रानी तेरो चिर जियो गोपाल ।
वेगि बडो बढि होय बिरध लट महरि मनोहर बाल ।।
उपजि पर्यो यह कूंख भाग्यबल समुद्र सीप जैसे लाल ।
सब गोकुल के प्रान जीवनधन वैरिन के उर साल ।।
सूर कितो जिय सुख पावतहें निरखत श्याम तमाल ।
रज आरज लागो मेरी अंखियन रोग दोष जंजाल ।।
श्रीकृष्ण-जन्म की बधाई का यह सुंदर पद अष्टछाप के कवि सूरदास जी द्वारा रचित है ।
व्रज में नंद बाबा के पुत्र हुआ है, जब यह बात सुनाई पड़ी तो व्रजवासियों ने माना कि सभी पुण्य पूर्ण हो गए और उनका अत्यन्त शुभ फल प्राप्त हो गया है । व्रजराज का वंश चलने से व्रज को आधार-स्तम्भ मिल गया ।
बेटा तो नन्द बाबा और माता यशोदा को हुआ है, पर आनन्द पूरे व्रज में छाया है ।
गोपियों में जब कन्हैया के जन्म की बात फैली तो वे सब उनके दर्शन के लिए दौड़ पड़ीं मानो नवधा भक्ति दौड़ती हुयी ईश्वर मिलन के लिए जा रही हो । गोपियों ने सुन्दर-सुन्दर वस्त्र-आभूषण धारण किए । अँगराग, काजल, कुंकुम आदि से अपना श्रृंगार किया । इस प्रकार गोपियां सज-धजकर बालों में लगे फूलों (जोकि जल्दी-जल्दी चलने से पृथ्वी पर गिर रहे थे) की वर्षा करती हुईं तथा हाथ के कंगन और पाँवों के पायजेब के नूपुरों से रुनझुन-रुनझुन की मधुर ध्वनि करती हुईं नंदमहल पहुँचीं । गोपियों का स्वागत रोहिणी जी व उपनंद जी की पत्नी ने किया ।
गोप भी गायों को हल्दी-तेल से रंगकर, गेरू आदि से चित्रित कर, मोरपिच्छ व पुष्पमालाओं से सजाकर, खुद भी वस्त्राभूषण–अँगरखा, पगड़ी धारणकर, सिर पर, कांवरों में दूध, दही, घी, मक्खन, ताजा छैना आदि के घड़े लिए नंदभवन पहुँचे ।
सभी ब्रजवासी यशोदा जी की गोद में विराजमान श्रीकृष्ण को स्नेह की भेंट देते हैं । प्रथम दर्शन से ही श्रीकृष्ण ने सभी का मन अपनी ओर खींच लिया है । यशोदा माता की गोद में सर्वांग सुन्दर बालकृष्णलाल के दर्शन से गोपी आनन्दविभोर होकर बधाई देते हुए कहती हैं–‘रानी तेरो चिर जियो गोपाल ।’
नंदबाबा ब्रज के राजा हैं तो माता यशोदा ब्रज की रानी हैं । गोपियां लाला को आशीर्वाद देते हुए कहती है—
‘रानी ! तेरा गोपाल चिरंजीवी हो । ये जल्दी से बड़ा होकर सुंदर नवयुवक हो । माता ! ये तुम्हारे पुण्यों से तुम्हारी कोख से जन्मा है । ये समस्त ब्रज का जीवनप्राण है, आंख का तारा है; लेकिन शत्रुओं के हृदय का कांटा है । तमाल वृक्ष की तरह इस श्याम-वर्ण श्रीकृष्ण को देख कर मन को कितना सुख मिलता है । इसकी चरण-रज के लगाने से ही ब्रजवासियों के सारे रोग-शोक और जी के जंजाल मिट जाएंगे ।
गोपियों का एक-एक अंग कृष्णमिलन और कृष्णस्पर्श से आन्दोलित हो रहा था । उनकी आँखें कह रही थीं कि हमारे जैसा कोई भाग्यवान नहीं; जिन्हें कृष्ण दर्शन का आनन्द मिला । हाथों ने कहा–हम भाग्यशाली हैं, हमने लाला को भेंट दी, गोद में लिया, उनको दुलराया, झुलाया । गोपियों के कानों ने कहा–हमने सबसे पहिले श्रीकृष्ण के प्राकट्य का समाचार सुना है, अत: हम ही सबसे ज्यादा भाग्यशाली हैं । पाँव कहाँ पीछे रहने वाले थे, उन्होंने कहा–हम भाग्यशाली हैं जो आज प्रभु दर्शन के लिए दौड़ कर आए हैं; अब जन्म-मृत्यु के दु:ख से छुटकारा मिलेगा । तभी हृदय ने कहा–सच्चा आनन्द तो मुझे मिला; क्योंकि मैंने लाला को उठाकर हृदय से लगा लिया और आलिंगन कर उनसे एकाकार हो गया ।
इस प्रकार बालकृष्ण का मुख देखकर गोप व गोपियां अपने नयनों का भाग्य सराहने लगे । वे बार-बार बालक को देखें और कहें–
पाहि चिरं ब्रजराजकुमार !
अस्मानत्र शिशो ! सुकुमार ! (श्रीगोपालचम्पू:)
‘रे सुकुमार बालक ! रे ब्रजराजकुमार ! तू बड़ा होकर चिरकाल तक हम लोगों की रक्षा कर ।
सभी व्रजवासी माता यशोदा के भाग्य की सराहना करते हुए जोर-जोर से कहने लगे—
धनि धन्य महरि की कोख, भाग-सुहाग भरी ।
जिनि जायौ ऐसौ पूत, सब सुख-फरनि फरी ।।