या देवी सर्वभूतेषु शक्तिरूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।। (देवीसूक्तम् १२)
‘श’ नाम ऐश्वर्य का और ‘क्ति’ नाम पराक्रम का है अत: ऐश्वर्य-पराक्रमस्वरूप और इन दोनों को देने वाली को ‘शक्ति’ कहते हैं ।
बह् वृचोपनिषद् में कहा गया है–‘सृष्टि के आदि में एक देवी ही थी, उसने ही ब्रह्माण्ड उत्पन्न किया; उससे ही ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र उत्पन्न हुए । अन्य सब कुछ उससे ही उत्पन्न हुआ । वह ऐसी पराशक्ति है ।’
सारा जगत अनादिकाल से प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से शक्ति की उपासना में लगा हुआ है । सभी जगह शक्ति का ही आदर और बोलबाला है क्योंकि शक्तिहीन वस्तु जगत में टिक ही नहीं सकती है ।
‘शक्तिहीन को न आत्मा की और न परमात्मा की प्राप्ति हो सकती है ।’
एक कहावत है कि ‘कमजोरों के लिए संसार में कहीं स्थान नहीं है ।’ कोई निर्बल व्यक्ति स्वतन्त्र नहीं हो सकता है ।
परमात्मा भी शक्ति के साथ ही पूजे जाते हैं । शक्ति के बिना शिव भी शव ही हैं । जैसे पुष्प की गंध चारों ओर फैल कर पुष्प का परिचय कराती है, उसी तरह शक्ति ही परमात्मा का बोध कराती है । कोई इस शक्ति को पराशक्ति, ज्ञानशक्ति, इच्छाशक्ति, क्रियाशक्ति कहते हैं तो कोई इसे जगन्माता, जगदम्बा, जगज्जननी, आद्याशक्ति या देवी के नाम से स्मरण करते हैं । इस शक्ति का निवास सब प्राणियों में है, सब उसकी प्रिय संतान हैं।
मनुष्य एक शक्तिसम्पन्न चेतन आत्मा है
परमात्मा ने किसी को निर्बल या बलवान नहीं बनाया है । मनुष्य निरा मिट्टी का पुतला या हाड़-मांस और रक्त का थैला नहीं है, न ही वह निर्जीव मुर्दे के समान है । प्रत्येक मनुष्य एक शक्तिसम्पन्न चेतन आत्मा है जिसके अंदर दैवी-शक्ति छिपी हुई है परन्तु वह गुप्त है । मनुष्य को अपने को हीन या पापी समझकर निराश नहीं होना चाहिए; वरन् अपने अंदर निहित अपार शक्ति को जगाने के लिए शक्ति की उपासना करनी चाहिए क्योंकि शक्ति ही सब कुछ है । शक्ति की ही सर्वत्र आवश्यकता है । शक्ति की उपासना से मनुष्य जिस अवस्था को प्राप्त करना चाहे, वैसी अवस्था प्राप्त कर सकता है और जो कुछ चाहे वह सब कुछ कर सकता है । परन्तु अपनी आंतरिक शक्ति को जगाने के लिए मनुष्य को प्रयत्नशील, पुरुषार्थी और परिश्रमी बनना होगा ।
आद्य शंकराचार्य को दिया मां ने शक्ति की उपासना का आदेश
आद्य शंकराचार्य निर्गुण-निराकार अद्वैत ब्रह्म के उपासक थे । एक बार वे काशी आए तो वहां उन्हें अतिसार (दस्त) हो गया जिससे वे अत्यन्त दुर्बल हो गए । एक दिन वे एक स्थान पर बैठे थे, तब उन पर कृपा करने के लिए मां अन्नपूर्णा एक गोपी का रूप बनाकर एक बड़ी दही की मटकी लेकर उनके पास आकर बैठ गयीं ।
कुछ देर बाद उस गोपी ने कहा—‘स्वामीजी ! मेरी मटकी को उठवा दीजिए ।’ शंकराचार्यजी ने कहा—‘मुझमें शक्ति नहीं है, मैं तुम्हारी मटकी उठवाने में समर्थ नहीं हूँ ।’ मां ने कहा—‘तुमने शक्ति की उपासना की होती, तब तुममें शक्ति आती, शक्ति की उपासना के बिना शक्ति कैसे आ सकती है ?’
यह सुनकर शंकराचार्यजी की आंखें खुल गईं । उन्होंने आदिशक्ति की स्तुति के लिए अनेक स्तोत्रों की रचना की ।
शक्ति की उपासना करने के लिए मनुष्य को कुछ गुण विकसित करने होते हैं–
—जिन मनुष्यों का मन कलुषित है, चित्त में अहंकार भरा है, जीभ सदैव झूठ और कड़वी जबान बोलती है, भावनाएं कुत्सित हैं, इन्द्रियां सदैव भोगों में लिप्त रहती हैं, उनके पूजा-पाठ आदि बेकार ही जाते हैं; क्योंकि दुर्गुणों को देखकर इष्टदेव रुष्ट भी हो जाते हैं ।
—दुर्गासप्तशती में लिखा है कि देवी रुष्ट होने पर सभी अभीष्ट कामनाओं का नाश कर देती है–
रोगानशेषानपहंसि तुष्टा
रुष्टा तु कामान् सकलानभीष्टान् ।
त्वामाश्रितानां न विपन्नराणां
त्वामाश्रिता ह्याश्रयतां प्रयान्ति ॥ (सप्तश्लोकी दुर्गा ६)
अर्थात्—देवी ! आप प्रसन्न होने पर सब रोगों को नष्ट कर देती हैं और कुपित होने पर मनोवांछित सभी कामनाओं का नाश कर देती हैं । जो लोग आपकी शरण में हैं, उनपर विपत्ति तो आती ही नहीं; आपकी शरण में गए हुए मनुष्य दूसरों को शरण देनेवाले हो जाते हैं ।
—इसलिए जो अपने अंदर सद्गुणों का विकास करके आर्तभाव से आद्याशक्ति के चरणों में अपने को समर्पण कर देते हैं उनके सब कष्टों और अभावों को मिटाकर मां अपनी शक्ति उनके जीवन में भर देती है ।
—मनुष्य को अपने अहंकार, काम, क्रोध, असत्य व लोभ रूपी असुरों की बलि मां आदिशक्ति के चरणों में अर्पित कर देनी चाहिए ।
–छोटे-से-छोटा जीव भी मां की संतान है । वही सबकी रक्षा और पालन करती हैं। इसलिए सभी प्राणियों से प्रेम और निरीह प्राणियों पर दया करनी चाहिए क्योंकि मां का एक रूप दया है—
या देवी सर्वभूतेषु दयारूपेण संस्थिता ।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम: ।। (देवीसूक्तम् २३)
–शुद्ध विचार और शुद्ध आचरण से ही मां प्रसन्न होती हैं ।
–शक्ति की पूजा वशीकरण, मारण, मोहन, उच्चाटन व किसी का बुरा करने के लिए कभी नहीं करनी चाहिए।
–दैवीय गुणों की प्राप्ति के लिए, सभी की भलाई के लिए व मोक्ष प्राप्ति के लिए शक्ति की पूजा करनी चाहिए ।
–शक्ति की उपासना करने वाले मनुष्य को निर्भय, स्वतन्त्र और साहसी होना चाहिए ।
रात्रि में सोते समय करें ये अचूक उपाय, जाग्रत होंगी आन्तरिक शक्तियां
आदिशक्ति बुद्धिरूप में सभी के अंदर स्थित है । अत: मनुष्य को शक्ति की उपासना कर अपने अंदर स्थित शक्तियों को जाग्रत करना चाहिए । इसके लिए एक अचूक उपाय है—
—रात्रि में सोते समय बिस्तर पर सुखासन में बैठ जाएं ।
—सब ओर से ध्यान खींचकर अपने हृदयमन्दिर पर ध्यान केन्द्रित करें क्योंकि वही आदिशक्ति का निवासस्थान है ।
—साधक को अपने मन को उस महान आदिशक्ति से जोड़ देना चाहिए जिससे संसार में सब शक्तियां प्रवाहित हो रही हैं । अपने आगे-पीछे, ऊपर-नीचे सब तरफ उस आदिशक्ति को उपस्थित देखें ।
—‘मां’ शब्द में कितना प्रेमामृत भरा हुआ है, इसका वर्णन नहीं किया जा सकता । पुत्र जब अपनी मां को ‘मां-मां’ कहकर पुकारता है तब माता का हृदय प्रेम से भर जाता है । ऐसे ही भक्तजन जब ‘मां-मां’ कहकर अपने आराध्य को पुकारता है तब उसके हृदय में एक दिव्य आनन्द की धारा बहने लगती है ।
—मां से प्रार्थना करें–‘जिस प्रकार बिना पंख के पक्षी और भूख से पीड़ित बछड़े अपनी मां की बाट जोहते हैं, वैसे ही मैं आपके दर्शनों की बाट जोह रहा हूँ, मुझे अपना दर्शन दें।’
दुर्गे स्मृता हरसि भीतिमशेषजन्तो:
स्वस्थै: स्मृता मतिमतीव शुभां ददासि ।
दारिद्रय दु:खभयहारिणि का त्वदन्या
सर्वोपकारकरणाय सदार्द्रचित्ता ।। (सप्तश्लोकी दुर्गा २)
अर्थात्–‘हे मां ! तुम्हारा स्मरण करने से समस्त जीवों के भय का नाश होता है और शान्तचित्त से स्मरण करने से तुम अत्यन्त शुद्ध बुद्धि देती हो । दरिद्रता, दु:ख और भय का नाश करने वाली तुम्हारे सिवा कौन है । सभी के उपकार के लिए तुम्हारा चित्त सदैव दया से भरा रहता है ।’
—सोते समय देवी का ध्यान करते हुए इस मन्त्र का कई बार पूर्ण श्रद्धा के साथ जाप करना चाहिए ।
—जिन-जिन कामनाओं को मनुष्य पूर्ण करना चाहता है, मां का चिन्तन करते हुए उन्हें उनसे कह देना चाहिए । विद्या, धन, बल, ऐश्वर्य–ये सब आदिशक्ति से ही उत्पन्न होते हैं और आदिशक्ति की उपासना से तत्काल ये सब पदार्थ साधक को प्राप्त हो जाते हैं । मां असाध्य से भी असाध्य कार्य को सिद्ध कर देती हैं और साधक में आश्चर्यजनक आंतरिक शक्ति जाग्रत हो जाती हैं ।
इस प्रयोग का विलक्षण प्रभाव यह होगा कि मां जगदम्बा तुमसे प्रेम करेंगी, तुम उन्हें भूल भी जाओ पर वे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगी; क्योंकि पुत्र चाहें कुपुत्र क्यों न हो, माता कभी कुमाता नहीं होती है ।
आदिशक्ति अम्बे ! इस जग का सारा शोक बिदारें ।
दया करें सबपर अनुदिन ही, सबकी दशा संवारें ।।
मानव के मन में स्थित जो काम, शोक, भय भारी ।
परम कृपा कर उन्हें मिटा दें, जननी देव-दुलारी ।। (डॉ. श्रीश्यामबिहारीजी मिश्रा)