‘महामाया मां जगदम्बा परम कृपालु हैं और उनकी कृपा का भण्डार अटूट है । अन्य देवता अपने हाथों में अभय और वर मुद्रा धारण करते हैं अर्थात् वर और अभय देने के लिए हाथ काम में लेते हैं ; परन्तु करुणामयी मां ही एक ऐसी हैं जो इन दोनों मुद्राओं को धारण करने का स्वांग नहीं रचतीं । उनके दोनों चरण ही भक्तों को अभय और वर देने में समर्थ हैं क्योंकि उनके दोनों हाथ तो सदैव असुरों/शत्रुओं का संहार करने में लगे रहते हैं । भक्तों के लिए तो उनके चरण ही पर्याप्त हैं ।’
करुणामयी मां जगदम्बा
नवरात्र के नौ दिन अपनी सामर्थ्य के अनुसार मां की विभिन्न राजसी उपचारों से पूजा करनी चाहिए व अनेक प्रकार के फलों व पदार्थों का भोग लगाना चाहिए । इस संसार में आकर जो मां जगदम्बा की उपासना करता है, वह चाहे घोर-से-घोर संकट में ही क्यों न पड़ा हो, मां स्वयं उसकी रक्षा करती हैं, साधक की समस्त कामनाएं पूर्ण करती हैं और उसे सद्बुद्धि प्रदान करती हैं । स्वप्न में भी उसे कभी नरक का भय नहीं होता है । सभी जगह वह धन व आदर-मान प्राप्त करता है ।
देवी की आराधना से सकाम भक्तों को मनोवांछित फल की प्राप्ति होती है तो निष्काम भक्त मोक्ष प्राप्त करते हैं। श्रीदुर्गासप्तशती के अनुसार देवी की आराधना से जहां ऐश्वर्य की इच्छा रखने वाले राजा सुरथ ने अखण्ड साम्राज्य प्राप्त किया वहीं वैराग्यवान समाधि वैश्य ने मोक्ष की प्राप्ति की थी ।
तिथि व वार के अनुसार मां को अर्पित करें भोग और पाएं मनचाहा फल
तिथि के अनुसार मां को अर्पित किया जाने वाला विशेष भोग
श्रीदेवीभागवतपुराण में मां जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए देवी पक्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक) में प्रतिदिन मां के अलग-अलग भोग बताए गए हैं और उन्हें दान करने का निर्देश है । मां जगदम्बा जगज्जननी हैं; सभी उनकी संतान हैं अत: मां को अर्पित किया गया यह भोग ब्राह्मणों, वटुकों (लांगुरा) व गरीब लोगों को देवी का रूप समझकर दान देना चाहिए ।
—प्रतिपदा तिथि में मां जगदम्बा के षोडशोपचार पूजन के बाद उन्हें गाय के घी का भोग लगायें और उसे ब्राह्मण को दे दें । इसके फलस्वरूप मनुष्य कभी रोगी नहीं होता है ।
—द्वितीया तिथि को मां का पूजन करके चीनी का भोग लगावे और ब्राह्मण को दान दें । ऐसा करने से मनुष्य दीर्घायु होता है।
—तृतीया के दिन मां जगदम्बा को दूध का भोग लगायें और ब्राह्मण को दे दें । यह सभी दु:खों से मुक्ति प्राप्त करने का अचूक उपाय है ।
—चतुर्थी तिथि को मां को मालपुए का नैवेद्य अर्पण कर ब्राह्मण को दे देना चाहिए । इस दान से जीवन की सारी विघ्न-बाधाएं दूर हो जाती हैं ।
—पंचमी तिथि को मां की पूजा के बाद केला अर्पण करें और वह प्रसाद ब्राह्मण को दे दें । ऐसा करने से मनुष्य का बुद्धि-कौशल बढ़ता है ।
—षष्ठी तिथि के दिन मां के भोग में मधु (शहद) का महत्व है अत: मधु का भोग अर्पण करके उसे ब्राह्मण को देने से मनुष्य को सुन्दर रूप प्राप्त होता है ।
—सप्तमी तिथि के दिन जगदम्बा को गुड़ अर्पण कर ब्राह्मण को देना चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य के सारे शोक दूर हो जाते हैं ।
—अष्टमी तिथि के दिन भगवती को नारियल का भोग लगा कर ब्राह्मण को दान करना चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य को कभी किसी भी प्रकार का संताप (दु:ख, क्लेश, ज्वर आदि) नहीं होता है ।
—नवमी तिथि में देवी को धान का लावा (खील) का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान करने से मनुष्य इस लोक और परलोक में सुख प्राप्त करता है ।
—दशमी तिथि को मां को काले तिल से बने मिष्ठान्न का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान करना चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य को यमलोक का भय नहीं सताता है ।
—एकादशी को भगवती को दही का भोग लगाकर ब्राह्मण को देना चाहिए । इससे मां की कृपा प्राप्त होती है ।
—द्वादशी को मां का चिउड़ा का भोग लगाकर ब्राह्मणों में बांट देने से मां अपना कृपाहस्त सदैव साधक के ऊपर रखती हैं ।
—त्रयोदशी को चने का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान करने से साधक को पुत्र-पौत्रादि का सुख प्राप्त होता है ।
—चतुर्दशी के दिन मां जगदम्बा को सत्तू का भोग लगाकर जो ब्राह्मण को देता है, उस पर भगवान शंकर प्रसन्न होते हैं ।
—पूर्णिमा के दिन मां को खीर का भोग लगाकर ब्राह्मण को दान देने से पितरों को सद्गति प्राप्त होती है ।
मां जगदम्बा के सात वारों के सात विशेष भोग
श्रीदेवीभागवतपुराण में मां जगदम्बा के लिए सात वारों के भी सात भोग बताए गए हैं । नवरात्र ही नहीं, जो लोग प्रतिदिन देवी की आराधना करते हैं, वे भी तिथि व वार के अनुसार मां को भोग अर्पित कर मां की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं ।
—रविवार को मां का खीर का भोग लगाना चाहिए ।
—सोमवार को मां को दूध अर्पण करें ।
—मंगलवार को केले का भोग लगाने से मां प्रसन्न होती हैं ।
—बुधवार के दिन मां को मक्खन का भोग लगाना चाहिए।
—बृहस्पतिवार को खांड (बूरे) का भोग लगाएं ।
—शुक्रवार को चीनी का भोग लगायें ।
—शनिवार को गाय के घी का नैवेद्य निवेदित करें।
अंत में मां दुर्गा की एक छोटी सी प्रार्थना बोल दी जाए तो सोने पर सुहागा हो जाए–
भरा अमित दोषों से हूँ मैं,
श्रद्धा-भक्ति-भावना-हीन ।
साधनहीन कलुषरत अविरत,
संतत चंचल चित्त मलीन ।।
पर तू है मैया मेरी,
वात्सल्यमयी, शुचि स्नेहाधीन ।
हूँ कुपुत्र पर पाकर तेरा,
स्नेह रहूंगा कैसे दीन ? (भाई हनुमानप्रसादजी पोद्दार)