नवनिधियों के स्वामी कुबेर
राजाधिराज कुबेर सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड की धन-सम्पदा के स्वामी होने के साथ देवताओं के भी धनाध्यक्ष (treasurer) हैं। संसार के गुप्त या प्रकट जितने भी वैभव हैं, उन सबके अधिष्ठाता देव कुबेर हैं। यक्ष, गुह्यक और किन्नरों के अधिपति कुबेर नवनिधियों के भी स्वामी हैं। एक निधि भी अनन्त वैभव प्रदान करने वाली होती है किन्तु कुबेर नवनिधियों के स्वामी हैं।
नवनिधियों के नाम हैं—
- पद्म,
- महापद्म,
- शंख,
- मकर,
- कच्छप,
- मुकुन्द,
- कुन्द,
- नील,
- वर्चस्।
ब्रह्माजी ने कुबेर को बनाया अक्षयनिधियों का स्वामी
पादकल्प में कुबेर विश्रवामुनि व इडविडा के पुत्र हुए। विश्रवा के पुत्र होने से ये ‘वैश्रवण कुबेर’ व माता के नाम पर ‘ऐडविड’ के नाम से जाने जाते हैं। इनकी दीर्घकालीन तपस्या से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने इन्हें लोकपाल का पद, अक्षयनिधियों का स्वामी, पुष्पकविमान व देवता का पद प्रदान किया। कुबेर ने अपने पिता विश्रवामुनि से कहा कि ब्रह्माजी ने मुझे सब कुछ प्रदान कर दिया परन्तु मेरे निवास के लिए कोई स्थान नहीं दिया है। इस पर इनके पिता ने दक्षिण समुद्रतट पर त्रिकूट पर्वत पर स्थित लंकानगरी कुबेर को प्रदान की जो सोने से निर्मित थी।
भगवान शंकर के अभिन्न मित्र हैं कुबेर
कुबेर ने कई जन्मों तक भगवान शंकर की पूजा-आराधना की। पादकल्प में जब ये विश्रवा मुनि के पुत्र हुए तब इन्होंने भगवान शंकर की विशेष आराधना की। भगवान शंकर ने प्रसन्न होकर इन्हें उत्तर दिशा का आधिपत्य, अलकापुरी का राज्य, चैत्ररथ नामक दिव्य वन और एक दिव्य सभा प्रदान की। माता पार्वती की इन पर विशेष कृपा थी। भगवान शंकर ने कुबेर से कहा—‘तुमने अपने तप से मुझे जीत लिया है, अत: मेरा मित्र बनकर यहीं अलकापुरी में रहो।’ इस प्रकार कुबेर भगवान शिव के घनिष्ठ मित्र हैं।
कैसा है कुबेर का स्वरूप
ध्यान-मन्त्रों में कुबेर को पालकी पर या पुष्पकविमान पर विराजित दिखाया गया है। पीतवर्ण के कुबेर के अगल-बगल में समस्त निधियां विराजित रहती हैं। इनके एक हाथ में गदा तथा दूसरे हाथ में धन प्रदान करने की वरमुद्रा है। इनका शरीर स्थूल है।
राजाधिराज कुबेर की पूजा से मिलते है ये लाभ
—कुबेर की सभा में महालक्ष्मी के साथ शंख, पद्म आदि निधियां मूर्तिमान होकर रहती हैं; इसलिए धनतेरस व दीपावली के दिन लक्ष्मीपूजा के साथ कुबेर की पूजा की जाती है क्योंकि कुबेर की पूजा से मनुष्य का दु:ख-दारिद्रय दूर होता है और अनन्त ऐश्वर्य की प्राप्ति होती है।
—कुबेर की सभा में त्रिशूल लिए भगवान शिव माता पार्वती के साथ विराजमान रहते हैं, इसलिए कुबेर-भक्त की सभी आपत्तियों से रक्षा होती है।
—धार्मिक अनुष्ठानों में भगवान के षोडशोपचार पूजन में आरती के बाद मन्त्र-पुष्पांजलि दी जाती है। पुष्पांजलि में ‘राजाधिराजाय प्रसह्य साहिने’ इस मन्त्र का पाठ होता है। यह कुबेर की ही प्रार्थना का मन्त्र है। अत: सभी काम्य-अनुष्ठानों में फल की प्राप्ति राजाधिराज कुबेर की कृपा से ही होती है।
—धनपति कुबेर अपने भक्तों को उदारता, सौम्यता, शान्ति व तृप्ति आदि गुण प्रदान करते हैं।
—कुबेर व्रत करने से मनुष्य विशेषकर बच्चों को आरोग्य की प्राप्ति होती है।
दीवाली पर धन-सम्पत्ति प्राप्ति के लिए कैसे करें कुबेरपूजन
कुबेर त्वं धनाधीश गृहे ते कमला स्थिता।
तां देवीं प्रेषयाशु त्वं मद्गृहे ते नमो नम:।।
हे धनाधीश कुबेर तुम्हारे घर में राजश्री के रूप में कमला (लक्ष्मी) निवास करती हैं, मेरे द्वारा तुम्हारी पूजा से प्रसन्न होकर वही देवी मेरे घर में भी निवास करें।
धनत्रयोदशी और दीवाली के दिन कुबेर की विधिपूर्वक पूजा होती है। लक्ष्मीपूजन के बाद तिजोरी या रुपये रखने वाली आलमारी पर स्वस्तिक बना कर ‘कुबेराय नम:’ से पंचोपचार पूजन (रोली, चावल, धूप, दीप व नैवेद्य) करें। प्रार्थना करें—
धनदाय नमस्तुभ्यं निधिपद्माधिपाय च।
भगवन् त्वत्प्रसादेन धनधान्यादि सम्पद:।।
फिर एक थैली में पांच हल्दी की गांठें, साबुत धनिया, कमलगट्टा, अक्षत, दूर्वा और सिक्के रखकर थैली को तिजोरी में रख दें।
कुबेर को प्रसन्न करने के प्रसिद्ध मंत्र
अष्टाक्षरमन्त्र (आठ अक्षर का मन्त्र)—‘ॐ वैश्रवणाय स्वाहा।’
षोडशाक्षरमन्त्र (सोलह अक्षर वाला मन्त्र)—‘ॐ श्रीं ॐ ह्रीं श्रीं ह्रीं क्लीं श्रीं क्लीं वित्तेश्वराय नम:।’
पंचत्रिंशदक्षरमन्त्र (पैंतीस अक्षर का मन्त्र)—‘ॐ यक्षाय कुबेराय वैश्रवणाय धनधान्याधिपतये धनधान्यसमृद्धिं मे देहि दापय स्वाहा।’
इनमें से जो भी मन्त्र कर सकें उसकी एक माला (108 बार) जप करें।
कुबेर व्रत
फाल्गुन शुक्ल त्रयोदशी से शुरु कर वर्ष भर प्रत्येक महीने शुक्ल त्रयोदशी को कुबेर-व्रत करने से मनुष्य धनी और सुख-समृद्धिवान हो जाता है।