारण कर निवास करने वाले भगवान जगन्नाथ जी कलिकाल के साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं; लेकिन वे सुबह से लेकर रात तक और ऋतुओं के अनुसार एक आदर्श गृहस्थ की तरह अनेक लीलाएं करते हैं । वे खाते-पीते हैं, गरमी में जलविहार करते हैं, स्नान करते हैं, उन्हें ज्वर भी आता है, औषधियों के साथ काढ़ा पीते हैं, अच्छे होने पर मौसी के घर जाने के लिए रथयात्रा निकालते हैं । रथयात्रा में लक्ष्मी जी को साथ न ले जाने के कारण जब वे मान करती हैं, तब आदर्श पति की तरह भगवान जगन्नाथ जी उन्हें मनाते हैं । इस तरह वे परब्रह्म होने पर भी जन साधारण के बीच केवल ‘उनके अपने’ बन कर पुरी में विराजते हैं । 

पुरी के श्रीजगन्नाथ मंदिर में बारह महीनों में बारह या तेरह मुख्य यात्राएं मनाई जाती हैं और इन विशेष उत्सवों पर भगवान के विग्रहों के लिए विशेष प्रकार के वेश बनाये जाते हैं । दु:खी प्राणियों के उद्धार के लिए और पापी मनुष्यों का भगवान पर विश्वास हो जाए; इसलिए प्रति वर्ष ये यात्रा उत्सव मनाए जाते हैं ।

भगवान जगन्नाथ जी का स्नान यात्रा महोत्सव

ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा के दिन भगवान जगन्नाथ जी का स्नान यात्रा महोत्सव मनाया जाता है । आनंद बाजार, जहां श्री जगन्नाथ जी को लगाये गए सभी प्रकार के भोग (महाप्रसाद) की बिक्री होती है, के भीतर उत्तर-पूर्व कोने पर बनी स्नान वेदी पर चारों विग्रहों—भगवान जगन्नाथ, सुभद्रा, बलभद्र और सुदर्शन चक्र को पहण्डी करके लाया जाता है । 

स्नान-वेदी को वस्त्र, पताका और फूलों से सजा कर धूप से सुगंधित किया जाता है । मंच पर एक ओर भगवान जगन्नाथ और दूसरी ओर बलभद्र जी तथा बीच में सुभद्रा जी विराजमान की जाती हैं । फिर स्वर्ण कूप के 108 घड़े जल से प्रत्येक विग्रह को स्नान कराया जाता है और उनकी इस प्रकार स्तुति की जाती है—

‘देवदेवेश्वर ! पुराणपुरुषोत्तम ! आपको नमस्कार है । जगत्पालक जगन्नाथ ! आप सृष्टि, स्थिति और संहार करने वाले हैं । जो त्रिभुवन को धारण करने वाले, ब्राह्मणभक्त, मोक्ष के कारणभूत और समस्त मनोवांछित फलों के दाता हैं, उन भगवान को हम नमस्कार करते है । आपका विग्रह तीसी के फूल के समान श्याम और सुंदर है । बलराम जी के अनुज ! आपकी जय हो । नीलाम्बरधारी बलराम आपकी जय हो ।’

भगवान जगन्नाथ को गणेश वेश (हाथी वेश) क्यों धारण कराया जाता है ?

संध्याकाल में विग्रहों का गणेश वेश होता है; जिसे ‘हाथी वेश’ भी कहते हैं । ऐसा माना जाता है कि कर्नाटक के गणपति भट्ट नामक गणेश-भक्त को भगवान ने गणेश रूप में दर्शन दिया था; इसलिए भगवान का गणेश-वेश में श्रृंगार होता है । इसमें सुभद्रा जी हल्दी के रंग का और दोनों भाई—जगन्नाथ जी और बलभद्र जीकत्थई रंग का वेश धारण करते हैं । इसके बाद विग्रहों को भोग लगाया जाता है ।

ऐसा माना जाता है कि ज्येष्ठ शुक्ल स्नान-पूर्णिमा की रात्रि से लेकर 15 दिनों तक भगवान को ज्वर हो जाता है । इस बीच उनके दर्शन नहीं होते हैं । ऐसा कहा जाता है कि अधिक स्नान करने के कारण भगवान बीमार हो गए हैं और उन्हें दवाइयां (काढ़ा) दिया जाता है ।

इन 15 दिनों तक भगवान रत्नसिंहासन पर ही विराजमान रहते हैं । पुरुषोत्तम क्षेत्र में रत्नसिंहासन को सबसे अधिक पवित्र स्थान माना गया है । इसे ‘अन्तर्वेदी’ भी कहा जाता है । यह अलौकिक है; क्योंकि संसारी मनुष्यों के द्वारा इस सिंहासन का निर्माण होना कल्पना से परे है । इस सिंहासन पर क्रमश: बायें से दाये की ओर बलभद्र जी, सुभद्रा जी और नीलाद्रिबिहारी श्री जगन्नाथ जी आसीन हैं । साथ ही श्रीसुदर्शन चक्र, माधव, श्रीदेवी व भूदेवी जी भी इस पर विराजित हैं; इसलिए इसे रत्नसिंहासन को ‘सप्तावरण पीठ’ भी कहते हैं ।

स्नान यात्रा दर्शन की महिमा

स्कन्द पुराण के अनुसार जो मनुष्य वहां खड़े होकर भगवान के ज्येष्ठ स्नान का एकाग्रचित्त होकर दर्शन करता है, वह पुन: इस संसार-समुद्र में नहीं गिरता । उनकी जानबूझ कर या अनजाने में की हुई संचित पापराशि तत्काल नष्ट हो जाती है । 

जो मनुष्य भगवान के स्नान के समय ‘जय रामभद्र ! जय सुभद्रे ! जय कृष्ण ! जय जगन्नाथ !’ इस प्रकार उच्चारण करता है, वह मोक्ष को प्राप्त होता है ।

ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा को यदि वृष राशि के सूर्य और ज्येष्ठा नक्षत्र का योग हो तो उसे ‘महाज्येष्ठी पूर्णिमा’ कहते हैं । उस समय पुरुषोत्तम क्षेत्र जगन्नाथ पुरी में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा जी का दर्शन करने से मनुष्य बारह यात्राओं का फल पाता है साथ ही प्रयाग, कुरुक्षेत्र, नैमिषारण्य, पुष्कर, गया, हरिद्वार, गंगासागर, शूकरतीर्थ, मथुरा, शालग्रामतीर्थ, चित्रकूट प्रभास, कनखल आदि पृथ्वी पर जितने भी तीर्थ हैं, उनका सबका पुण्य मिला कर भी इस स्नान-यात्रा के दर्शन की बराबरी नहीं कर सकता है । 

सूर्यग्रहण के समय जो स्नान व दान का फल होता है, इस दिन भगवान जगन्नाथ का दर्शन करने से मनुष्य उसी फल को प्राप्त कर लेता है ।

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