kal sarp yog

देवों के प्रिय हैं सर्प

मानव सभ्यता के प्रारम्भ से ही नागों/सर्पों को कालरूप और मारक मानकर जनमानस में उनके प्रति विशेष भय की भावना रही है । देवता तो भक्त और परोपकारियों को ही आश्रय देते हैं । यदि सर्प इतने पापी होते तो देवों के देव महादेव उन्हें कभी नहीं अपनाते और नागेन्द्रहाराय नहीं कहलाते ।  देवाधिदेव महादेव के प्रिय पात्रों में सर्प है जो उनके शरीर पर अठखेलियां करता हुआ हाथों और गले का हार बना रहता हैं ।

भगवान विष्णु क्षीरसागर में सर्पराज अनन्त की शय्या पर शयन (भुजगशयनं) करते हैं । भगवान गणेश सर्प का यज्ञोपवीत धारण (भुजंगमोपवीतिनं) करते हैं । भगवान सूर्य के रथ में बारहों महीने बारह नाग बदल-बदलकर उनके रथ का वहन करते हैं । रामावतार में शेषनागजी ने लक्ष्मणजी के रूप में मानवशरीर धारणकर रामजी की सेवा की । कृष्णावतार में वसुदेवजी जब बालकृष्ण को यमुना पार कर मथुरा से गोकुल ले जा रहे थे तो उस समय अंधेरी रात में बारिश से बचाने के लिए शेषनाग ने रक्षक के रूप में फन फैलाकर श्रीकृष्ण की रक्षा की । भगवान शिव की शिष्या मां मनसादेवी नागेश्वरी तथा नागभगिनी और विषहरी के नाम से जानी जाती हैं । इस प्रकार सर्प सदा से देवों को प्रिय रहे हैं ।

कालसर्पयोग से भयभीत होने की आवश्यकता नहीं है

सर्पों को काल मानना उचित नहीं है । जैसे एक सिक्के के दो पहलू होते हैं वैसे ही कालसर्पयोग के अच्छे-बुरे दोनों ही पहलू होते हैं । कभी-कभी तो यह योग इतने अधिक अनुकूल होते हैं कि व्यक्ति को विश्व में न केवल प्रसिद्धि बल्कि सम्पत्ति और वैभव भी दिला देते हैं । विश्व के अनेक सफलतम व्यक्तियों की कुण्डली के कालसर्पयोग ने ही उन्हें सफलता के शिखर पर पहुंचाया । जन्मकुण्डली में यदि अन्य शुभ योग जैसे बुधादित्ययोग या पंचमहापुरुषयोग है तो कालसर्पयोग का प्रभाव न्यूनतम हो जाता है । कालसर्पयोग एक अनुबन्धित ऋण है जो हमें पूर्वजों से मिलता है, इसे ही पितृदोष कहा जाता है ।

कुण्डली में कब बनता है कालसर्पयोग

ज्योतिषशास्त्र में सर्प को राहु का मुख और केतु को पूंछ माना जाता है । राहु-केतु—इन छाया ग्रहों को अन्य सातों ग्रहों—सूर्य, चन्द्र, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र और शनि के समान ही ग्रहमण्डल में स्थान प्राप्त है ।

कुण्डली में राहु और केतु सदैव आमने-सामने 180 डिग्री पर रहते हैं । यदि सातों ग्रह राहु-केतु के एक-तरफ सिमट जाएं और दूसरी ओर कोई ग्रह न बचे, ऐसी स्थिति को कालसर्पयोग कहा जाता है । कुण्डली में यह स्थिति ठीक वैसी ही लगती है, जैसे तराजू के एक पलड़े पर भार रख दिया जाए और दूसरा पलड़ा खाली हो ।

भाव के आधार पर प्रमुख रूप से कालसर्पयोग 12 प्रकार के होते हैं । जैसे—अनन्त कालसर्पयोग, कुलिक कालसर्पयोग, वासुकि कालसर्पयोग, शंखपाल कालसर्पयोग, पद्म कालसर्पयोग, महापद्म कालसर्पयोग, तक्षक कालसर्पयोग, कर्कोटक कालसर्पयोग, शंखनाद कालसर्पयोग, पातक कालसर्पयोग, विषधर या विषाक्त कालसर्पयोग और शेषनाग कालसर्पयोग ।

क्या आपको स्वप्न में सर्प दिखायी देते हैं?

कालसर्पयोग से प्रभावित व्यक्ति के कुछ लक्षण इस प्रकार हैं—

  • कालसर्पयोग से प्रभावित व्यक्ति को स्वप्न में सर्प दिखायी देते हैं ।
  • इस योग से पीड़ित मनुष्य मानसिक तनाव में रहता है जिसके कारण वह सही निर्णय नहीं ले पाता है । इसी कारण प्रयास करने पर भी उसे कार्यों में सफलता प्राप्त नहीं होती है ।
  • गुप्त शत्रु उसको पीड़ा पहुंचाते और कार्यों में बाधा डालते रहते हैं ।
  • इस योग से पीड़ित मनुष्य के विवाह में विलम्ब होता है और यदि विवाहित हैं तो पारिवारिक जीवन कलहपूर्ण हो जाता है।
  • इस योग के कारण मनुष्य जिस पर सबसे अधिक विश्वास करता है, उसी से धोखा मिलता है ।

कालसर्पदोष की शान्ति के उपाय

  • कालसर्पदोष की शान्ति किसी शिवमन्दिर (कालहस्ती मन्दिर तिरुपति, त्र्यम्बकेशर मन्दिर नासिक, महाकाल मन्दिर उज्जैन, गरुड़गोविन्द मन्दिर मथुरा, त्रियुगी नारायण मन्दिर केदारनाथ आदि), नदीसंगम (त्रिवेणी संगम इलाहाबाद) अथवा किसी भी नागमन्दिर (नागमन्दिर जैतगांव मथुरा, नागमन्दिर ग्वारीघाट जबलपुर, मनसादेवी मन्दिर चण्डीगढ़ आदि) व नदी किनारे के शिवमन्दिर में की जाती है ।
  • कालसर्पदोष की शान्ति का सर्वश्रेष्ठ उपाय रुद्राभिषेक है । श्रावणमास में इसे करने से विशेष लाभ होता है ।
  • इस दोष की शान्ति के लिए शिवताण्डवस्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें।
  • अगर कर सकें तो प्रतिदिन अन्यथा सोमवार को शिवलिंग पर मिसरी मिला दूध चढ़ाएं ।
  • कालसर्पयोग निवारण की पूजा में शिवलिंग पर चन्दन के इत्र का प्रयोग करें ।
  • शिवपंचाक्षर मन्त्र ‘नम: शिवाय’ का नियमित जप करें ।
  • शिवपंचाक्षर स्तोत्र का प्रतिदिन पाठ करें । यह स्तोत्र इस प्रकार है—

नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांग रागाय महेश्वराय ।
नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मे ‘न’ काराय नमः शिवायः ॥
मन्दाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रमथनाथ महेश्वराय ।
मन्दारपुष्प बहुपुष्प सुपूजिताय तस्मै ‘म’ काराय नमः शिवायः ॥
शिवाय गौरी वदनाब्जवृन्द सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय ।
श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’ काराय नमः शिवायः ॥
वसिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमाय मुनीन्द्र देवार्चित शेखराय

चन्द्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै ‘व’ काराय नमः शिवायः ॥
यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय ।
दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’ काराय नमः शिवायः ॥
पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥
॥ इति श्रीमच्छंकराचार्यविरचितं श्रीशिवपञ्चाक्षरस्तोत्रं सम्पूर्णम् ॥

  • घर के पूजागृह में भगवान श्रीकृष्ण की मोरपंख लगी मूर्ति का प्रतिदिन पूजन करें ।
  • नवनागस्तोत्र के नौ पाठ प्रतिदिन करे । नौ नाग देवता हैं—अनन्त, वासुकि, शेष, पद्मनाभ, कम्बल, शंखपाल, धृतराष्ट्र, तक्षक और कालिय ।

नवनागस्तोत्र

अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मनाभं च कम्बलम् ।
शंखपालं धृतराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा ।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम् ।
सायकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत: ।।

  • चांदी के नाग-नागिन के जोड़े की विधिपूर्वक दूध से पूजाकर बहते जल में प्रवाहित करें ।
  • शिवलिंग पर नर्मदाजल की धारा छोड़ते हुए मां नर्मदा का नाम जपते रहें । हो सके तो इस मन्त्र का जप करते हुए नर्मदाजल की धारा शिवलिंग पर चढ़ाएं—

नर्मदायै नम: प्रातर्नर्मदायै नमो निशि ।
नमोऽस्तु नर्मदे तुभ्यं त्राहि मां विषसर्पत: ।।

  • इलाहाबाद में संगम पर तर्पण और श्राद्धकर्म करने से भी कालसर्पयोग की शान्ति हो जाती है ।
  • कालसर्पयन्त्र का प्रतिदिन चन्दन के इत्र से पूजन करने से भी इस दोष की शान्ति होती है । अगरबत्ती के धुएं से नागों को बैचेनी होती है अत: पूजा में इसका प्रयोग न करें ।

यदि किसी की कुण्डली में कालसर्पयोग है तो भगवान शिव की आराधना और उनके शरणागत होना ही सर्वश्रेष्ठ उपचार है क्योंकि संसार के कष्ट दूर करने के लिए उन्होंने कालकूट विष का पान कर लिया तो सच्ची भक्ति से कुण्डली के दोष दूर न कर सकें, यह तो असंभव है—‘भाविउ मेटि सकहिं त्रिपुरारी’ ।

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