किसी भी देवता के पूजन में धूप-दीप प्रज्ज्वलित (जलाने का) करने का बहुत महत्व है । पूजा के सरलतम रूप जिसे पंचोपचार पूजन कहते हैं; उसमें भगवान का पांच ही चीजों से पूजन करने का विधान है और ये पांच उपचार हैं—
१. गंध, २. पुष्प, ३. नैवेद्य, ४. धूप और ५. दीप ।
भगवान सत्यनारायण का पूजन प्राय: अधिकांश घरों में किया जाता है । जब हम भगवान सत्यनारायण की आरती गाते हैं तो उसमें एक पंक्ति आती है—‘धूप-दीप तुलसीदल राजत सत सेवा’ ।
अर्थात् धूप-दीप और तुलसीदल से ही भगवान सत्यनारायण की पूजा सफल होती है ।
पूजा में धूप-दीप प्रज्ज्वलित करने का इतना अधिक महत्व क्यों हैं ?
भगवान के माहात्म्य और प्रभाव का तथा शास्त्रों का ज्ञान जैसा भीष्म पितामह को था, वैसा कहीं ओर देखने को नहीं मिलता है । महाभारत के ‘अनुशासन पर्व’ में युधिष्ठिर भीष्म पितामह से कहते हैं—‘पितामह ! पूजा में धूप-दीप के महत्व का वर्णन कीजिए ।’
भीष्म पितामह पूजा में धूप और दीप का महत्व बताते हुए कहते है—
▪️ धूप देवताओं की प्रसन्नता को बढ़ाती है ।
▪️ देवताओं को गुग्गुल धूप सबसे अधिक प्रिय होती है । स्वयं भगवान का कहना है—‘गुग्गुल धूप देने वाले की मैं समस्त अभिलाषाएं पूर्ण करता हूँ । जो मनुष्य मुझे दशांग धूप (चमेली का फूल, इलायची, गुग्गुल, हर्रे, कूट, राल, गुड़, छड़छरीला और वज्रनखी) देता है, तो मैं उसके दुर्लभ मनोरथ पूरे कर बल, पुष्टि, स्त्री, पुत्र और भक्ति देता हूँ । जो मनुष्य काले अगरु के बने धूप से मेरे मंदिर को सुगंधित करता है, वह नरक समुद्र से मुक्त हो जाता है । अगरु का धूप देह और गेह दोनों को पवित्र करता है ।’
▪️ जो भगवान को अगरु धूप निवेदित करता है, उसके सारे पाप नष्ट हो जाते हैं और उसे सुन्दर रूप प्राप्त होता है ।
▪️ लोहबान, राल, औषधियों, घी और शक्कर आदि को मिला कर जो अष्टगंध धूप तैयार की जाती है, वह भी देवताओं को बहुत प्रिय होती है ।
▪️ जो मनुष्य भगवान को कपूर, घी व गुग्गुल आदि सुगन्धित पदार्थों की धूप देता है, उसे उत्तम पद की प्राप्ति होती है ।
▪️ राल का धूप यक्ष और राक्षसों का नाश करता है ।
भगवान के पूजन में इस मंत्र से धूप दिखाई जाती है—
धूप का मंत्र
वनस्पतिरसोद्भूतो गंधाढ्यो गंध उत्तम: ।
आघ्रेय: सर्वदेवानां धूपोऽयं प्रतिगृह्यताम् ।।
अर्थ—वनस्पति के रस से प्रकट, सुगंधित, उत्तम गंधवाली और सभी देवताओं के सूंघने योग्य यह धूप सेवा में अर्पित है, प्रभो ! इसे ग्रहण कीजिए ।
पूजा में दीपक प्रज्जवलित करने का महत्व
देवता तेजस्वी, कांतिवान और प्रकाश फैलाने वाले होते हैं । दीपक की लौ (तेज) ऊपर की ओर जाती है; अत: दीप दान से मनुष्य की ऊर्ध्वगति होती है ।
▪️ जो मनुष्य भगवान के सामने दीप जलाता है, वह स्वर्गलोक में दीपमालिका की तरह प्रकाशित होता है ।
▪️ जो मनुष्य श्रीकृष्ण मंदिर के द्वार पर प्रतिदिन दीपमाला जगाता है, उसे पृथ्वी पर सम्राट का पद प्राप्त होता है ।
▪️ दीप अंधकारमय नरक को दूर करने की दवा है । पूजा में दीप प्रज्ज्वलित करने वाला अपने कुल को उद्दीप्त करने वाला व लक्ष्मीवान होता है ।
▪️ भगवान को दीप दान करने से मनुष्य की कीर्ति बढ़ती है ।
▪️ भगवान के समक्ष दीपक प्रज्ज्वलित करने से मनुष्य के नेत्रों का तेज बढ़ता है और मनुष्य तेजस्वी बनता है ।
ध्यान रखने योग्य बात
▪️ दीपक जलाने के बाद न तो उसे बुझाएं और न ही कहीं उठाकर दूसरी जगह ले जाएं ।
▪️ चर्बी आदि निकृष्ट तेलों से कभी भगवान के सामने दीप नहीं जलाना चाहिए ।
▪️ घी का दीपक जलाना प्रथम श्रेणी का दीपदान है ।
▪️ तिल, सरसों आदि के तेल का दीप जलाना द्वितीय श्रेणी का दीपदान है ।
पूजन में दीपक प्रज्ज्वलित करने का मंत्र
साज्यं च वर्तिसंयुक्तं वह्निना योजितं मया ।
दीप गृहाण देवेश त्रैलोक्यतिमिरापहम् ।।
भक्त्या दीपं प्रयच्छामि देवाय परमात्मने ।
त्राहि मां निरयाद् घोराद्दीपज्योतिर्नमोऽस्तु ते ।।
अर्थ—प्रभो ! घी में डुबोई रुई की बत्ती को अग्नि से प्रज्ज्वलित करके यह दीप आपकी सेवा में अर्पित किया गया है, आप इसे ग्रहण करें । यह त्रिभुवन के अंधकार को दूर करने वाला है । मैं इष्ट देवता को दीप देता हूँ । आप मुझे घोर नरक से बचाइए । दीप ज्योतिर्मय देव ! आपको नमस्कार है ।