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आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा की अलौकिक लीला

भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाएं तो हमें चमत्कृत करती ही हैं; पुराणों में श्रीराधा की भी ऐसी अलौकिक लीलाएं पढ़ने को मिलती हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि श्रीराधा वास्तव में कोई साधारण गोपी नहीं; बल्कि श्रीकृष्ण की तरह ही ‘परा देवता’ हैं । जानें, श्रीराधा का एक ऐसा ही अलौकिक लीला प्रसंग—‘श्रीराधा का अलौकिक भोजन और दुर्वासा ऋषि ।‘

गरुड़, सुदर्शन चक्र और श्रीकृष्ण की पटरानियों का गर्व-हरण

जहां-जहां अभिमान है, वहां-वहां भगवान की विस्मृति हो जाती है । इसलिए भक्ति का पहला लक्षण है दैन्य अर्थात् अपने को सर्वथा अभावग्रस्त, अकिंचन पाना । भगवान ऐसे ही अकिंचन भक्त के कंधे पर हाथ रखे रहते हैं । भगवान अहंकार को शीघ्र ही मिटाकर भक्त का हृदय निर्मल कर देते हैं ।

ऋणानुबन्ध का सिद्धान्त

एक ही विद्वान व धर्मात्मा पुत्र श्रेष्ठ है; बहुत-से गुणहीन व नालायक पुत्र तो व्यर्थ हैं । एक ही पुत्र कुल का उद्धार करता है, दूसरे तो केवल कष्ट देने वाले होते हैं । ध्रुव व प्रह्लाद जैसे एक पुत्र ने सारे वंश को तार दिया; कौरव सौ होकर भी अपने वंश को न बचा सके । पुण्य से ही उत्तम पुत्र प्राप्त होता है, अत: मनुष्य को सदैव धर्मपूर्वक पुण्य कर्मों का संचय करना चाहिए ।

मल मास को ‘खर मास’ क्यों कहते हैं ?

पौराणिक ग्रंथों में खर मास की कथा भगवान सूर्य से जुड़ी हुई है; इसलिए इन दिनों में सूर्य उपासना का विशेष महत्व बतलाया गया है । मार्कण्डेय पुराण में खर मास के संदर्भ में एक कथा का उल्लेख है ।

भूमि दोष का मनुष्य के विचारों पर प्रभाव

श्रीराम ने लक्ष्मण जी से कहा—‘यह वही भूमि है, जहां सुन्द और उपसुन्द आपस में युद्ध करके मरे थे; इसलिए इस भूमि में वैर के संस्कार है । भूमि दोष का असर मनुष्य के मन पर होता है ।’ अशुद्ध भूमि के कारण भी मनुष्य का मन भक्ति में नहीं लगता । जो भूमि पवित्र होती है, वहां भक्ति फलती-फूलती है ।