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इक्यावन शक्तिपीठ जहां सती के अंग गिरे
सती का शरीर यद्यपि मृत हो गया था, किन्तु वह महाशक्ति का निवासस्थान था। अर्धनारीश्वर भगवान शंकर उसी के द्वारा उस महाशक्ति में रत थे। अत: मोहित होने के कारण उस शवशरीर को छोड़ न सके। भगवान शंकर छायासती के शवशरीर को कभी सिर पर, कभी दांये हाथ में, कभी बांये हाथ में तो कभी कन्धे पर और कभी प्रेम से हृदय से लगाकर अपने चरणों के प्रहार से पृथ्वी को कम्पित करते हुए नृत्य करने लगे। शिव के चरणप्रहारों से पीड़ित होकर कच्छप और शेषनाग धरती छोड़ने लगे। ब्रह्माजी की आज्ञा से ऋषिगण स्वस्तिवाचन करने लगे। देवताओं को चिन्ता हुई कि यह कैसी विपत्ति आ गयी। ये जगत्संहारक रुद्र कैसे शान्त होंगे?
श्रीकृष्ण को पतिरूप में प्राप्त करने के लिए गोपिकाओं का कात्यायनी...
कात्यायनीदेवी श्रीकृष्ण मन्त्राधिष्ठात्री देवी हैं। गोपियों ने श्रीकृष्ण को पति रूप में पाने के लिए केवल हविष्यान्न खाकर एक मास तक मां की आराधना की। श्रीकृष्ण पतिरूप में मिलें इसका अर्थ है मुझे परमात्मा से मिलना है, परमात्मा के साथ एकाकार होना है। मां कात्यायनी ब्रह्मविद्या का स्वरूप हैं जो परमात्मा से मिलन कराती हैं। गोपियां मूंगे की माला से उनके मन्त्र का एक सहस्त्र जप करतीं।