एक मनोवैज्ञानिक सत्य है—हम जैसी भावना करते हैं, वैसे ही बन जाते हैं । निराशा की भावना करेंगे, निराशा आ जाएगी; रोग की भावना करेंगे, रोगी हो जाएंगे; सफलता की, स्वस्थ देह की, दृढ़ता की, निर्मलता की भावना करेंगे तो मन में उत्साह, शान्ति, निरोगता और शक्ति का बोध होगा, धैर्य और पवित्रता की प्राप्ति होगी ।
दिन में कई बार इस वाक्य को रटिए कि ‘ईश्वर मेरा स्वास्थ्य है, मैं कभी बीमार नहीं हो सकता; ईश्वर मेरा है, मैं कभी दु:खी नहीं हो सकता, मैं सुखी हूँ ।’ इसका प्रभाव आपके मन पर इतना प्रत्यक्ष होगा कि बीमारी भी दूसरा घर ढूँढ़ेगी ।
रोग न मुझको छू सकता है, मेरा स्वास्थ्य वही ईश्वर है ।
मेरे लिए सतत् तत्पर वह, अमित अचूक शक्ति का घर है ।।
ईश्वर ही मेरा सब कुछ है, नहीं जानता मैं कोई डर ।
क्योंकि यहां पर सुविराजित है, पावन, प्रेम, सत्य, परमेश्वर ।।
God is my health, I can’t be sick,
God is my strength, unfailing, quick,
God is my all, I know no fear.
Since God and love and truth are here.
▪️यदि मनुष्य उलटी नकारात्मक भावना करे कि ‘मैं दीन हूँ, असहाय हूँ, अशक्त हूँ, निराश हूँ, मेरा क्या होगा, मेरा कोई नहीं है, मेरा तो भाग्य ही खराब है, मैं बीमारियों और विपत्तियों से घिर गया हूँ आदि’ तो वह मनुष्य सचमुच ही ऐसा बन जाएगा । जैसी भावना मन करेगा, वही-वही चीजें मनुष्य को मिलती जाएंगी । जीवन उल्लासहीन, साहसहीन और विषादमय हो जाएगा । परन्तु यदि मनुष्य भगवान के बल पर अपने में साहस, धैर्य, सद्गुण और कर्मण्यता का अनुभव करता है तो उसके मन मे साहस, सत्य, प्रेम, दया, ईश्वर-विश्वास तथा ज्ञान की वृद्धि होगी । शक्ति का स्मरण करने पर शक्तिशाली होंगे, चित्त में उल्लास रहेगा, आशा बनी रहेगी और सफलता आपके चरण चूमने लगेगी ।
मनोभावना का मनुष्य पर क्या प्रभाव होता है—इसे दर्शाती दो सच्ची घटनाएं
▪️यह सच्ची घटना दस वर्ष पुरानी है । राजस्थान में रक्षाबंधन के दिन घरों के दरवाजों के दोनों ओर गेरु से शकुन लिखे जाते हैं, जिन्हें ‘सूँण’ या ‘सोन’ या ‘श्रवण’ रखना कहते हैं । उनकी पूजा की जाती है, लड्डू का भोग लगाया जाता है । एक व्यक्ति की पत्नी ने रक्षाबंधन के दिन सोन लिखने के लिए चतुर्दशी की रात्रि को लोटे में गेरु भिगोकर लोटा चारपाई के नीचे रख दिया । उसी चारपाई पर उसके पति सोये थे ।
तड़के ही पति ने चारपाई के नीचे रखे लोटे को उठाया और घर से बाहर नित्य-कर्म के लिए चला गया । सूर्योदय नहीं हुआ था इसलिए बाहर कुछ अंधेरा था । अत: वह देख नहीं पाया कि लोटे में क्या है ? शौच होकर जब वह उठा तो उसने देखा कि वहां की सारी भूमि लाल हो गई है ।
उसने सोचा—‘अरे, इतना खून मेरे शरीर से निकल गया, अब मैं जीवित कैसे बचूंगा ?’ बस, यह सोचते ही उसके मन-मस्तिष्क में अत्यधिक कमजोरी आ गई, हृदय बैठने लगा और वह चक्कर खाकर वहीं बेहोश हो गया ।
जब घरवालों ने देखा कि आज बड़ी देर हो गई, वह व्यक्ति नित्य-कर्म करके वापिस नहीं आया, तो उन्होंने कुछ आदमी खेत पर भेजे जो उसे किसी तरह उठाकर घर लाए । वैद्यजी बुलाए गए, उन्होंने देखा कि इसकी हालत तो बहुत खराब है ।
इसी बीच उस व्यक्ति की पत्नी ने सोचा—भद्रा लगने वाली है, जल्दी से सोन लिख दूँ । इसलिए वह गेरु का लोटा लेने गई तो उसने देखा कि चारपाई के नीचे रखा गेरु का लोटा वहां नहीं है ।
तब उसने चिल्ला कर कहा—‘मैंने रात को चारपाई के नीचे सोन लिखने के लिए गेरु भिगो कर रखा था, मेरा वह लोटा कौन ले गया ?’
जैसे ही यह बात रोगी के कान में पहुंची, उसके तन-मन में कुछ हलचल हुई । वह उठ कर बैठ गया और बोला—‘क्या चारपाई के नीचे गेरु का लोटा था ?’
पत्नी ने कहा—‘हां, गेरु का लोटा था ।’
बस, उसी क्षण रोगी को हंसी आ गई और वह चिल्लाते हुए बोला—‘अरे, मुझे तो लाल रंग देख कर खून का वहम हो गया था, वह तो गेरु था । वैद्यजी मुझे कोई रोग नहीं है ।’
वह स्वस्थ होकर पहले की तरह चलने-फिरने लगा ।
▪️एक बार एक धनी व्यक्ति डॉक्टर के पास गया । डॉक्टर ने देखा कि व्यक्ति को कोई रोग नहीं है फिर भी उस व्यक्ति की संतुष्टि के लिए उसके टेस्ट करा दिए और शाम को रिपोर्ट मंगवाने के लिए कह दिया । शाम को जब घर का कोई सदस्य रिपोर्ट लेकर आया तो रिपोर्ट देखते ही उस व्यक्ति के शरीर से पसीना छूटने लगा, हृदय बैठने लगा, मुंह की आकृति बिगड़ गई । घरवाले तुरंत डॉक्टर को बुला लाए । डॉक्टर ने देखा कि उसकी हालत वाकई चिंताजनक है ।
घरवालों ने डॉक्टर को बताया कि उसकी यह हालत रिपोर्ट पढ़ने के बाद ही हुई है । डॉक्टर ने रिपोर्ट देखी तो उसमें लिखा था कि ‘अब आपके बचने की कोई आशा नहीं है, आपको जो करना है, तुरन्त कर लें ।’ यह पढ़कर डॉक्टर को विश्वास नहीं हुआ, क्योंकि सुबह तो वह व्यक्ति भला-चंगा था ।
डॉक्टर ने रिपोर्ट पर जब रोगी का नाम पढ़ा तो वहां एक दूसरे सज्जन का नाम था, जो मरणासन्न था । डॉक्टर ने हंसते हुए कहा—‘आपको कुछ नहीं है, यह रिपोर्ट आपकी नहीं है, रिपोर्ट बदल गई है ।’
यह सुनते ही रोगी का चेहरा ही बदल गया, चेहरे पर मुस्कराहट आ गई, शरीर में तुरंत बल आ गया ।
‘डॉक्टर साहब आपकी भूल ने तो मुझे मार ही डाला’ यह कहते हुए वह व्यक्ति बाहर घूमने चला गया ।
इन दो सूत्रों को सदैव याद रखें
▪️मन की जीत मनुष्य की सबसे बड़ी जीत है—यदि मनुष्य बार-बार यह कहे कि ‘मैं बीमार हूँ, मैं बीमार हूँ, मुझे कोई रोग हो गया है’ तो यह सिद्ध बात है कि कुछ ही समय में उसका शरीर रोगी हो जाएगा । सुख-दु:ख कभी बाहर से नहीं आते, मन से ही आते हैं । हमारा मन ही हमारे जीवन का सबसे महत्त्वपूर्ण बिन्दु है । यही हमें हंसाता है, यही हमें रुलाता है । यही खुशियों के ढेर लगा देता है तो कभी यही दुखों की गहरी खाई में ढकेल देता है । मानव मन अग्नि के समान है जो मनुष्य को बुरे और नकारात्मक विचारों में फंसा कर जीवन में आग लगा सकता है या अच्छे और सकारात्मक विचारों की ज्योति से जीवन को प्रकाशित भी कर सकता है । जिसके मन में दु:ख के लिए कोई स्थान नहीं है, वह कभी दु:खी नहीं हो सकता, वह तो सदा सुखी ही रहेगा । इसलिए मनुष्य को कभी भी नकारात्मक विचारों को अपने मन में स्थान नहीं देना चाहिए ।
▪️मनुष्य का भगवान में विश्वास एक महान बल है । भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार का कहना है—
यही मनुष्य के अपने भीतरी शत्रुओं (डर, चिन्ता, विषाद आदि) पर विजय प्राप्त करने के स्वर्णिम सूत्र हैं—
चिन्ता की लगि आग है, जरे सकल संसार ।
पलटू बचते संत जिन, लिया नाम आधार ।।