Ganesh, Ganeshji, Shree Ganeshai Namah

१. एक बुढ़िया नदी पर नहाने जा रही थी। रास्ते में उसे एक जगह गणेशजी उदास बैठे दिखे। उनके एक हाथ में दूध का गिलास और दूसरे हाथ की मुठ्ठी में चावल थे। बुढ़िया ने गणेशजी से दु:खी होने का कारण पूछा। गणेशजी ने कहा मुझे बहुत भूख लगी है पर मेरी कोई खीर नही बना रहा। बुढ़िया बोली लाओ गणेशजी मुझे दूध और चावल दे दो मैं आपकी खीर बना दूँगी। गणेशजी प्रसन्न होकर नदी पर नहाने चले गये। बुढ़िया ने अपनी बहू से खीर बनाने को कहा और वह भी नहाने चली गयी। बहू खीर बनाने लगी तो खीर बढ़ती जा रही थी। बहू का मन खीर खाने के लिये मचलने लगा। उसने मानसिक रूप से गणेशजी को याद करके खीर अर्पण कर दी। बुढ़िया गणेशजी को बुलाने गयी। गणेशजी वहाँ डकार ले रहे थे। बुढ़िया ने गणेशजी से घर चलकर खीर खाने को कहा तो गणेशजी ने कहा कि तुम्हारी बहू ने तो मुझे बहुत ज्यादा खीर खिला दी। बुढ़िया ने गणेशजी से कहा कि खीर तो बढ़ती ही जा रही है, क्या करूँ। गणेशजी ने कहा कि खूब खाओ, बची आस-पड़ोस में बाँट दो और गंगा जमुना में बहा देना। बर्तन उल्टे करके रख देना। बुढ़िया ने वैसा ही किया। सुबह उठकर जब बुढ़िया नहाने गयी तो देखा गंगा जमुना दूध की हो गयी थी। घर के बर्तन सीधे किए तो उनमें हीरे मोती जगमग कर रहे थे।
इस कहानी का सारांश यही है कि जिस पर गणेशजी प्रसन्न होते हैं उसे ऋद्धि सिद्धि संग नवनिधि का वरदान दे देते हैं।

२. एक बहुत गरीब बुढ़िया थी। गणेशजी की बहुत भक्ति करती थी।  रोजाना मिट्टी के गणेशजी बनाती। जैसे ही उन्हें नहलाती वह बह जाते। बुढ़िया बहुत दु:खी हो जाती। नगर में नगरसेठ की हवेली बन रही थी। बुढ़िया वहाँ गयी और राज मिस्त्रियों से एक पत्थर के गणेशजी बनाने को कहा। मिस्त्रियों ने कहा, बुढ़िया जितनी देर में हम तुम्हारे लिए गणेशजी बनायेंगे उतनी देर में तो हम एक दीवार बना लेंगे। और उन्होंने बुढ़िया को डाँटकर भगा दिया। बुढ़िया रोती हुयी चली गयी। राज मिस्त्री दीवार बनाने लगे परन्तु दीवार टेढ़ी ही बन रही थी। मिस्त्रियों ने बहुत कोशिश की पर दीवार सीधी नहीं हुयी। शाम को सेठजी निरीक्षण करने आये तो टेढ़ी दीवार देखकर बहुत गुस्सा हुए। मिस्त्रियों ने  उन्हें सारी बात बताई। सेठजी ने तुरन्त बुढ़िया को लाने के लिए नौकर भेजे। नौकर बुढ़िया को ले आये तब सेठजी ने बुढ़िया से पूछा कि उसने क्या जादू-टोना कर दिया है। बुढ़िया ने सारी सच्ची बात बता दी। सेठजी ने बुढ़िया को पत्थर की गणेशजी की मूर्ति बनवाकर दी। बुढ़िया खुश होकर सेठ को आशीष देती हुयी चली गयी। हवेली की दीवार भी सीधी हो गयी।

३. एक बार विष्णु भगवान और लक्ष्मीजी का विवाह कराने के लिए सभी देवताओं ने सभा बुलायी। सभी देवताओं को निमन्त्रित किया किन्तु गणेशजी को निमन्त्रण नही दिया क्योंकि गणेशजी सवा मन अन्न, सवा मन मूँग, सवा मन चावल और खूब सारे घी के लड्डू खाते हैं। उनका मोटा पेट, लम्बी सूँड, सूप जैसे कान, छोटी आँखें और मूषक की सवारी जैसा रूप देखकर वधूपक्ष की स्त्रियाँ हँसेंगी इसीलिए सभी देवता उन्हें रखवाली के लिए छोड़कर चले गये। तभी नारदजी गणेशजी के पास आए और कहा कि देवताओं ने आपका बड़ा अपमान किया है। आपके बारात में जाने से उनकी बारात की शोभा खराब हो जाती इसीलिए वे आपको यहां रखवाली के लिए छोड़ गये हैं। यह सुनकर गणेशजी ने चूहों को आज्ञा दी कि तुम सब जाओ और जमीन को पोली कर दो ताकि देवताओं की बारात आगे न बढ़ सके। चूहों ने सब जगह पोली कर दी। भगवान विष्णु के रथ का पहिया जमीन में धँस गया। देवताओं के वाहन भी जमीन में धँस गये। सबने बहुत कोशिश की पर कोई भी अपने  वाहन जमीन से निकाल न सका। तब नारदजी बोले आप लोग गणेशजी को साथ नहीं लाये और उनके बगैर किसी कार्य में सिद्धि नही मिलती। देवता गणेशजी को बुलाने गये। बहुत विनती करने पर गणेशजी आने को तैयार हुए। पहिले गणेशजी और ऋद्धि सिद्धि की अगुआई की फिर विष्णु भगवान और लक्ष्मीजी चले। फिर भगवान विष्णु और लक्ष्मीजी का विवाह सानन्द सम्पन्न हुआ क्योंकि विघ्नहर्ता स्वयं उनके साथ थे।
इस कहानी से यही निष्कर्ष निकलता है कि गणेशजी केवल विघ्नहर्ता ही नहीं हैं बल्कि रूष्ट होने पर विघ्नकर्ता भी हो जाते हैं। हिन्दुओं के तो वे प्राणाधार हैं। पत्र या बहीखाता या ग्रन्थ लिखते समय ‘श्रीगणेशाय नम:’ लिखा जाता है। शादी विवाह करने, मकान बनवाने, नयी दूकान खोलने में सबसे पहले उन्हीं की पूजा होती है। भारत के प्राचीन राजमहल, किले, मन्दिरों, हवेलियों और घरों के मुख्यद्वार पर उन्हीं की मूर्ति अवश्य विराजमान मिलेगी।


गणेशजी की आराधना का एक प्रमुख श्लोक

वक्रतुण्ड महाकाय कोटिसूर्य समप्रभ।
निर्विघ्नं कुरू मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।

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