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भगवान से विमुख होने पर किसी को सुख नहीं मिला

जब से गंगा ने श्रीकृष्ण चरणों को छोड़ा, तब से आज तक उनका बहना बंद नहीं हुआ, अर्थात् उनके जीवन में विश्राम नहीं आया । गंगा की पौराणिक कथा ।

आह्लादिनी शक्ति श्रीराधा की अलौकिक लीला

भगवान श्रीकृष्ण की बाललीलाएं तो हमें चमत्कृत करती ही हैं; पुराणों में श्रीराधा की भी ऐसी अलौकिक लीलाएं पढ़ने को मिलती हैं, जिनसे यह सिद्ध होता है कि श्रीराधा वास्तव में कोई साधारण गोपी नहीं; बल्कि श्रीकृष्ण की तरह ही ‘परा देवता’ हैं । जानें, श्रीराधा का एक ऐसा ही अलौकिक लीला प्रसंग—‘श्रीराधा का अलौकिक भोजन और दुर्वासा ऋषि ।‘

श्रीराधा का अद्भुत ऐश्वर्य और कंस की पराजय

श्रीराधा की ऐसी अद्भुत ऐश्वर्य शक्ति थी कि कंस के असुर बरसाने की सीमा से बहुत बच कर रहते थे; क्योंकि उनके मन में भय लगा रहता था कि यदि हम भी सखी बन गए तो गोपियां हमसे भी न जाने कब तक गोबर थपवाएंगी ।

भगवान श्रीराधाकृष्ण की बिछुआ लीला

श्रीकृष्ण ने अपनी प्रिया श्रीराधा का चरण-स्पर्श किया । यह देख कर श्रीराधा की सभी सखियां ‘बलिहारी है बलिहार की’—इस तरह का उद् घोष करने लगीं । सारा वातावरण सखियों के परिहास से रसमय हो गया । श्रीकृष्ण ने भी लजाते हुए श्रीराधा के पैर की अंगुली में बिछुआ धारण करा दिया ।

श्रीराधा-कृष्ण का अनुपम प्रेम

राधारानी ने ललिता सखी से कहा—‘सखी ! यदि श्रीकृष्ण के हृदय में करुणा नहीं है तो इसमें तुम्हारा तो कोई दोष नहीं है । अब जो मैं कहती हूँ सो तुम करो । थोड़ी देर में जब मेरे शरीर से प्राण निकल जायें, तब तुम मेरी अन्त्येष्टि-क्रिया इस प्रकार करना । मेरे इस शरीर को तमाल वृक्ष से सटाकर बांध देना और उसकी डाल में मेरे दोनों हाथ लटका देना जिससे जीवित अवस्था में न सही, मरने के बाद इस शरीर को श्रीकृष्ण का आलिंगन मिलता रहे ।’