त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम प्रगट हुए तो मां कौसल्या अपने शिशु का रूप निहारती रह गईं और गोस्वामी तुलसीदास जी कह उठे—
भए प्रगट कृपाला दीनदयाला कौसल्या हितकारी ।
हरषित महतारी सुनि मन हारी अद्भुत रूप बिचारी ।।
ऐसी ही अनुभूति श्रीअयोध्या धाम में श्रीराम जन्मभूमि परिसर में बने नव्य भव्य मंदिर में विराजित श्रीरामलला (नामकरण के बाद नया नाम ‘बालकराम’) के नूतन विग्रह के प्रथम दर्शन करने के बाद सभी को हो रही है । क्या दिव्य स्वरूप है, लगता है भगवान अभी कुछ बोल देंगे । भगवान श्रीबालकराम का दूर्वादल के समान श्यामल स्वरूप नैनों को अपार सुख देने वाला है । निहारते ही आंखें झर-झर झरने लगती हैं । वे बार-बार मन में दस्तक देते हुए आंखों के सामने उपस्थित हो जाते हैं । लगता है मन उस नयनाभिराम छवि पर ही अटक गया है ।
सुंदरता के आगार भगवान श्रीबालकराम
भगवान बालकराम की रूपमाधुरी और उनके आपादमस्तक श्रृंगार को देखकर उपमाएं भी लजा रहीं हैं । उनका विग्रह श्यामवर्णी अलौकिक आभा व मानवीय चेतना से युक्त पांच साल के राजपुत्र का है, जिस पर भक्तों के साथ-साथ भक्ति भी न्यौछावर हुई जा रही है ।
मंद-मंद मुस्कराता हुआ बालचंद्र जैसा श्रीमुख; जिससे तेज, माधुर्य, कोमलता और आभा का झरना बह रहा है । शीश पर रत्नजटित स्वर्ण मुकुट है, जिसके बीचोंबीच बैठे भगवान सूर्य उनके सूर्यवंशीय होने का प्रमाण दे रहे हैं । मुकुट के नीचे से घुंघराले केशों की थोड़ी सी लट विग्रह को जीवंतता प्रदान कर रही है । ललाट पर माणिक्य और हीरे का रामानंदीय मंगल तिलक ऐसा लगता है, मानो लाल कमल के मध्य स्वयं सुन्दरता जा बैठी हो ।
नेत्रों की उपमा खंजन पक्षी, मछली, भौंरे, कमल और हिरन के नेत्रों से दी जाती है; परंतु भगवान श्रीबालकराम के नेत्रकमल इनसे भी अधिक सुन्दर हैं—बोलती आंखों से एकदम जीवंत और करुणा से भरपूर ।
भगवान के कानों में रत्नजटित मयूराकृत कुण्डल ऐसे लग रहे हैं, मानो साक्षात् कामदेव भगवान के कपोलों पर क्रीड़ा कर रहे हों, ऐसी सुंदरता पर प्राण भी न्यौछावर हैं ।
दोनों ओंठ दो बिम्बफल जैसे हैं । उनकी उन्नत और दीर्घ नासिका का तो कहना ही क्या ! तनी हुई भौंहों को देखकर ऐसा लगता है, मानो कामदेव धनुष हाथ में ले डोरी चढ़ाकर बाणों की वर्षा कर रहा हो । भगवान बालकराम की ठुड्डी, दांत, ओंठ तथा नासिका ऐसे हैं कि एक बार देखने पर बार-बार देखने की चाह होती है । सुन्दर कपोलों की छटा की कोई उपमा ही नहीं है ।
शंख के समान गले में अर्धचंद्राकार रत्नजटित कंठा व पंचलड़ा हीरे व पन्ने का हार पदिक है; साथ ही गले में विजयमाला (वैजयंती माला) है, जो विजय का प्रतीक है । इसमें वैष्णव परम्परा के समस्त मंगल-चिह्न जैसे—सुदर्शन चक्र, पद्मपुष्प, शंख और मंगल कलश बने हैं । भगवान को पांच प्रकार के पुष्पों—कमल, चंपा, पारिजात, कुंद और तुलसी की वनमाला भी धारण कराई गई है ।
सोने में हीरे व बड़े-से माणिक्य के साथ जड़ी हुई अत्यधिक शोभा देने वाली कौस्तुभमणि उनके वक्ष:स्थल पर इस प्रकार झूल रही है, मानो श्याम मेघों के बीच में नवीन चन्द्र प्रकाश फैला रहा हो ।
उनकी आजानबाहु अर्थात् जाँघ तक लम्बी भुजाएं हैं । बांहों में उन्होंने सुन्दर आभूषण जैसे रत्नजड़ित कंगन व भुजबंद पहने हुए हैं, ऊंगलियों में मुद्रिकाएं हैं । भगवान के बाएं हाथ में सोने का धनुष और दाहिने हाथ में स्वर्ण का बाण धारण कराया गया है ।
भगवान श्रीबालकराम की कमर में बंधा सोने-चांदी के तारों से बुना रेशमी पीताम्बर और उस पर लाल रंग का पटुका (अंगवस्त्रम) ऐसा सुन्दर लग रहा है, मानो विद्युत् अपनी चंचलता छोड़कर नवीन मेघ के ऊपर स्थिर हो गई हो । भगवान के पीताम्बर की पीत शोभा अग्नि में तपाए गए सोने से भी अधिक सुंदर है; वह सोने को भी लज्जित करने वाली है ।
पीताम्बर पर रत्नजड़ित करधनी है, जिसमें पवित्रता की प्रतीक छोटी-छोटी पांच घंटियां लगी हैं; जिनमें मोती, माणिक्य और पन्ने लटक रहे हैं ।
भगवान श्रीबालकराम के सम और कमल समान चरणों में रत्नजड़ित हीरे और माणिक्य जड़ी छड़ें और सोने की पैंजनियां पहनाई गई हैं । भगवान के पैरों के नीचे जो कमल है, उस पर स्वर्णमाला सजाई गई है ।
गोस्वामी तुलसीदास जी ने लोकप्रिय स्तुति ‘श्रीरामचंद्र कृपालु भजु मन’ में श्रीराम जी की ऐसी ही रूपमाधुरी का वर्णन इस प्रकार किया था—
कंदर्प अगणित अमित छवि, नवनील नीरद सुंदरं ।
पट पीत मानहु तड़ित रुचि शुचि नौमि जनक सुतावरं ।। २ ।।
अर्थात्—उनके सौंदर्य की छटा अगणित कामदेवों से बढ़ कर है, उनके शरीर का नवीन नीले जल भरे बादलों के समान सुंदर रंग है, नीले मेघ के समान शरीर पर पीताम्बर मानो बिजली के समान चमक रहा है, ऐसे पावन जानकी के पति श्रीरामचंद्रजी को मैं नमस्कार करता हूँ ।
सिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अंग विभूषणं ।
आजानुभुज शर-चाप-धर, संग्राम-जित-खरदूषणं ।। ४ ।।
अर्थात्—जिनके मस्तक पर रत्नजटित मुकुट, कानों में कुण्डल, भाल पर सुंदर तिलक और प्रत्येक अंग में सुंदर आभूषण सुशोभित हो रहे हैं; जिनकी भुजाएं घुटनों तक लम्बी हैं; जो धनुष-बाण लिए हुए हैं; जिन्होंने युद्ध में खर-दूषण को जीत लिया है ।
ऐसी ही छवि नये प्राण-प्रतिष्ठित विग्रह भगवान श्रीबालकराम की है ।
निरख-निहार कर भक्त हुए निहाल
जब कलियुग में श्रीरामलला की छवि इतनी नयनाभिराम है, तो सोचिए त्रेतायुग में श्रीरामलला की रूपमाधुरी कैसी होगी ? तभी तो श्रीरामलला के दर्शन के लिए स्वयं सूर्यदेव अयोध्या के ऊपर स्थिर हो गए और अयोध्या में एक माह का दिन हो गया । श्रीरामलला की शिशुक्रीड़ा के दर्शन के लिए अवध की गलियों में भगवान शंकर स्वयं ही मदारी और वानर बन कर घूमने लगे ।
भगवान बालकराम पांच वर्ष के छोटे से बालक हैं, परंतु वे सुख और आनन्द की महान राशि हैं । वे रूप और गुण की राशि हैं; वे शील और यश की राशि हैं; सद्भाव व करुणा की राशि हैं; वे दया और पराक्रम की राशि हैं; सहिष्णुता की राशि हैं; लेकिन शत्रुओं व दानवों के कुल को नष्ट करने वाले हैं । जो उनको जैसे भजता है, वे उसे वही देने वाले हैं । इनका तनिक-सा सुयश सुनने से ही प्राणी परमपद को पा जाता है; तनिक-सा प्रसन्न होते ही ये अपने-आप को दे देते हैं; तथा तनिक-सा देखकर ही मन को मोह लेते हैं अत: इन्हें ‘चितचोर’ भी कहते हैं ।