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कलियुग में जाग्रत कामाख्या शक्ति पीठ
कामाख्या देवी योगमाया हैं, उन्हें महामाया भी कहते हैं, क्योंकि वे ज्ञानिजनों की भी चेतना को बलात् आकर्षित करके मोहरूपी गर्त में डाल देती हैं । शिव और शक्ति सदैव एक साथ रहते हैं । कामाख्या शक्ति पीठ के भैरव ‘उमानन्द शिव’ हैं । यहां देवी कामाख्या की पूजा-उपासना तन्त्रोक्त आगम-पद्धति से की जाती है ।
दक्षिण काशी की अधीश्वरी देवी : महालक्ष्मी अंबाबाई
महालक्ष्मी मन्दिर जिसे लोग अंबाबाई मन्दिर भी कहते हैं, 51 शक्तिपीठों में से एक हैं । सती के तीनों नेत्र यहीं गिरे थे । यहां की शक्ति महिषमर्दिनी और भैरव क्रोधीश हैं । महालक्ष्मी मन्दिर ही महिषमर्दिनी का स्थान है ।
इक्यावन शक्तिपीठ जहां सती के अंग गिरे
सती का शरीर यद्यपि मृत हो गया था, किन्तु वह महाशक्ति का निवासस्थान था। अर्धनारीश्वर भगवान शंकर उसी के द्वारा उस महाशक्ति में रत थे। अत: मोहित होने के कारण उस शवशरीर को छोड़ न सके। भगवान शंकर छायासती के शवशरीर को कभी सिर पर, कभी दांये हाथ में, कभी बांये हाथ में तो कभी कन्धे पर और कभी प्रेम से हृदय से लगाकर अपने चरणों के प्रहार से पृथ्वी को कम्पित करते हुए नृत्य करने लगे। शिव के चरणप्रहारों से पीड़ित होकर कच्छप और शेषनाग धरती छोड़ने लगे। ब्रह्माजी की आज्ञा से ऋषिगण स्वस्तिवाचन करने लगे। देवताओं को चिन्ता हुई कि यह कैसी विपत्ति आ गयी। ये जगत्संहारक रुद्र कैसे शान्त होंगे?