राधा मेरी स्वामिनी मैं राधेजू को दास।
जनम जनम मोहि दीजियो युगलचरण में वास।।
मैं अपना 50वां ब्लॉग ‘श्रीकृष्णप्राणेश्वरी श्रीराधा’ रासेश्वर एवं रासेश्वरी श्रीराधाकृष्ण के युगल चरणकमलों में निवेदित करती हूँ। श्रीराधाकृष्ण के चरणों मैं मेरा शुरु से लगाव रहा है। इसीलिए मैंने अपनी वेबसाइट का नाम ‘श्रीकृष्ण की आराधिका–श्रीराधा’ से प्रेरित होकर ‘आराधिका’ (Aaradhika.com) रखा। श्रीराधा-कृष्ण को ही मैंने अपना सर्वस्व मानकर उनके बारे में कुछ लिखने का प्रयास किया है। मेरे जैसे साधारण इंसान के लिए श्रीराधा के लिए कुछ लिखना उन्हीं की अन्त:प्रेरणा है।
श्रीराधाकृष्ण की उपासना मधुर भाव की उपासना है, उसमें सांसारिक भोगों के दलदल या क्षुद्र काम की लेशमात्र भी जगह नहीं है। यह तो विशुद्ध प्रेमभाव की उपासना है जो साधक के नैतिक स्तर को उन्नत करके उसे विशुद्ध प्रेम-राज्य में प्रवेश दिला देती है। यदि ऐसा न होता तो परम विरागी श्रीशुकदेवजी सात दिन में मृत्यु को प्राप्त होने वाले राजा परीक्षित को भागवत के दशम स्कन्ध में रासलीला के रहस्यों का वर्णन नहीं करते। श्रीचैतन्य महाप्रभु गोपियों और राधा के भावों का स्मरण कर आनन्दराज्य (भावसमाधि) में पहुंच जाते हैं। मनुष्य की अपनी-अपनी पृथक्-पृथक् आंखें व विचारधाराएं हैं। उसी के अनुसार मनुष्य किसी भी महान व क्षुद्र वस्तु को देख पाता है। जहां प्रेमी भक्तों ने श्रीराधामाधव में सच्चिदानन्दमय प्रेम देखा वहीं भोगवादियों ने उनमें केवल भोग के ही दर्शन किए।
जिन्ह के रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी।।
श्रीराधा न कभी अबूझ पहेली थीं न हैं। वे पूर्ण शक्तिमान श्रीकृष्ण की शक्ति हैं और उन दोनों में कोई भेद नहीं है।
श्रीराधाजी से प्रार्थना
स्वामिनी हे बृषभानुदुलारी!
कृष्णप्रिया कृष्णगतप्राणा कृष्णा कीर्तिकुमारि।।नित्य निकुंजेश्वरि रासेश्वरि रसमयि रस-आधार।
परम रसिक रसराजकर्षिणी उज्जवल-रस की धार।।हरिप्रिया आह्लादिनि हरि-लीला-जीवन की मूल।
मोहि बनाय राखु निसिदिन निज पावन पद की धूल।। (श्रीहनुमानप्रसादजी पोद्दार)
अपने सही कहा ।आप के दिल मे सही मे राधा कृष्ण बसते है।आपकी भाषा शैली मे भी कृष्ण के प्रति प्रेम झलकता हैल