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ऋणानुबन्ध का सिद्धान्त

एक ही विद्वान व धर्मात्मा पुत्र श्रेष्ठ है; बहुत-से गुणहीन व नालायक पुत्र तो व्यर्थ हैं । एक ही पुत्र कुल का उद्धार करता है, दूसरे तो केवल कष्ट देने वाले होते हैं । ध्रुव व प्रह्लाद जैसे एक पुत्र ने सारे वंश को तार दिया; कौरव सौ होकर भी अपने वंश को न बचा सके । पुण्य से ही उत्तम पुत्र प्राप्त होता है, अत: मनुष्य को सदैव धर्मपूर्वक पुण्य कर्मों का संचय करना चाहिए ।

कर्मफल : जब यमराज बने दासी-पुत्र विदुर

ब्रह्मा आदि सभी देवता भी कर्म के वश में हैं और अपने किए कर्मों के फलस्वरूप सुख-दु:ख प्राप्त करते हैं । भगवान विष्णु भी अपनी इच्छा से जन्म लेने के लिए स्वतन्त्र होते तो वे अनेक प्रकार के सुखों व वैकुण्ठपुरी का निवास छोड़कर निम्न योनियों (मत्स्य, कूर्म, वराह, वामन) में जन्म क्यों लेते ? सूर्य और चन्द्रमा कर्मफल के कारण ही नियमित रूप से परिभ्रमण करते हैं तथा सबको सुख प्रदान करते हैं, किन्तु राहु के द्वारा उन्हें होने वाली पीड़ा दूर नहीं होती ।