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देवी दुर्गा के सोलह नाम और उनका अर्थ
सबसे पहले परमात्मा श्रीकृष्ण ने सृष्टि के आदिकाल में गोलोक स्थित वृन्दावन के रासमण्डल में देवी की पूजा की थी । दूसरी बार भगवान विष्णु के सो जाने पर मधु और कैटभ से भय होने पर ब्रह्माजी ने उनकी पूजा की। तीसरी बार त्रिपुर दैत्य से युद्ध के समय महादेवजी ने देवी की पूजा की । चौथी बार दुर्वासा के शाप से जब देवराज इन्द्र राजलक्ष्मी से वंचित हो गए तब उन्होंने देवी की आराधना की थी । तब से मुनियों, सिद्धों, देवताओं तथा महर्षियों द्वारा संसार में सब जगह देवी की पूजा होने लगी।
क्या है देवी दुर्गा के विभिन्न प्रतीकों का रहस्य ?
जब-जब लोक में दानवी बाधा उपस्थित हो जाती है, चारों ओर अनीति, अत्याचार फैल जाता है, तब-तब देवी पराम्बा विभिन्न नाम व रूप धारण कर प्रकट होती हैं और समाज विरोधी तत्वों का नाश करती हैं ।
घर पर देवी पूजा की सरल विधि
मां को अपने बच्चों से केवल प्रेम चाहिए और कुछ नहीं । अत: इनमें से जो भी वस्तु घर में उपलब्ध हो, अगर वह अपनी श्रद्धा और सामर्थ्यानुसार मां को अर्पित कर दी जाए तो वह उससे भी प्रसन्न हो जाती हैं । इतनी पूजा अगर रोज न कर सकें तो अष्टमी और नवरात्रों में इस पूजा-विधि को अपना सकते हैं ।
नवरात्र में मां जगदम्बा को किस दिन लगाएं कौन सा भोग
श्रीदेवीभागवतपुराण में मां जगदम्बा को प्रसन्न करने के लिए देवी पक्ष (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से पूर्णिमा तक) में प्रतिदिन मां के अलग-अलग भोग बताए गए हैं और उन्हें दान करने का निर्देश है ।
देवी मंगलचण्डिका का मन्त्र व स्तोत्रपाठ करता है सर्वमंगल
दुर्गा को चण्डी कहते हैं और पृथ्वी के पुत्र का नाम मंगल है; अत: जो मंगलग्रह की आराध्या हैं, उन्हें मंगलचण्डिका कहते हैं ।
रात्रि में सोते समय करें यह उपाय, जाग्रत होंगी आन्तरिक शक्तियां
इस प्रयोग का विलक्षण प्रभाव यह होगा कि मां जगदम्बा तुमसे प्रेम करेंगी, तुम उन्हें भूल भी जाओ पर वे तुम्हें कभी नहीं भूलेंगी; क्योंकि पुत्र चाहें कुपुत्र क्यों न हो, माता कभी कुमाता नहीं होती है।
नित्य पाठ के लिए मां भवानी का शरणागति स्तोत्र : भवान्यष्टकस्तोत्रम्
मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दु:खों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।