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अभयदाता श्रीराम
विधि—किसी भी प्रकार का भय उत्पन्न होने पर इन चौपाइयों में से किसी एक या अधिक का जप करने से मनुष्य का भय समाप्त हो जाता है । प्रात:काल स्नान आदि करके एक चौकी पर श्रीरामजी की मूर्ति या चित्रपट रखकर उसका पंचोपचार—गंध, अक्षत, पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य आदि से पूजन करें । फिर किसी भी चौपाई का १०८ बार (एक माला) जप करें । यह जप लगातार ३१ दिनों तक करें ।
तुलसीदास चंदन घिसें, तिलक देत रघुबीर
तुलसीदासजी को जब होश आया तो बिन-पानी की मछली की तरह भगवान की विरह-वेदना में तड़फड़ाने लगे । सारा दिन बीत गया, पर उन्हें पता ही नहीं चला । रात्रि में आकर हनुमानजी ने उन्हें दर्शन दिए और उनकी दशा सुधारी ।
भगवान शंकर ने ली श्रीराम की मर्यादा की परीक्षा
श्रीराम ने कहा—‘यद्यपि आपके पास जो चीजें हैं (विष का भोजन, विषधर सर्प, गजचर्म, बूढ़ा बैल, भूत-प्रेत पिशाच) वे हमारे किसी काम की नहीं हैं, इसलिए आप अपने चरणों की भक्ति दें और मेरी सभा में कथा सुनाया करें ।’
सीताजी को किसके शाप के कारण श्रीराम का वियोग सहना पड़ा...
सीताजी के जीवन में आने वाले विरह दु:ख का बीज उसी समय पड़ गया । इसी वैर भाव का बदला लेने के लिए वही तोता अयोध्या में धोबी के रूप में प्रकट हुआ और उसके लगाये लांछन के कारण सीताजी को वनवास भोगना पड़ा ।
भगवान का सर्वश्रेष्ठ नाम कौन-सा है ?
नारदजी ने श्रीराम से कहा—‘आप अन्तर्यामी होने के कारण मेरे मन की सब बात जानते हैं, मैं आपसे एक वर मांगता हूँ ।’ मुझे ‘राम’ की भक्ति के अतिरिक्त कुछ नहीं चाहिए । वही मेरी शक्ति है, मुझे ‘राम’ नाम ही दीजिए ।’
भगवान शिव ने ‘राम-नाम’ कण्ठ में क्यों धारण किया है ?
शिवजी ने देवता, दैत्य और ऋषि-मुनियों—प्रत्येक को दस-दस अक्षर दे दिए । तीस अक्षर बंट गए और दो अक्षर शेष रह गए । तब भगवान शिव ने देवता, दैत्य और ऋषियों से कहा कि मैं ये दो अक्षर किसी को भी नहीं दूंगा । इन्हें में अपने कण्ठ में रखूंगा । ये दो अक्षर ‘रा’ और ‘म’ अर्थात् ‘राम-नाम’ हैं ।
श्रीहनुमानजी का राम-नाममय विग्रह
श्रीरामदूत हनुमानजी का विग्रह राम-नाममय है। उनके रोम-रोम में राम-नाम अंकित है। उनके वस्त्र, आभूषण, आयुध--सब राम-नाम से बने हैं। उनके भीतर-बाहर सर्वत्र आराध्य-ही-आराध्य हैं। उनका रोम-रोम श्रीराम के अनुराग से रंजित है। हनुमानजी भगवान श्रीराम से कहते हैं कि आपका नाम जप करते हुए मेरा मन कभी तृप्त नहीं होता--’त्वन्नामजपतो राम न तृप्यते मनो मम।’ राम मन्त्र की एक लाख आवृत्तियों के पुरश्चरण के बाद ही हनुमानजी सीताजी की खोज के लिए लंकापुरी गये थे और इस कार्य में उन्हें सफलता भी मिली।
सहस्त्रनाम-तुल्य ‘श्रीराम’-नाम और भगवान श्रीराम के १०८ नाम
भगवान के सहस्त्रनामों के समान फलदायी ‘श्रीराम’ के १०८ नाम