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करुणामयी मां शताक्षी (शाकम्भरी)
पुत्र कष्ट में हों तो मां कैसे सहन कर सकती है? फिर देवी तो जगन्माता हैं, उनके कारुण्य की क्या सीमा? त्रिलोकी की ऐसी व्याकुलता देखकर मां के अंत:स्तल में उठने वाला करुणा का आवेग अकुलाहट के साथ आंसू की धारा बनकर बह निकला। नीली-नीली कमल जैसी दिव्य आंखों में मां की ममता आंसू बनकर उमड़ आयी। दो आंखों से हृदय का दु:ख कैसे प्रकट होता? जगदम्बा ने कमल-सी कोमल सैंकड़ों आंखें बना लीं। सैंकड़ों आंखों से करुणा के आंसुओं की अजस्त्र धारा बह निकली।। इसी रूप में माता ने सबको अपने दर्शन कराए और जगत में ‘शताक्षी’ (शत अक्षी) कहलाईं। करुणार्द्र-हृदया मां व्याकुल होकर लगातार नौ दिन और नौ रात तक रोती रहीं।
मां दुर्गा का नवार्ण मन्त्र : आनन्ददायक एवं क्लेशनिवारक
मां दुर्गा के तीन चरित्रों से बीज वर्णों को चुनकर नवार्ण मन्त्र का निर्माण हुआ है। नवार्ण मन्त्र मनुष्य के लिए कल्पवृक्ष के समान है। यह मन्त्र उपासकों को आनन्द और ब्रह्मसायुज्य देने वाला है। दुर्गा के तीन चरित्रों में महाकाली की आराधना से माया-मोह एवं वितृष्णा का नाश होता है। महालक्ष्मी सभी प्रकार के वैभवों से परिपूर्ण कर बुराई से लड़ने की शक्ति देती हैं तथा महासरस्वती किसी भी संकट से जूझकर पार उतरने वाली बुद्धि और विद्या प्रदान करती हैं। अत: नवार्ण मन्त्र के जाप करने से ही दुर्गा के तीनों स्वरूपों को प्रसन्न कर मनोवांछित फल प्राप्त किए जा सकते हैं।
नित्य पाठ के लिए मां भवानी का शरणागति स्तोत्र : भवान्यष्टकस्तोत्रम्
मैं अपार भवसागर में पड़ा हूँ, महान दु:खों से भयभीत हूँ, कामी, लोभी, मतवाला तथा घृणायोग्य संसार के बन्धनों में बँधा हुआ हूँ, हे भवानि! अब एकमात्र तुम्हीं मेरी गति हो।
आद्याशक्ति दुर्गा और नवरात्र
देवीपुराण के अनुसार दुर्गा शब्द में ‘द’कार दैत्यनाशक, ‘उ’कार विघ्ननाशक, ‘रेफ’ रोगनाशक, ‘ग’कार पापनाशक तथा ‘आ’कार भयशत्रुनाशक है। अत: ‘दुर्गा दुर्गतिनाशिनी’--का अर्थ ही है ‘जो दुर्गति का नाश करे’ क्योंकि यही पराशक्ति पराम्बा दुर्गा ब्रह्मा, विष्णु और महेश की शक्ति है।