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भगवान श्रीकृष्ण की अद्भुत अतिथि-सेवा
कृष्णावतार में जरा व्याध ने प्रभास क्षेत्र में मृग के संदेह में जो बाण मारा वह भगवान श्रीकृष्ण के चरण में लगा और भगवान नित्यलीला में प्रविष्ट हो गए । व्याध ने श्रीकृष्ण के तलवे में ही क्यों बाण मारा? इसके पीछे है दुर्वासा ऋषि द्वारा श्रीकृष्ण को दिए गए वरदान की कथा |
वैशाखमास में सत्तू दान की महिमा
युधिष्ठिर को राजसूय यज्ञ का वह पुण्य क्यों नहीं मिला जो एक ब्राह्मण परिवार ने भूखे अतिथि को केवल सत्तू के दान से प्राप्त किया ।
गौ के नाम पर है श्रीकृष्णलोक का नाम
पृथ्वी पर बहने वाले झरने एक समय आता है जब वे सूख जाते हैं। इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर भी नहीं ले जा सकते हैं किन्तु गाय रूपी झरना इतना विलक्षण है कि इसकी धारा कभी सूखती नहीं।
श्रीलड्डूगोपाल की पूजा की सरल विधि
‘योगी जिन्हें ‘आनन्द’ कहते हैं, ऋषि-मुनि ‘परमात्मा’ कहते हैं, संत ‘भगवान’ कहते हैं, उपनिषद् ‘ब्रह्म’ कहते हैं, वैष्णव ‘श्रीकृष्ण’ कहते हैं और माताएं व बहनें प्यार से ‘गोपाल’, ‘लाला’ या ‘लड्डूगोपाल’ कहती हैं, वह एक ही तत्त्व है । ये सब अनेक नाम एक ही परब्रह्म के हैं ।’
भगवान श्रीकृष्ण और माया
माया महा ठगनी हम जानी ।
तिरगुन फांस लिए कर डोले, बोले मधुरे बानी ।।
केसव के कमला वे बैठी, शिव के भवन भवानी ।
पंडा के...
वल्लभ सम्प्रदाय में श्रीकृष्ण की वात्सल्यपूर्ण अष्टयाम सेवा
पुष्टिमार्ग में ठाकुरजी की अर्चना को ‘सेवा’ क्यों कहते हैं ?
सुदर्शनचक्र अवतार भगवान श्रीनिम्बार्काचार्यजी
आचार्य नियमानन्द क्यों कहलाए श्रीनिम्बार्काचार्य ?
सांवले सलोने सुंदर श्याम
श्रीराधा की शोभा बढ़ाने के लिए श्रीकृष्ण ने धारण किया श्याम रंग।
क्या है श्रीसत्यनारायण व्रतकथा का संदेश
सत्य को नारायण मानकर उसे अपने जीवन में उतारने का व्रत लेने वालों की कथा है ‘सत्यनारायण व्रतकथा’