Tag: shiv
शिव और शक्ति की पूर्ण एकता की अभिव्यक्ति भगवान अर्धनारीश्वर :...
सत्-चित् और आनन्द–ईश्वर के तीन रूप हैं। इनमें सत्स्वरूप उनका मातृस्वरूप है, चित्स्वरूप उनका पितृस्वरूप है और उनके आनन्दस्वरूप के दर्शन अर्धनारीश्वररूप में ही होते हैं, जब ये दोनों मिलकर पूर्णतया एक हो जाते हैं।
भाव, भक्ति एवं भजनपूरित एक वर्ष
जहाँ देखो वहाँ मौजूद मेरा कृष्ण प्यारा है,
उसी का सब है जल्वा, जो जहाँ में आशकारा है।
गुनह बख्शो, रसाई दो, बसा लो अपने कदमों...
भगवान शिव के १०८ नामों का स्तोत्र : शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम्
शिवाष्टोत्तरशतनाम स्तोत्रम् व पाठ का फल
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part-II)
मंगलमूर्ति महादेव अद्भुत, अक्षत, अविनाशी, अप्रमेय, अजन्मा, निर्मल, मायारहित, मंगल के निकेतन हैं। भगवान शिव के अनन्त नाम और उनकी महिमा कहां तक कही जाय? अनन्त का अंत कैसे जाना जाए?
भगवान शिव के विभिन्न नाम और उनसे सम्बन्धित कथाएं (Part I)
शिव ही समस्त प्राणियों के अन्तिम विश्राम के स्थान हैं। संसार के क्लेशों, पाप-तापों से व्याकुल जीव के विश्राम के लिए भगवान सर्वसंहार करके प्रलय करते हैं। यह संहार भी भगवान की कृपा है। महाप्रलय में भगवान सबको अपने स्वरूप में लीनकर परम शान्ति प्रदान करते हैं। इसीलिए भगवान का नाम केवल ‘शिव’ ही नहीं ‘सदाशिव’ है।
देवाधिदेव भगवान शिव और जगदम्बा पार्वती का विवाहोत्सव
पर्वतराज हिमालय ने सब प्रकार की लौकिक-वैदिक विधियों को सम्पन्न करके हाथ में जल और कुश लेकर कन्यादान का संकल्प किया। पर्वतराज हिमालय ने हंसकर शिवजी से कहा--’शम्भो! आप अपने गोत्र का परिचय दें। प्रवर, कुल, नाम, वेद और शाखा का प्रतिपादन करें।’ नाम पूछे जाने पर वर का नाम ‘शिव’ बताया गया, पर इनके पिता का नाम पूछने पर सब चुप हो गए। कुछ समय सोचने के बाद ब्रह्माजी ने कहा कि इनका पिता मैं ‘ब्रह्मा’ हूँ और पितामह का नाम पूछने पर ब्रह्माजी ने ‘विष्णु’ बताया। इसके बाद प्रपितामह का नाम पूछने पर सारी सभा अत्यन्त मौन रही। अंत में मौन भंग करते हुए शिवजी स्वयं बोले कि सबके प्रपितामह तो हम ही हैं।
अलबेले भगवान शिव और उनका अनोखा घर-संसार
जिनका ऐसा अद्भुत वेष हो और गृह पालन की सामग्री--बूढ़ा बैल, खटिये का पाया, फरसा, चर्म, भस्म, सर्प, कपाल--इतनी कम हो, तो भभूतिया बाबा शंकर के घर बड़ी मुसीबत रहती है जगज्जननी को। गृहस्वामी के पांच मुख, बच्चे गजानन और षडानन, सवारी के लिए बुड्ढा बैल, खाने के लिए भांग-धतूरा, रहने के लिए सूनी दिशाएं, खेलने के लिए श्मशान और आभूषणों के लिए फुफकारते सर्प। ऐसी स्थिति में यदि मां अन्नपूर्णा न होतीं तो भोलेबाबा की गृहस्थी चलती कैसे?