श्रीराम जिन पर शत्रु की स्त्रियां भी करती हैं नाज

महारानी मन्दोदरी के ज्ञान-चक्षु खुल गए । उन्हें समझ आ गया कि उनके प्रियतम पति लंकाधिपति रावण में चरित्र-बल नहीं था, इसी कारण वे अपने भाई, पुत्र तथा पौत्रों सहित मारे गए ।

सीताजी का गायत्री-मन्त्र और 10 नाम की महिमा

श्रीरामवल्लभा सीताजी जीवों के लिए सभी प्रकार के श्रेय को देने वाली हैं । उन की कृपा से जीव भौतिक सुख और साधन पाकर इस संसार में सभी प्रकार की समृद्धियों का उपभोग करता है और लौकिक आनंद से आह्लादित होता है । यही सीताजी की महिमा है ।

श्रीरामनवमी व्रत व पूजन विधि

श्रीराम सर्वात्मा व विश्वमूर्ति हैं । उनका जीवन-मंत्र था—‘बहुतों के साथ चलने में ही सच्चा सुख है, अल्प में नहीं । अपने को शुद्ध करो, ज्ञान का विस्तार करो, सद्भाव व समभाव से जीवन को राममय बनाओ, स्वयं आनन्दित रहो और दूसरों को भी आनन्दित करते रहो—यही सच्चा रामत्व है ।’

भगवान श्रीसीताराम का विवाहोपहार : कनक भवन

सीता-स्वयंवर के बाद जब श्रीराम, लक्ष्मण, भरत और शत्रुघ्न विवाहित होकर अयोध्या लौटे तो महारानी कैकयी ने उस नव-निर्मित कनक भवन को अपनी बहू सीताजी को भेंट कर दिया । इसके बाद कनक भवन श्रीराम और सीताजी का आवास बन गया ।

हनुमानजी की चुटकी सेवा

सेवा का साकार रूप हनुमानजी बोले—‘प्रभु को जब जम्हाई आएगी, तब उनके सामने चुटकी बजाने की सेवा मेरी ।’ यह सुनकर सब चौंक गये । इस सेवा पर तो किसी का ध्यान गया ही नहीं था लेकिन अब क्या करें ? अब तो इस पर प्रभु की स्वीकृति हनुमानजी को मिल चुकी है । हनुमानजी का बुद्धि-चातुर्य दर्शाती एक रोचक कथा ।

श्रीराम : ‘अवधपुरी सम प्रिय नहिं सोऊ’

भगवान श्रीराम के जन्मस्थान का दर्शन करने से प्रतिदिन सहस्त्रों कपिला गायों के दान का फल मिलता है । माता-पिता और गुरु-भक्ति का जो फल है, वह जन्मस्थान के दर्शन करने मात्र से मिल जाता है ।

भगवत्सेवा से बढ़कर है संत-सेवा

गृहस्थ में रहकर यदि मनुष्य अपने वर्णाश्रम धर्म के अनुसार जीविका उपार्जन करता हुआ भगवान के भजन के साथ संत-सेवा और दान-पुण्य आदि कर्म करता रहे तो इससे भगवान बहुत प्रसन्न होते हैं ।

सुने री मैंने निर्बल के बल राम

भगवान को अपने बल का अभिमान अच्छा नहीं लगता तभी कहा गया है—निरबल के बल राम

ज्ञानवर्धक कथा : शुकदेवजी मुनि कैसे बने ?

महर्षि वेदव्यास और शुकदेवजी में हुआ बहुत ही ज्ञानवर्धक संवाद हुआ जो मोहग्रस्त सांसारिक प्राणी को कल्याण का मार्ग दिखाने वाला है ।

अभयदाता श्रीराम

विधि—किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न होने पर इन चौपाइयों में से किसी एक या अधिक का जप करने से मनुष्य का भय समाप्त हो जाता है । प्रात:काल स्नान आदि करके एक चौकी पर श्रीरामजी की मूर्ति या चित्रपट रखकर उसका पंचोपचार—गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें । फिर किसी भी चौपाई का १०८ बार (एक माला) जप करें । यह जप लगातार ३१ दिनों तक करें ।