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आदि शंकराचार्य जी द्वारा भगवान जगन्नाथ की रत्नवेदी पर पुनर्स्थापना

एक बार जगद्गुरु शंकराचार्य जी अपने आश्रम में अखण्ड आनंद-समाधि में लीन थे, सहसा उनका शरीर अपूर्व सिहरन से व मस्तिष्क नीले बादलों की-सी दिव्य प्रभा से भर गया । उनके नेत्रों में एक अलौकिक गोलाकार युगलनेत्र वाली छवि प्रकट हुई जिसे देख कर उनके नेत्रों से आनंदाश्रु बहने लगे ।

भगवान जगन्नाथ जी का स्नान यात्रा महोत्सव

पुरुषोत्तम क्षेत्र (पुरी) में काष्ठ का शरीर धारण कर निवास करने वाले भगवान जगन्नाथ जी कलिकाल के साक्षात् परब्रह्म परमात्मा हैं; लेकिन वे सुबह से लेकर रात तक और ऋतुओं के अनुसार एक आदर्श गृहस्थ की तरह अनेक लीलाएं करते हैं । वे खाते-पीते हैं, गरमी में जलविहार करते हैं, स्नान करते हैं, उन्हें ज्वर भी आता है, औषधियों के साथ काढ़ा पीते हैं ।