सूर्य जब एक राशि पार कर अगली राशि पर गति करते हैं, उसे उस राशि की सूर्य-संक्रान्ति कहते हैं । सूर्य की प्रत्येक महीने में एक संक्रान्ति होती है ।
पौष मास में जब धनु की संक्रान्ति लगती है, तब से मल मास शुरु होता है और मकर की संक्रान्ति लगते ही मल मास समाप्त हो जाता है । इस तरह मल मास पूरे एक महीने का होता है । इस मास में कोई शुभ कार्य जैसे—विवाह, सगाई, गृह प्रवेश, गृह निर्माण, नया व्यापार, नया घर का खरीदना आदि कार्य नहीं किया जाता है । परंतु इस मास में भगवान के पूजन, ब्राह्मण और साधु-सेवा, व दान-पुण्य का अक्षय फल होता है ।
मल मास के पंद्रह दिन बाद ‘पौष बड़ा’ मनाया जाता है । इसमें तेल के बड़े-पकौड़े बना कर सब लोगों को बाटे जाते हैं । साथ ही चील, कौओं को खिलाए जाते हैं ।
मल मास को ‘खर मास’ क्यों कहते हैं ?
पौराणिक ग्रंथों में खर मास की कथा भगवान सूर्य से जुड़ी हुई है; इसलिए इन दिनों में सूर्य उपासना का विशेष महत्व बतलाया गया है ।
मार्कण्डेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख मिलता है, जिसके अनुसार—
एक बार सूर्य देवता अपने सात घोड़ों के रथ पर सवार होकर ब्रह्माण्ड की परिक्रमा करने के लिए निकले, लेकिन इस दौरान उन्हें कहीं पर भी रुकने की इजाजत नहीं थी । यदि इस दौरान वह कहीं रुक जाते तो पूरा जनजीवन भी ठहर जाता; क्योंकि सूर्योदय के साथ ही समस्त सृष्टि जागती है और अपने-अपने कार्य में प्रवृत्त होती है ।
सूर्य देव की परिक्रमा शुर हुई, लेकिन लगातार चलते रहने के कारण उनके रथ में जुते घोड़े थक गए और घोड़ों को प्यास लगने लगी । घोड़ों की दयनीय दशा को देखकर सूर्य देव चिंतित हो गए । घोड़ों को आराम देने के लिए वह एक तालाब के किनारे आए, ताकि रथ में बंधे घोड़ों को पानी पीने को मिल सके और थोड़ा आराम भी । लेकिन तभी उन्हें यह आभास हुआ कि अगर रथ रुका तो अनर्थ हो जाएगा; क्योंकि रथ के रुकते ही सारा जनजीवन भी ठहर जाएगा ।
सूर्य देव परेशान होकर इधर-उधर देखने लगे । उस तालाब के किनारे दो खर (गर्दभ, गधे) भी खड़े थे । जैसे ही सूर्य देव की नजर उन दो खरों पर पड़ी, उन्होंने अपने घोड़ों को विश्राम करने के लिए वहीं तालाब किनारे छोड़ दिया और घोड़ों की जगह पर खर यानी गर्दभों को अपने रथ में जोड़ दिया, ताकि रथ चलता रहे ।
रथ में घोड़ों की जगह खरों को जोत देने के कारण रथ की गति काफी धीमी हो गई । फिर भी जैसे-तैसे किसी तरह एक मास का चक्र पूरा हुआ । उधर सूर्य देव के घोड़े भी विश्राम के बाद ऊर्जावान हो चुके थे । इसके बाद सूर्यदेव ने अपने घोड़ों को रथ में फिर जोतने के बाद उसी गति से परिक्रमा प्रारंभ कर दी ।
इस तरह हर साल यह क्रम चलता रहता है और हर सौर वर्ष में एक सौर मास ‘खर मास’ कहलाता है ।