देवी दुर्गा की आराधना मनुष्य को सब प्रकार के भोग, सौभाग्य, स्वर्ग के-से सुख और अंत में मोक्ष प्रदान करने वाली है । साथ ही मां की कृपा से रोग, शोक, दरिद्रता, व सभी बाधाओं और संकटों का भी नाश हो जाता है और परिवार में सदैव आनन्द बना रहता है ।
देवी पूजा की सरल विधि
सबसे पहले आराधक को स्नान करके पूजा के लिए शुद्ध व सुन्दर वस्त्र और स्त्रियों को सौभाग्यचिह्न धारण करने चाहिए । फिर पूर्व दिशा की ओर मुख करके आसन पर बैठे । पूजन के लिए सभी सामग्री अपने पास रख लें । देवी के लिए एक चौकी स्थापित करें जिस पर लाल कपड़ा बिछा लें। अखण्ड चावलों का अष्टदल कमल बनाकर उस पर सिंहासन में देवी की प्रतिमा (मूर्ति) विराजमान कर दें । यदि मूर्ति नहीं है तो उनका चित्रपट (तस्वीर) स्थापित कर दें, बस मां साकार रूप में उपस्थित हो गईं ।
पूजन आरम्भ करने से पहले घी का दीपक जलाकर चौकी के दाहिने भाग में थोड़े से चावलों के ऊपर रख दें। ‘ऊँ दीपज्योतिषे नम:’ कहकर दीपक पर रोली का छींटा देकर एक पुष्प चढ़ा दें और यह भावना करें कि हे दीप ! आप मेरी पूजा के साक्षी हों, जब तक मेरी पूजा समाप्त न हो जाए, तब तक तुम यहीं स्थिर रहना ।
अब हाथ में पुष्प लेकर मां का ध्यान करें–
सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके ।
शरण्ये त्र्यम्बिके देवि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।
इसके बाद देवी के विभिन्न नामों के साथ सभी सामग्री अर्पित करें ।
अब यदि मिट्टी की मूर्ति है या चित्र है तो स्नान आदि केवल जल के छीटें देकर ही करें । धातु की मूर्ति होने पर उनका स्नान विधिपूर्वक कराएं । धातु की मूर्ति को एक थाली या कटोरे में रख लें ।
हे मां । यह आपके स्नान के लिए मन्दाकिनी का जल है, यह कहकर उन्हें स्नान करायें । मूर्ति को साफ कपड़े से पौंछकर, वस्त्र पहनाकर चौकी पर स्थापित कर दें ।
हे देवि ! यह आपके लिए आभूषण हैं, इन्हें स्वीकार करें । मां को हार, मुकुट आदि धारण कराएं ।
हे मंगला ! यह आपके लिए चंदन, रोली, चावल, सिन्दूर, अबीर-गुलाल व इत्र है–यह कह कर सभी सामग्री एक-के-बाद-एक देवी को अर्पित करें ।
हे दुर्गा ! यह मैं आपके लिए सुन्दर पुष्प माला लाया हूँ, इसे स्वीकार करें । देवी को गुलाब व गुड़हल के फूल पसंद हैं ।
हे मां भद्रकाली ! यह आपके लिए अत्यन्त हरे बेलपत्र हैं, मां को बेलपत्र चढ़ाएं ।
हे मां ! यह आपके लिए धूप व अगरबत्ती है, इसे मां को दिखाएं ।
हे शिवा ! यह आपके लिए शुद्ध घी में रुई की बाती से बना दीपक है, जिस प्रकार यह दीप सारे अंधकार को दूर कर देता है, वैसे ही आप हमारे पापों को दूर कीजिए। पहले प्रज्ज्वलित दीपक पर चावल चढ़ा दें ।
हे अन्नपूर्णा ! यह आपके लिए भोग है । आपको मेवा, बरफी आदि बहुत ही प्रिय हैं । यह आप ग्रहण करें और अपने प्रति मेरी भक्ति को अविचल कीजिए । जो भी भोग के लिए वस्तु घर में हो उसे मां को अर्पित करें ।
हे शिवा ! यह आपके लिए फल है । मां को अनार बहुत प्रिय है । जो भी फल हो उसे मां को अर्पित करें । आप इसे ग्रहण कर मेरे लिए फलदाता होइए ।
हे विद्याप्रद ! यह नारियल का फल मैं आपको अर्पित करता हूँ, इससे जन्म-जन्म में मुझे सफलता प्राप्त हो ।
हे मां ! यह आपके लिए ताम्बूल (पान) है। यदि पान उपलब्ध न हो तो एक सुपारी, दो लौंग व एक इलायची चढ़ा दें।
हे देवि ! यह आपके लिए दक्षिणा है, इसे स्वीकार कर मुझे शांति प्रदान करें ।
अंत में घी में डुबोई हुई बाती व कपूर जलाकर मां की आरती करें–
जय जयकार करें माता की आए शरण भवानी की ।
एक बार सब मिल कर बोलो जय दुर्गे महारानी की ।।
तू दाता हम मांगता, तेरो दीजो खाएं ।
तुझसे नाता तोड़ के हम कौन शरण अब जाएं ।।
सदा विराजे दाहिने मां सनमुख श्रीगणेश ।
पांच देव रक्षा करें मां, ब्रह्मा, विष्णु, महेश ।।
जा पर कृपा मात की होई, ता पर कृपा करे सब कोई।।
माता के दरबार में घण्टन की घनघोर ।
यात्री ठाड़े द्वार पर मां दर्शन दीजो मोय।।
इतना मुझको दीजियो कुटुम्ब पार है जाय ।
साधु छाड़े द्वार पर मां वे भी भूखे न जाएं ।
सिंह चढ़े देवी मिलें, गरुड़ चढ़े भगवान
बैल चढ़े शंकर मिलें मैया पूरन कीजो काम ।।
अंत में मां को पुष्पांजलि के रूप में पुष्प चढ़ावें और परिक्रमा करके दण्डवत् प्रणाम करें ।
अंत में क्षमा-प्रार्थना करें–आपके पूजन में मुझसे जो भी न्यूनता या अधिकता हो गई हो तो हे फलप्रदा मां ! मुझे क्षमा करें और इस पूजा से संतुष्ट हों ।
मां को अपने बच्चों से केवल प्रेम चाहिए और कुछ नहीं । अत: इनमें से जो भी वस्तु घर में आसानी से उपलब्ध हों, अगर वह अपनी श्रद्धा और सामर्थ्यानुसार मां को अर्पित कर दी जाएं तो वह उससे भी प्रसन्न हो जाती हैं । इतनी पूजा अगर रोज न कर सकें तो अष्टमी और नवरात्रों में इस पूजा-विधि को अपना सकते हैं ।