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भगवन्नाम जप का मानव शरीर पर प्रभाव

भगवन्नाम जप का केवल मानव शरीर पर ही प्रभाव नहीं पड़ता बल्कि वनस्पति जगत भी इससे प्रभावित होता है । तुलसीदासजी ने जब व्रजभूमि में प्रवास किया तो उन्होंने अनुभव किया कि व्रजभूमि में रहने वाले संत-भक्तों के सांनिध्य में वहां के वृक्ष व लताओं से भी ‘राधेश्याम’ की ध्वनि निकलती है ।

दु:ख, दुर्भाग्य व दरिद्रता नाशक भगवान शिव का प्रदोष स्तोत्र

दरिद्रता और ऋण के भार से दु:खी व संसार की पीड़ा से व्यथित मनुष्यों के लिए प्रदोष पूजा व व्रत पार लगाने वाली नौका के समान है । स्कन्दपुराण के अनुसार जो लोग प्रदोष काल में भक्तिपूर्वक भगवान शिव की पूजा करते हैं, उन्हें धन-धान्य, स्त्री-पुत्र व सुख-सौभाग्य की प्राप्ति और उनकी हर प्रकार की उन्नति होती है ।

विभिन्न कार्यों को करते समय भगवान के विभिन्न नामों का स्मरण

विभिन्न रुचि, प्रकृति और संस्कारों के मनुष्यों के लिए भगवान ने स्वयं को अनेक नामों से व्यक्त किया है । प्रत्येक नाम का अर्थ वह परमात्मा ही है। भगवान विविध नामों में और विचित्र रूपों में अवतीर्ण होकर विचित्र भाव और रस के खेल खेलकर माया से मोहित सांसारिक जीवों को अपनी ओर आकर्षित करते है और उनको सब प्रकार के दुखों से मुक्त करके अपना परमानन्द देने का प्रयास करते हैं । इससे अधिक उनकी करुणा का परिचय क्या हो सकता है ?

भगवान के अनेक नाम क्यों होते हैं ?

जानें, परमात्मा के परम प्रभावशाली 11 नाम जिनके जप से मनुष्य कोटि जन्मों के पापों से मुक्त हो जाता है ।

भगवान की आरती क्यों की जाती है ?

आरती शब्द के क्या अर्थ हैं, क्यों की जाती है भगवान की आरती, दोनों हाथों से आरती लेने का क्या भाव है, सच्ची आरती का क्या अर्थ है और क्या है आरती देखने की महिमा

भगवान की परिक्रमा क्यों की जाती है ?

आज भी करोड़ों लोग व्रज में गोवर्धन पर्वत की तलहटी में नंगे पैर व दण्डवत् परिक्रमा करते हैं । इसके पीछे भाव यही रहता है कि कहीं-न-कहीं भगवान के शरीर से स्पर्श किया हुआ कोई रजकण अभी भी वहां की रज में दबा होगा । शायद किसी पुण्य से वह हमें स्पर्श कर जाए और हमारा जीवन धन्य हो जाए ।

गीता के अनुसार कौन है सर्वश्रेष्ठ भक्त

मैं अपने भक्तों के कष्ट को सहन नहीं कर सकता । अपने सिवा मैं और किसी को भक्त की सेवा के योग्य नहीं समझता । इसलिए मैंने तुम्हारी सेवा की है । तुम जानते हो कि प्रारब्धकर्म भोगे बिना नष्ट नहीं होते हैं— यह मेरा नियम है और मैं यह क्यों तोडूं ।

अपने इष्टदेव का निर्णय कैसे करें?

गोस्वामीजी के मन में श्रीराम और श्रीकृष्ण में कोई भेद नहीं था, परन्तु पुजारी के कटाक्ष के कारण गोस्वामीजी ने हाथ जोड़कर श्रीठाकुरजी से प्रार्थना करते हुए कहा—‘यह मस्तक आपके सामने तभी नवेगा जब आप हाथ में धनुष बाण ले लोगे ।’

क्या संतों को भगवान के दर्शन होते हैं ?

मैं उसके पीछे-पीछे गिरिराज तक दौड़ता हूँ । गिरिराज पर्वत पर आकर मुझे लगता है कि वह मेरे पीछे खड़ा है तो मैं उसे पकड़ने के लिए उसके पीछे दौड़ पड़ता हूँ और वह मुझे कुसुम सरोवर तक ले आता है । इस तरह कई दिनों से मैं उसे पकड़ने के लिए कुसुम सरोवर से गिरिराज पर्वत और गिरिराज से कुसुम सरोवर तक की दौड़ लगा रहा हूँ ।’

भगवान का पेट कब भरता है?

पूजन-कर्म करते समय रखें इस बात का ध्यान