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छाता और जूता दान करने की प्रथा कैसे शुरु हुई ?

भगवान सूर्य ने महर्षि को शीघ्र ही छाता और जूता (उपानह)—ये दो वस्तुएं प्रदान कीं और कहा—‘यह छत्र मेरी किरणों का निवारण करके मस्तक की रक्षा करेगा तथा ये जूते पैरों को जलने से बचाएंगे । आज से ये दोनों वस्तुएं जगत में प्रचलित होंगी और पुण्य के अवसरों पर इनका दान अक्षय फल देने वाला होगा ।’

हनुमानजी के गुरु कौन थे ?

ऐसा अद्भुत और आश्चर्यमय अध्ययन-अध्यापन ब्रह्मा, विष्णु, महेश, इन्द्र आदि देवताओं और लोकपालों ने कभी देखा नहीं था । इस दृश्य को देखकर वे आश्चर्यचकित रह गये और उनकी आंखें चौंधिया गयीं । वे सोचने लगे कि यह तो शौर्य, वीररस, धैर्य आदि सद्गुणों का साक्षात् स्वरूप आकाश में उपस्थित हो गया है ।